Friday 26 August 2011

एक ही संतान..तो ?

आजकल पति-पत्नी शादी के बाद बच्चों के बारे में खुद फैसला करते हैं कि परिवार की साइज कितनी बड़ी होनी चाहिये...यानि प्लानिंग कितने सालों की हो और कितने बच्चे उन्हें चाहिये. अपने बच्चे सबको खुद पालने पड़ते हैं तो उन्हें पैदा करने के बारे में किसी के कहने पर क्यों निश्चय करें. आप सबको ये जानकर आश्चर्य होगा कि आजकल पश्चिमी देशों में कुछ लोग तो चाइल्ड-फ्री रहने का इरादा रखते हैं. खैर, परिवार के बारे में कभी-कभी तो लोग चाहते हैं एक से दो या अधिक बच्चे किन्तु कभी-कभी कुछ लोगों की किस्मत में एक से अधिक बच्चा नहीं लिखा होता है तो उन्हें एक से ही संतोष करना पड़ता है. उन लोगों पर ''नहीं से कुछ भला'' वाली बात लागू हो जाती है. तो समाज में जहाँ ऐसे लोग हैं वहीं वो लोग भी हैं जो एक से अधिक बच्चा ही नहीं चाहते हैं.

और उस औरत के बारे में भी यही बात थी. उसके एक बेटा था और वह व उसका पति दोनों ही एक बच्चे से संतुष्ट थे...दोनों ही खुश थे. किन्तु समाज के लोगों को चैन नहीं पड़ता है..उन्हें दखलंदाजी करने की आदत जो होती है. इसलिये उन दोनों को आये-दिन ही लोगों की तरह-तरह की बातें सुननी पड़तीं थीं. लोगों के सवाल का सामना करना पड़ता था: ''कितने बच्चे हैं तुम्हारे ?'' और ''केवल एक'' सुनकर उनकी भौहें चढ़ जाती थीं जैसे उनका कोई व्यक्तिगत नुकसान हो गया हो. और जब उन्हें पता लगता था कि वह बच्चा नौ साल का है तब तो उनको जैसे दहशत सी हो जाती थी सोचकर कि अब तक दूसरा क्यों नहीं हुआ. ''ओह ! केवल एक'' कहकर बड़ी रंजिश व्यक्त करते हुये साँस खींच कर रह जाते थे. उस औरत को तो लोगों से मिलते हुये भी डर लगता था. वह दोनों ही पति-पत्नी काम करते थे और अपने बच्चे को बहुत प्यार करते थे...उनका बेटा उनकी खुशियों का केंद्र था फिर भी वह दूसरे बच्चे के बारे में सोचना नहीं चाहते थे. पर इस बात को तमाम लोगों को समझाना बहुत मुश्किल था.

मौका मिलने पर तमाम अजनबी लोग और जिन औरतों के कई बच्चे होते थे वह भी उसके इकलौते बच्चे के बारे में जानकर आश्चर्य प्रकट करके ''अकेला एक'' कहकर उस औरत को अजीब निगाह से देखते थे. यहाँ तक कि पार्टी में एक बार उन पति-पत्नी को उनके एक मित्र ने उपदेश दिया कि उन दोनों को इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिये जब कि वह आदमी खुद तलाकशुदा था और अपने बच्चों के साथ नहीं रहता था. ऐसी बातों को झेलकर वह सोचा करती थी कि उन लोगों का क्या हाल होता होगा जो जिंदगी भर बच्चों के ववाल में नहीं पड़ना चाहते. क्यों नहीं लोग खुद चैन से जीते हैं और दूसरों को भी चैन से जीने देते हैं इस दुनिया में.

उसके बिचार से जिनके कई सारे भाई-बहिन होते हैं उनमें अक्सर लड़ाई-झगड़े व आपस में प्रतिस्पर्धा भी हो जाती है अगर परिवार में कोई बच्चा अधिक फेवरिट हो तो. लेकिन उनका अकेला बच्चा होने के कारण किसी अन्य बच्चे के फेवरिट होने का सवाल ही पैदा नहीं होता और वह अपना पूरा प्यार व ध्यान उसी पर दे रहे हैं. उनका बेटा ना बड़ा, ना मंझला और ना ही कभी छोटा कहलायेगा..और वह एक इंसान है ना कि नंबर जहाँ सोचना पड़े कि वह सब बच्चों में किस नंबर पर आता है. किन्तु ऐसी बातें वह अधिक बच्चों वाली माँओं को नहीं बता सकती थी क्योंकि उन सबका अधिक बच्चे पैदा करने का अपना निश्चय था और ये सचाई सुनकर उन्हें बुरा लग सकता था. इसलिये अपने मन में ही ये बातें रखती थी. वह पति-पत्नी दोनों ही खुश थे क्योंकि ये उनका आपस का फैसला था सिर्फ एक बच्चे के बारे में किन्तु वह ऐसे लोगों के बारे में भी जानती थी जहाँ पति-पत्नी में से एक को तो अधिक बच्चे चाहिये पर दूसरे को नहीं और तब उनकी शादी-शुदा जिंदगी में बहुत समस्यायें आती होंगी, क्योंकि इससे एक का दिल टूट जाता है.

उन दोनों के करीबी मित्र उनके फैसले की कद्र करते हैं लेकिन विस्तृत रूप से समाज का दबाब ऐसे लोगों के लिये एक सिर दर्द बना हुआ है. कई लोग तो उनसे ये भी पूछते हैं कि अगर लड़की होने की गारंटी हो तो क्या वह लोग दूसरा बच्चा चाहेंगे. क्योंकि लड़कियाँ अपने माता-पिता को अधिक प्यार करती हैं..माँ के साथ में शोपिंग जाना, घर के काम में हाथ बंटाना आदि-आदि. लेकिन अगर सोचें तो कब तक ये बातें भी खुशी देंगी...आजकल जमाना बदल गया है. बड़े होकर बेटा-बेटी सभी बच्चे मूडी हो जाते हैं और एक दिन सभी अपनी-अपनी अलग जिंदगी जीने लगते हैं चाहे वो बेटा हो या बेटी. दोस्तों के संग आउटिंग जरूरी होती है ना कि माँ के साथ घर के काम में हाथ बंटाना. तो बेटा या बेटी में क्या फर्क ? और जहाँ तक उनके बेटे के बचपन में बहिन-भाइयों के साथ खेलने की बात है तो उसके साथ खेलने वाले उसके तमाम दोस्त हैं जिनसे उसे अकेलापन नहीं महसूस होता. स्कूल से सम्बंधित व और कई सारी एक्टिविटीज में उसे तमाम दोस्तों का साथ मिलता है. और उसे घर में अपने खिलौनों को खेलते हुये किसी और से झगड़ा भी नहीं करना पड़ता.

घर में अपने माता-पिता के साथ बोर्ड गेम खेलना, टीवी देखना, बातें करना, बाहर आउटिंग पर जाना और उनसे शिक्षा सम्बंधित बातों में सहायता मिलना आदि बातों से वह अकेला कहाँ महसूस कर पाता है. और सबसे बड़ी बात तो यह है कि परिवार की साइज़ एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला है जिसमें दखल देने का किसी को हक नहीं होना चाहिये. फिर भी न जाने क्यों ऐसी कहानियाँ हम सभी सुनते रहते हैं जहाँ लोग विवेचना करते रहते हैं कि किसी का परिवार छोटा या बड़ा क्यों है ? उस औरत की समझ में नहीं आता कि अगर कोई खुश है अपनी जिंदगी में तो किसी अजनबी को क्यों बेचैनी होती है जानकर कि किसी के एक ही संतान क्यों है. इसपर आप लोगों का क्या मत है ?


बैजिल (Basil) का उपयोग व इससे लाभ

पेट भरकर स्वस्थ्य रहकर जीने के लिये हम अपने जीवन में खाने में तमाम तरह के फल व ताज़ी और हरी-भरी सब्जियाँ का उपयोग नितदिन करते हैं. और उन सभी से हमारे शरीर को पौष्टिक पदार्थ मिलते हैं. खाने में उन्हें कई बार खाते हुये हम जान नहीं पाते कि उनमें से कुछ चीजें कितनी गुणकारी होती हैं. यहाँ आज मैं आपका परिचय एक बूटी से करा रही हूँ जिसका नाम है ‘’बैजिल’’ और जो शायद मूल रूप से भारत और फारस में जन्मी है, परन्तु बिदेशों में उसका उपयोग खाने में बहुत हो रहा है, खास तौर से इटली में या कहिये कि इटैलियन खाने में. भारत में शायद उसका उपयोग औषधि के रूप में ही लोग जानते रहे हैं. तो आइये इसके बारे में कुछ बताती हूँ:


''बैजिल'' एक बहुत अच्छी खुशबूदार बूटी है. जो पोदीना के पत्तियों जैसी ही दिखती है और उसी के परिवार की कहलाती है. इसे इसका नाम ग्रीक देश ने दिया है जिसका मतलब होता है ''राजा'' या ''शाही'' और ये खासतौर से इटली में बहुत उगाई जाती है और वहाँ के खाने में इसका उपयोग हर दिन के खाने में बहुत होता है. लेकिन अब इटैलियन खाने और भी देशों में भी बनने लगे हैं. टमाटर से बनी खाने की चीजों में इसका बहुत इस्तेमाल होता है. इसे ओलिव आयल व टमाटर के साथ पकाकर इसकी सौस बनाकर पिज्जा और पास्टा में इस्तेमाल करते हैं. इसकी बहुत किस्में होती हैं और हर किस्म का अपना खास स्वाद होता है. बैजिल सुपरमार्केट में ताज़ा या सुखाकर बेचा जाता है. वैसे चाहें तो इसे बड़ी आसनी से घर में भी धनिया और पोदीना की तरह उगाया जा सकता है.


इस बूटी का बहुत पौष्टिक महत्व होता है और बहुत गुणकारी है. इसे और बूटियों की अपेक्षा काफी मात्रा में भी खा सकते हैं. इसमें आयरन, कैल्शियम, पोटैसियम और विटामिन सी पाये जाते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिये बहुत जरूरी हैं. इसमें छोटी मात्रा में विटामिन ए भी होता है. इसको सैंडविच, सूप, सलाद में खाते हैं व सब्जियाँ बनाते समय उनमे भी प्रयोग कर सकते हैं. इसे पानी में उबाल कर जरा सी चीनी डालकर मिंट-टी की तरह पीने से बड़ी राहत मिलती है. वैसे इसकी टी कभी भी पी सकते हैं.


इसके बारे में कुछ औषधीय जानकारी से भी अवगत कराना आवश्यक है. ये राहत देने वाली शांतिकारी औषधि के रूप में पहचानी जाती है. घबराहट होने पर या पाचक-शक्ति ठीक ना होने पर लाभदायक है. इसके सेवन से तमाम और भी फायदे हैं जिनके बारे में भी जानकारी लीजिये:


1.श्वांस से सम्बंधित बीमारियों में जैसे खांसी और फेफड़ों की सूजन होने पर.

2. जुकाम व फ्लू के आसार में.

3. कई प्रकार के वैक्टीरिया को बढ़ने की रोकथाम में.

4. शरीर के कोषों को आक्सीकरण व हानि से बचाने में.

5.गठिया के रोग में प्रदाहनाशी साबित होती है. उसे आगे बढ़ने से रोकती है.

6.शरीर में रक्त-प्रवाह में सुधार होता है व मांसपेशियों और नसों को राहत मिलती है.

7.दिल की बीमारियों को होने से रोकती है.

8.खाने में पाचनशक्ति में सहायता करती है.

9.पेट की मरोड़ व दर्द दूर करने में फायदेमंद.

10.घबराहट, चिंता, उदासी व थकान दूर करती है.

11.माइग्रेन यानि आधे-सिर के दर्द में फायदेमंद होती है.

12.कीड़े-मकोड़े इससे दूर रहते हैं.

13.कीड़े के काटने पर इसे इस्तेमाल करने पर लाभ होता है.

14.और अनिद्रा की हालत में लाभकारी साबित होती है. इसे उबालकर चाय की तरह पीजिये.


''बैजिल’'' के इतने फायदे जानकर अब आप लोग भी इसका कभी-कभार सेवन करें और इसके स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य-सम्बंधित लाभ भी उठायें.


मैं दुखियारों का कूड़ेदान (आप बीती)

मेरी बिना नाम की काल्पनिक सहेली,


आज मैं तुम्हें फेसबुक की तमाम बातों में से एक दुख का राज बता रही हूँ. वैसे ना बताती किन्तु अब कुछ मेरे साथ इन्तहां हो रही है. बिन बुलाये हुये मेहमान की तरह औरों के दुखों को झेलकर उनपर मलहम लगाने का मैं इनाम पा रही हूँ. तो सुनो....बताती हूँ...

मैं अपने दिल का दर्द संक्षेप में बता रही हूँ कि फेसबुक पर कुछ लोग मेरे सीधेपन का नाजायज फायदा उठाकर मेरे लिये रेस्पेक्ट दिखाते हुये इन्बोक्स में आकर पहले किसी की बुराई करते हैं और वादा करवाते हैं कि मैं किसी से कभी कुछ ना कहूँ उस राज के बारे में और फिर उसके बाद उसी दोस्त से दोबारा मेल हो जाने पर मुझे ही उपेक्षित कर देते हैं. उनमे से एक दोस्त 'वो' भी थी.


थी इसलिये कि अब या तो मुझे ही बिना कोई कारण बताये उसने ब्लाक कर दिया है या शायद अपने को ही deactivate कर लिया है फेसबुक से ऊबकर. मुझे आज केवल उसका भूत दिखा...प्रोफाइल गायब. कहीं नहीं मिली फेसबुक पर. खैर, कारण जो भी रहा हो लेकिन परसों तक तो मुझे अपना हमराज मानकर अपना दुख बता रही थी कि किसी दोस्त ने उसे अपनी फ्रेंड-लिस्ट से निकाल दिया है क्योंकि वह उस दोस्त का कोई पर्सनल राज जान गयी थी. (वो कारन मैं आप किसी को भी नहीं बता सकती क्योंकि मैंने उससे वादा किया है किसी को भी न बताने का) उसका दुख सुनकर मैंने काफी तसल्ली दी उसे समझाते हुये कि वह कोई चिंता ना करे. किसी इंसान पर कोई जोर नहीं होता..और शायद उसके दोस्त की नाराजी कुछ समय की ही हो. और मेरी सम्भावना सही निकली. क्योंकि परसों उसने बताया कि उसके दोस्त ने फिर से उसे अपनी लिस्ट में शामिल कर लिया है.


लेकिन आज अभी कुछ देर पहले मुझे पता लगा कि उसने मेरा इस्तेमाल करके मुझे ही ब्लाक कर दिया है. Now I am really getting sick of this sickly behaviour from people on facebook. They use my shoulder to cry on and pour their misery over me and when things start looking up for them they dump me without any explaination. It's disgusting and shameful as after cofiding in me they make me promise to keep their secrets forever in my heart and when they decide to dump me they don't even think that I deserve an explaination from them...it really hurts. That's why I am not keen now to make anymore friends and have been turning down hundreds of requests. I can't trust people here...they scare me now. So I am considering to have some break from facebook for a little while until I feel comfortable to come back. It's not that I don't care about people or friendship...it's their selfish nature I hate.

प्राण जायें पर धन नाहीं

प्राण जायें पर धन नाहीं, औरन की फिकर कछु नाहीं ....

कितने दुख की बात है कि अपने ही देश के लोग धन के लालच में इतना होश खो चुके हैं कि चाहें उनके ही देश का हित करने वाले की जान तक चली जाये. अंग्रेजों ने जब देश पर शासन किया था अपना उल्लू सीधा करने के लिये तो उन्हें बुरा-भला कहते हैं लोग अब तक. ठीक है वो तो पराये थे लेकिन अपने देश के लोग खुद इतने स्वार्थी बन रहे हैं कि देश के अन्य लोगों के हित में अनसुनी करके कान में तेल डाल लिया है. हाय रे मानव हृदय ! कितनी शर्मनाक बात है...किसी ने भी ख्याल नहीं किया कि बाबा अपनी जान से भी हाथ धो सकते थे अगर उन्होंने अनशन ना तोड़ा होता. उनके उपवास से उनके जीवन-मरण का सवाल पैदा हो गया पर जिनके हृदय पिघलने चाहिये थे वो पाषण ही बने रहे. क्या इसी दिन को देखने के लिये आजादी चाही थी ? इस देश में लोग सिर्फ सपनों में रह कर बातें करते हैं..असल में सबको अपनी-अपनी फ़िक्र है..सारे देश की नहीं. जो भी देश के लिये आगे बढ़कर कुर्बानी देने को तैयार होता है उसकी बलि लेने को तैयार हो जाते हैं लेकिन उसके एवज में कुछ करना नहीं चाहते. सिर्फ दिखावे के लिये दूसरे देशों के आगे बड़ी-बड़ी देश-प्रेम की भावनाओं की बातें करते हैं. अरे, देश तो इसमें रहने वाले इंसानों से ही बनता है. लगता है कि भारतवासियों के मन में ही देश-प्रेम की ज्वाला भडकती है..उनके कर्मों में नहीं.

आशा है कि अब बाबा की हालत में और सुधार आया होगा....


Sunday 5 June 2011

धूम्रपान से छुटकारा

देखा जाये तो धूम्रपान करना आमतौर से लोगों की एक आदत है. किसी न किसी कारण से वो लोग पीना शुरू कर देते हैं और फिर पता ही नहीं चलता कि कब वो स्मोकिंग के बुरी तरह से आदी हो गये. कितने ही लोग सोचते भी हैं इस आदत को छोड़ने को लेकिन उन्हें ये पता नहीं होता कि इससे निजात पाने के लिये क्या करना चाहिये.


जो लोग धूम्रपान करते हैं वो कुछ देर को जरा कल्पना करके देखें कि यदि वो स्मोकिंग करना बंद कर दें तो उसी दिन से उनके जीवन में परिवर्तन आना शुरू हो जायेंगे..उनकी बेहतरी के लिये उनकी पूरी जिंदगी ही बदल जायेगी. फेफड़ों में कैंसर का खतरा कम व बलगम बनना भी कम हो जाता है, हार्ट अटैक के चांस बहुत कम हो जाते हैं, मानसिक तनाव में कमी व साँस लेने में आसानी हो जाती है. स्मोकिंग बंद करने के 48 घंटे बाद ही आप बदलाव महसूस करने लगेंगे और आपका शरीर निकोटिन से मुक्त हो जायेगा.


इंग्लैंड में हजारों लोगों ने धूम्रपान छोड़ दिया है. लेकिन उस मंजिल तक पहुँचने के लिये सबको एक सी ही राहों से गुजरना पड़ा. स्मोकिंग से छुटकारा पाने की कोशिश करते हुये कई लोगों का संकल्प टूट जाता है और वो दोबारा स्मोकिंग करने लगते हैं लेकिन इसमें चिंता करने की बात नहीं है. क्योंकि अक्सर कुछ लोग 4-5 बार की असफलता के बाद भी प्रयास करते हुये हमेशा के लिये सिगरेट पीना छोड़ देते हैं. जिस तरह एक बच्चे के कदम लड़खड़ाते हैं पर कोशिश करते-करते संभल जाता है और फिर अच्छी तरह से चलने लगता है बस ऐसा ही स्मोकर्स के साथ भी होता है.


जरा इन बातों पर गौर कीजिये:


1. स्मोकिंग छोड़ने के बारे में सबसे पहले तो आप ये निर्णय लीजिये कि आप इसके बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं और आपका संकल्प पक्का है. एक-एक कदम बढ़ाते हुये ही आप सफलता की पूरी सीधी चढ़ पायेंगे. और पहले से प्लान करिये कोई एक दिन जब आप उस दिन बिलकुल भी स्मोकिंग नहीं करेंगे.


2. अगर आप किसी और को भी जानते हैं जो स्मोकिंग करता है तो उसे भी आप साथ देने को कह सकते हैं एक दूसरे का सहारा पाकर इस आदत को छोड़ना और आसान हो जायेगा.


3. स्मोकिंग से विच्छेद करते हुये लोगों को अजीब-अजीब आसार (withdrawal symptoms) महसूस होते रहते हैं जिनका मुकाबला करने के लिये शुरू में निकोटिन-फ्री प्रोडक्ट का उपयोग करना चाहिये.


4. जहाँ लोग स्मोकिंग कर रहे हों तो वहाँ जाने से अपने पर कंट्रोल करिये ताकि आपको फिर कहीं तलब ना लगने लगे.


5. ये सोचिये कि जो पैसा आप सिगरेट आदि पर खर्च करते हैं उसे बचाकर अपनी किसी और अच्छी जरूरत में लगा सकते हैं.


6. और सबसे बड़ी बात ये कि अपनी इच्छा शक्ति को प्रबल रखते हुये मन को समझाइये कि अगर और तमाम लोग स्मोकिंग की आदत छोड़ने में सफल हो सकते हैं तो आप भी वैसा कर सकते हैं. ‘’बस एक सिगरेट और’’ के बारे में बिलकुल ना सोचें. अपने पास कोई सिगरेट, दियासलाई या लाइटर ही न रखें.


लेकिन खाली संकल्प-शक्ति से भी काम नहीं चलता है तमाम लोगों का. तो उस परिस्थिति में सहायता करने के लिये निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरापी (NRT ) का सहारा लें. मार्केट में निकोटिन की एवज में तमाम प्रोडक्ट हैं जिनसे लोगों को निकोटिन की तलब से छुटकारा मिलता है, जैसे कि पैच (पट्टी), चुइंगम और इन्हेलेटर्स. इन चीजों का उपयोग करने के वावजूद भी यदि ग्रुप थेरापी को भी ज्वाइन कर लें तो सफलता के चांस और भी बढ़ जाते हैं. ग्रुप में लोग आपस में अपना अनुभव बांटते हैं और धीरे-धीरे इस आदत को छोड़ने का प्रोत्साहन व हिम्मत जुटाते हैं. सिगरेट छोड़ने की शुरुआत करते हुये पहले कुछ दिन बहुत मुश्किल होते हैं फिर तलब धीरे-धीरे कम होने लगती है.


मार्केट में ये प्रोडक्ट उपलब्ध हैं:


1. निकोटिन गम (Nicotine Gum): इन्हें चबाकर मुँह के अंदर साइड में रखा जाता है और निकोटिन धीरे-धीरे जीभ के जरिये अंदर पहुँचती रहती है.


2. निकोटिन पैच (Nicotine Patch): ये पेबंद या टेप की तरह होते हैं जिन्हें शरीर पर लोग दिन में या 24 घंटे भी लगाये रह सकते हैं. बहुत लोगों का अपने अनुभव से कहना है कि उन्हें निकोटिन पैच से बहुत मदद मिली, बिना उसके प्रयोग के शायद वो स्मोकिंग ना छोड़ पाते.


3. इन्हेलेटर्स (Inhalators): ये एक प्लास्टिक सिगरेट की तरह होते हैं जिनसे निकोटिन भाप के रूप में मुँह व गले में पहुँचता है.


4. जाइबान (Zyban): इन टैबलेट्स को स्मोकिंग छोड़ने के 1-2 हफ्ते पहले से लेना शुरू करते हैं. अचानक स्मोकिंग छोड़ने पर जो आसार (withdrawal cravings) होने लगते हैं वो इससे कम होते हैं. और ये इलाज करीब दो महीने तक चलता है.


5. चैम्पिक्स (Champix): जाइबान की तरह ही इन टैबलेट्स को भी स्मोकिंग छोड़ने के 1-2 हफ्ते पहले लेना होता है और ये सिगरेट पीने पर उसकी तलब को मिटाती हैं. इसका इलाज करीब 12 हफ्ते तक चलता है.


स्मोकिंग छोड़ने के यत्न में जो अजीब-अजीब आसार (withdrawal symptomps) महसूस होते हैं वो ये हैं:


1.धूम्रपान की बहुत तीव्र इच्छा: क्योंकि दिमाग को निकोटिन की चाहत होती है. कुछ दिनों तक बुरी तरह से तलब होती रहती है फिर धीरे-धीरे कम होने लगती है.


2.मुँह में सूखापन व खांसी का आना: ये फेफड़ों में तारकोल की अचानक कमी से होता है. लेकिन ये आसार जल्दी ही गायब हो जाते हैं. गरम पेय पदार्थ सेवन करें.


3.भूख: शरीर में खाना पचाने की रस प्रक्रिया (मेटाबोलिस्म) में बदलाव आता है. स्मोकिंग बंद करने के बाद खाने का स्वाद अच्छा महसूस होने लगता है. अधिकतर फल और सब्जियाँ खायें व पानी खूब पियें. और चुइंगम चबायें.


4. कब्ज व दस्त आना: ये निकोटिन शरीर से निकलने की प्रक्रिया में होता है. क्योंकि शरीर अपनी सामान्य अवस्था में लौटने की कोशिश कर रहा है. फलों व पानी का खूब पीना जारी रखें.


5.सोने में परेशानी: ये भी शरीर से निकोटिन निकलने की प्रक्रिया से होता है. 2-3 हफ्ते लगते हैं स्थिति को सामान्य होने में. चाय व कॉफी का उपयोग कम कर दें और ताजी हवा में कुछ समय बितायें.


6.चक्कर आना: क्योंकि कार्बन मोनोकसाइड की जगह दिमाग में अब आक्सीजन पहुँच रहा है. कुछ दिनों बाद सब ठीक महसूस होने लगता है.


7. मिजाज में बदलाव, चिड़चिड़ापन और ध्यान में कमी: ये आसार भी निकोटिन की कमी हो जाने से महसूस होते हैं पर कुछ दिन में चले जाते हैं. परिवार व मित्रों को इस बदलाव के बारे में बुरा ना मानकर समझदारी से काम लेना चाहिये.


एक बार स्मोक फ्री हो जाने पर अपने में बदलाव महसूस करते हुये आप अपने अतीत को याद कीजिये तो खुद आपको बिश्वास नहीं होगा कि आपने कितना समय, ताकत और पैसा कभी अपनी स्मोकिंग की आदत पर फेंका था. साथ में हर समय स्वास्थ्य का खतरा भी मंडराता था. स्मोक फ्री होने का मतलब है: आपकी आपसे एक नयी पहचान.

धूम्रपान की लत

''चिमनी सी वो धुआँ उगलती जाय

ना छूटे रामा लत सिगरेट की हाय.''


मुझे पता है कि सिगरेट पीने वाले कुछ मित्र इस लेख को पढ़कर मुझसे नाराज हो जायेंगे...किन्तु मेरा किसी को नाराज या दुखी करने का इरादा नहीं है. बल्कि मैं उन सभी की शुभचिंतक हूँ.


सिगरेट पीना ना केवल पीने वाले के लिये हानिकारक है बल्कि जो लोग सिगरेट नहीं पीते उनका ऐसे लोगों से सोशल होना भी बहुत मुश्किल हो जाता है. और चाहें वो कई बार पास में बैठकर सिगरेट न पियें कुछ देर के लिये फिर भी उनके पास बैठने व बातचीत करने पर धुयें की महक आती रहती है. और ऐसे लोगों को जब पीने की तलब लगती है तो फिर वह पीने से रुक नहीं पाते. कुछ मेहमान या दोस्त ये जानते हुये भी कि मेजबान व उसका परिवार स्मोकिंग नहीं करता घर के अंदर पीने से नहीं चूकते और मेजबान चुपचाप मन में कुढ़ते हुये बर्दाश्त कर लेते हैं.


काफी पहले ऐसे लोगों के साथ बस, ट्रेन या प्लेन में यात्रा करने पर बैठना मुश्किल हो जाता था. क्यों उस समय ऐसे कोई रूल्स नहीं बने थे कि वह लोग वहाँ सिगरेट नहीं पी सकते. लेकिन जो नहीं पीता है अगर उसे कभी किसी स्मोकर के पास की सीट पर बैठना पड़े तो बहुत सरदर्द हो जाता है. फिर एक समय आया कि बस, ट्रेन और प्लेन में स्मोकर्स के अलग कम्पार्टमेंट कर दिये गये. लेकिन धुयें को उड़ने से तो मना नहीं कर सकते तो जिन लोगों को पास की पंक्ति में बैठना पड़ता था तो धुआँ उन तक उड़ता हुआ पहुँच जाता था और वो लोग फिर भुनभुनाते थे. कई बार जब अन्य लोग उनसे ऊब कर वहाँ सिगरेट ना पीने को कहते थे तो इस बात पर पीने वालों की जिद से लड़ाई-झगड़ा तक हो जाता था. क्योंकि वहाँ धूम्रपान ना करने के कोई रूल्स ना होने के कारण पीने वाले परिस्थिति का नाजायज फायदा उठाते थे. इसी तरह आफिस में भी सिगरेट पीने वालों को न पीने वाले लोग बर्दाश्त करते थे और कभी-कभी उनमे झक-झक भी हो जाती थी. आपस में तनाव की रेखायें खिंच जाती थी; काम करते हुये लोगों की भौंहों पर बल पड़े रहते थे...लेकिन सिगरेट स्मोकर फिर भी दीन दुनिया की परवाह किये वगैर धकाधक सिगरेट पीते रहते थे. सुपरमार्केट जैसी जगह में भी पीने वाले नहीं मानते थे. शापिंग ट्राली के संग टहलते हुये सिगरेट को फुकफुक करना जैसे अनिवार्य था उनके लिये.


अब समय के साथ करीब हर जगह इस समस्या का समाधान हो गया है. ट्रेन, प्लेन, बस, आफिस, सुपरमार्केट, थियेटर व सिनेमा के अंदर धूम्रपान करने की सख्त मनाही है वरना बहुत भारी हर्जाना ठुकने का डर रहता है. हर जगह आफिस में भी अब सख्त मनाही है पीने की. और काम करने वालों को जब तलब होती है सिगरेट फूँकने की तो वह अपनी तमन्ना आफिस की बिल्डिंग के बाहर जाकर पूरी करते हैं या फिर बिल्डिंग में कहीं उनके लिये एक अलग कमरा होता है जहाँ जाकर जी भर कर पीते हैं और कलेजा ठंडा करते हैं (जलाते हैं) अगर कोई धोखे से भी उस कमरे में पहुँच जाये तो ऐसा लगेगा कि जैसे मौत की सजा झेलने के लिये किसी गैस-चैम्बर में घुस गये हों.


बहुत बार जहाँ लोग धूम्रपान कर सकते हैं तो कभी-कभार कोई स्मोकर किसी नान स्मोकर पर उसकी तरफ मुँह करके सिगरेट का कश लेकर धुआँ छोड़ता है तो नाक की हालत इतनी खराब हो जाती है कि बताना मुश्किल है...और उसके धुयें से सारा चेहरा जैसे नहा सा जाता है.

गर्मी की हाय-तोबा

सुनती हूँ कि आप लोग वहाँ भारत की भभकती गर्मी में बिलबिला रहे हैं. उससे कुछ राहत / निजात पाने के लिये यही उपाय सूझ रहा है कि आप सब ठंडा जल, शरबत, लस्सी, ठंडाई व मौसम्बी के जूस को पीजिये. सलाद और फल आदि का सेवन कीजिये. और हाँ, आजकल तो आमों का सीजन है वहाँ तो तमाम किस्म के बढ़िया आम भी तो आ रहे होंगे इन दिनों. तो उन्हें व अन्य फलों को जैसे खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, अंगूर, जामुन, और खीरा भी शौक से खाइये. और आमला, सेव व बेल का मुरब्बा भी तो ठंडक पहुंचाता है तो उसे खाकर भी तरोताजा रहिये. रात में मच्छरों से अपनी सुरक्षा के लिये मच्छरदानी लगाना ना भूलें क्योंकि पंखे की हवा में भी ये दुष्ट अपनी दुष्टता से बाज नहीं आते.


एक सीक्रेट की बात भी...वो ये कि जो लोग आफिस में काम करते हैं वो रोज मुफ्त की हवा का लुत्फ़ उठायें...गरमी में ए सी की शीतलता से सुकून मिलने के साथ-साथ आपके पैसे की भी बचत होगी. ''एक पत्थर से दो चिड़ियों का शिकार'', है न ? या फिर आप लोग घर में हैं तो बिजली के पंखे व कूलर की ठंडक में पड़े रहिये. यदि इत्तफाक या आपकी बदकिस्मती से बिजली जाती है तो हाथ से झलने वाले पंखे सलामत रखिये..वो इस इमरजेंसी में बहुत काम आते हैं.


और यदि आप गाँव में हैं तो दरवाजा खुला रखिये और घर के अंदर हवा आने दीजिये. बरामदे में चारपाई पर आराम फरमाते हुये नैचुरल हवा का आनंद लीजिये. और अगर आपके यहाँ खुशकिस्मती से कोई पेड़ है नीम, आम, आमला, अमरुद, इमलिया, पीपल या बरगद...कुछ भी..तो उसके नीचे खरखरी खटिया पर विराजमान होकर सर्र-सर्र चलती हवा में आराम करिये...विश्वास कीजिये जो सुख इस पेड़ के नीचे आपको मिलेगा सोने में वो अतुलनीय है..उसका कोई मुकाबला नहीं पंखे की हवा से. और अगर वहाँ पर कोई कुआँ भी है तब तो सोने में सुहागा ! इसके मिनरल वाटर को पीकर मजे लीजिये और बिना बिजली के बिल की चिंता किये और उसके आने-जाने के नखरों को बिना सहे हुये सुबह, दोपहर शाम जब जी चाहे वाल्टी भर पानी शरीर पर उलीच कर नहाइये. इस स्वर्गीय सुख का आनंद लीजिये. रात में आंगन में खटिया पर बस एक दरी बिछाकर सोकर देखिये. पलकों को झपकाते हुये झींगुरों की आवाज़ व किसी आते-जाते मेढक की टर्र-टर्र के संगीत को सुनते हुये स्वप्नलोक की तरफ प्रस्थान करिये. और इस तरह गर्मी के सीजन के सुखों में खोकर अपने भाग्य को सराहिये. शुभ रात्रि !


* खरखरी=खुरदुरी, उलीच=उंडेलना

डायबिटीज और मरीज

डायबिटीज एक बहुत ही गंभीर बीमारी है जिसे एक बार हो जाने से इंसान को जिंदगी भर भुगतना पड़ता है. जब किसी को जांच करवाने पर पहली बार पता लगता है तो उस इंसान के व उसके परिवार के कदमों के नीचे से जैसे जमीन निकल जाती है. अब एक रिसर्च के मुताबिक सबके दिलों को हिला देने वाली खबर है कि हर तीन मिनट में एक इंसान डायबिटीज का शिकार होते हुये पाया जा रहा है. यहाँ इंग्लैंड में 3% लोग डायबेटिक हैं...और उनका नंबर बराबर बढ़ता ही जा रहा है. जिनमे अब युवा लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. और 2025 तक पूरे विश्व में डायबेटिक लोगों की संख्या दुगनी होने की सम्भावना की जा रही है.


डायबिटीज क्या है ?


डायबिटीज के लक्षण होते हैं हाई ब्लड सुगर लेवल या फिर लो ब्लड सुगर लेवल. और अगर डायबेटिक लोग लापरवाही बरतते हैं यानि अपने खान-पान में संतुलन नहीं रखते हैं तो इस असंतुलित ब्लड सुगर लेवल से उन्हें आँखों, किडनी, दिल, टांगों, पैरों और रक्तसंचार में बहुत समस्यायें पैदा हो सकती है.


शरीर का अग्न्याशय (Pancreas) अंतःस्राव (Harmone) को जिसे हम इंसुलिन कहते हैं उसे पैदा करता है. और इस इंसुलिन की सहायता से ग्लूकोस हमारे रक्तप्रवाह में पहुँचता है जिससे शरीर को ऊर्जा ( Energy) मिलती है. इंसुलिन की कमी व इसके ना होने से ग्लूकोस रक्तचाप में न पहुँचकर शरीर में इकठ्ठा हो जाता है और यूरिन में निकल जाता है. डायबिटीज का संबंध मोटापा व जननिक (Genetic) से भी है. या जो लोग मीठी चीज़ें अत्यधिक खाते हैं या शराब आदि बहुत पीते हैं उन्हें भी डायबिटीज हो जाने की अधिक सम्भावना रहती है. डाक्टर से इस बीमारी की पुष्टि होने के पहले इस बीमारी के आसार ये होते हैं:


1.प्यास का बहुत लगना.


2.अत्यधिक थकान.


3.दृष्टि में धुंधलापन.


4.बार-बार पेशाब जाना.


5.एकदम से तमाम वजन कम हो जाना.


6.घाव व जख्मों का जल्दी न भरना आदि.


जैसा कि अब अधिकाँश लोग जानते हैं डायबिटीज दो तरह की होती है:


A. टाइप 1 डायबिटीज: ये या तो जननिक (Genetic) होती है या अग्नाशय में शरीर के इम्यून सिस्टम या कहिये विषाणु (some Virus) से इंसुलिन पैदा करने वाले कोष की क्षति से इंसुलिन बिलकुल पैदा नहीं हो पाता. और इन मरीजों को हमेशा इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने की जरूरत होती है. इसका अब तक और कोई इलाज नहीं है. कितनी बार, कब और शरीर के किस हिस्से में हर दिन इंजेक्शन लेना है ये डाक्टर ही बताता है.


B. टाइप 2 डायबिटीज: डायबेटिक लोगों में से 90% डायबेटिक टाइप 2 के होते हैं जिनके शरीर में बहुत कम इंसुलिन बनती है या फिर शरीर उसका इस्तेमाल ढंग से नहीं कर पाता है.


डाक्टर और नर्स जैसे अनुभवी लोगों का सहारा होते हुये भी इंसान को हर दिन खुद ही अपनी बीमारी का सामना करना पड़ता है. इसलिये उसके बारे में क्या करना है उसे खुद समझदारी से काम लेना चाहिये. डायबिटीज का प्रबंधन यानि अनुशासन (Management) स्वयं करना सीखना चाहिये. सेहत के लिये व्यायाम करना, टहलना, तैरना अच्छा है. अपना वजन कम करना चाहिये व और कामों में भी सक्रिय रहना चाहिये. डायबेटिक के लिये मीठी व तली चीजों को खाने की बिलकुल मनाही नहीं होती है. बल्कि उन्हें बहुत कम खायें और भी खाने की अन्य चीजों में संतुलन रखें. घी का इस्तेमाल न करके ओलिव आयल या रिफाइंड आयल का उपयोग करें लेकिन बहुत कम. खाना सही समय पर खायें व ताजे फल और सब्जियों का अधिक प्रयोग करें.


नियमित रूप से डाक्टर को दिखाना, ब्लड सुगर लेवल, कोलेस्ट्रल लेवल, और आँखों की जाँच करवाना बहुत ही जरूरी होता है ताकि कोई समस्या बढ़ने के पहले उसका सही उपचार किया जा सके.

जल है जीवन-धन

जल जीवन का आदि और अंत है - इंसान के जीवन का मूलतत्व है. और केवल इंसान ही नहीं...सारी सृष्टि ही इस पर निर्भर है. पेड़-पौधे, हर जीव-जंतु व पशु-पक्षियों के प्राणों का ये आधार है. केवल भारत के क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में अब इसका अकाल पड़ा है यानि कि इसकी कमी हो रही है; और कितनी ही जगहों में पेय जल दूषित पाया जा रहा है. लेकिन जहाँ इसकी कुछ अधिकायत है तो वहाँ किफ़ायत नहीं. कुछ लोग इसे बेफिजूल खर्च करते हैं और बिना किसी पाबन्दी के नल आदि को कई बार बहने देते हैं.


ये हँसती-मुस्कुराती हुई प्रकृति अब धीरे-धीरे उदास सी दिखने लगी है. इतराकर शोर मचाकर बहने वाली नदियों की वेगवती धारायें अब कमजोर पड़ने लगी है. लबालब भरे हुये हिलोरें लेते हुये पोखर व तालाब अब सूखे पाये जा रहे हैं. लहलहाते हुये जंगल व उपवनों में अब वह पहले वाली हरियाली और घनेपन का अहसास नहीं होता. पेड़-पौधे मुरझाकर मर रहे हैं. पशु-पक्षियों की नस्लें धरती से मिटने लगी हैं इसमें जल की कमी का हाथ है और प्रकृति का बदलता रूप जिसकी गोद में ये सब चहचहाते हैं और खेलते हैं वो अपनी सुंदरता खोने लगी है. इस तरह से धरती का सीना एक दिन बिलकुल सूख जायेगा और तब इस सृष्टि में कोई जीवन नहीं बचेगा. और वह, जिसके सहारे हम बैठे हुये हैं..यानि इस सृष्टि का चित्रकार, चुपचाप कहीं मजबूर सा बैठा हुआ है कुछ भी करने में असमर्थ हो रहा है तो हमें ही कुछ करना चाहिये...सोचना चाहिये.


और तब बस यही उपाय समझ में आता है कि जल की त्राहि-त्राहि करते हुये संसार को बचाने के लिये हमें केवल अपने ही लिये नहीं बल्कि अपने समस्त देश व सारी दुनिया की भलाई के बारे में सोचना चाहिये. और इस जीवन-धन जल को बहुत किफ़ायत से खर्च करना चाहिये. ये मेरा सबसे विनम्र निवेदन है. धन्यबाद.


Saturday 7 May 2011

एकमत होना एक समस्या

अगर आप सब इस बात से सहमत हैं कि जमाना बदल गया है तो इसका मतलब है कि लोगों का हर बात की अहमियत समझने का नजरिया भी बदल गया है. धर्म, रीति रिवाज, खान-पान और रहन-सहन के बारे में आजकल हर जगह लोग स्वतंत्रता चाहते हैं. कहीं पति नास्तिक है तो पत्नी नहीं..तो पत्नी मन में ही प्रार्थना करती रहती है परिवार के लिये. और कभी-कभी पति के बिचार बदल जाते हैं तो वो आस्तिक बन जाते हैं. वरना शादी के बाद भी अधार्मिकता में अक्खड़ ही रहते हैं.

किसी ने हाल में ही मुझसे कहा है कि मैं कुछ ऐसा लिखूँ कि भारत के समाज में जो समस्यायें हैं और उनसे जो बिखराव है लोगों में वो दूर हो जाये और उनमें एकता आ जाये. वो लोग राजनीति के बखेड़ों में पड़कर उनकी ही बातें करते रहते हैं किन्तु अपने संप्रदाय से जुड़ी धार्मिक बातों में रूचि नहीं रखते. तो मैं चकित रह गयी कि इतनी दूर रहते हुये मैं वहाँ के लोगों को क्या समझा सकती हूँ. तो उन कुछ मुद्दों में से एक ये था कि मैं भारत में किसी धार्मिक समारोह में शामिल होने के लिये उनके संप्रदाय के लोगों को वहाँ जाने को प्रेरित करूँ जहाँ तमाम लोग उसे मनाने जा रहे हैं...यानि वो सब उस धार्मिक समारोह में एक होकर भाग लें. क्योंकि लोग सहमत होकर भी वहाँ जाकर भाग नहीं लेना चाहते. तो ये सुनकर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ. सोचने पे मजबूर हो गयी कि इंसान अपनों पर तो आजकल जोर नहीं रख पाता, उन्हें समझाने में दिक्कत होती है तो दूर रहने वालों को कोई कैसे समझा सकता है.


परिवार में आजकल बच्चों या पति पर भी जोर नहीं होता कि सब मिलकर किसी धार्मिक समारोह में भाग लेने कहीं चलें. किसमे कितनी इच्छा है और कितना उत्साह है इन बातों पर ध्यान रखना चाहिये और स्वेच्छा से काम होने चाहिये दबाब में नहीं. और फिर ये काम तो अपने देश में ही विभिन्न समुदाय के लोग खुद ही आपस की समझदारी से मतभेद दूर करके भी कर सकते हैं. जिन लोगों को मैं नहीं जानती और ना ही वो मुझे जानते हैं तो बिना उनके बिचारों को जाने हुये अपनी तानाशाही लादने का मुझे क्या हक है. और फिर दूसरी बात ये कि कोई मेरी बात क्यों सुनने व समझने लगा. धार्मिक व रीति रिवाज़ की बातों को कितना कोई निभाता है या नहीं अपने कुटुंब परिवार में ये लोगों के अपने बिचारों पर निर्भर करता है. किसी इंसान पर एक हद तक ही दबाब डाला जा सकता है वरना आपसी अनबन होने का डर रहता है. पहले बड़े लोगों की बातों को मानने को लोग तत्पर रहते थे पर अब कोई उनकी कही बातों को अहमियत नहीं देता. समय जो बदल गया है.


मैं यहाँ इतनी दूर हूँ. ये बातें मैं कैसे भारत में रहने वाले उन सब लोगों को समझा सकती हूँ...जब कि वहीं रहने वाले किसी अपने की कोई नहीं सुनता. वहाँ के समाज में मैं किसी को जानती तक नहीं व्यक्तिगत रूप से. ये आपस की बाते हैं धार्मिकता से सम्बंधित जिस पर लोगों को करने या न करने पर जोर नहीं डाला जा सकता. लोग आपस में ही सुलझायें तो बेहतर होगा. सम्लित परिवार में भी आजकल कहीं हिंदू बहू है तो कहीं क्रिश्चियन. माता-पिता की सेवा करवाने व उनके बिचारों को अपनी पत्नी पर लादने के लिये भी लोग इन दिनों शादी नहीं करते. आजकल हसबैंड माइंड नहीं करते कि पत्नी उन्ही के धर्म की हो. वो जो चाहती है करती है. शादी भी आपस का समझौता है. आज की पीढ़ी के लोग घर वालों, रिश्तेदारों या समस्त समाज को खुश करने की खातिर अपनी शादी नहीं करते. और लड़का-लड़की आजकल शादी के बाद धार्मिक व रीति रिवाज़ से सम्बंधित मसलों को खुद ही सुलझा लेते हैं. और किसी का भी हस्तक्षेप अपने जीवन के किसी निर्णय पर नहीं चाहते. आपस में ही तय कर लेते हैं कि वह किस बात की एक दूसरे को छूट दे रहे हैं.

जब किसी अवसर पर मूर्ति दर्शन कर पाओ मंदिर जाकर तब बड़ा अच्छा लगता है. लेकिन विदेश में रहते हुये ये सब सबके लिये संभव नहीं है. किन्तु भारत में तो हर जगह मंदिर हैं फिर भी कितने लोग रोज जाते हैं वहाँ ? और कुछ लोग तो घर में ही मूर्ति-स्थापना कर लेते हैं. लेकिन फिर भी सब सदस्य पूजा नहीं कर पाते मिलकर हर दिन...तो भारत में भी घर-घर की कहानी फरक है. धर्म का मसला बहुत व्यक्तिगत है...किसके दिल में क्या है...क्या बिचार हैं किस बारे में इस पर जोर नहीं. तमाम युवा पीढ़ी के लोग तो मन में भी धार्मिक आस्था नहीं रखते. सबसे बड़ा धर्म तो मानवता है. और सब अपना अच्छा बुरा समझते हैं. और मुझसे पहले न जाने कितनों ने इस तरह की समस्यायों पर लिखा होगा. कितने भारतीय लेखकों ने अपने बिचार लिखे होंगे. लेकिन फिर भी किसी का लिखा हुआ पढ़कर लोग उसे भूल जाते हैं या फिर कितने लोग हर लेख पढ़ना चाहते हैं और उन बातों पर अमल करना चाहते हैं. लेखक मात्र एक हँसी का पात्र बनकर रह जाता है जिसपर छींटाकशी हो सकती है यह कहकर कि :

''पर उपदेश कुशल बहुतेरे'' माइंड योर बिजिनेस वाली बात होगी...और कुछ नहीं.

जो लोग मुझे मान देते हैं, ये कहकर कि मेरे कुछ लिखने से शायद लोगों में बिखराव कम हो जाये या कुछ मुद्दों पर वो लोग संगठित हो जायें, उस मान की मैं कदर करती हूँ और खुशी होती है. लेकिन मैं कोई मसीहा तो नहीं. क्या कहकर या करके किसी को समझाया जा सकता है. दुनिया भर के लोगों ने जो समझाने की कोशिश की होगी लेख लिखकर या किसी समस्या पर चर्चा करके अन्य लोगों को फिर भी असर नहीं हुआ. तो फिर उन्हीं बातों पर पता नहीं कहाँ-कहाँ दुनिया भर में फैले भारतीय लोगों को संगठित करके समाज की खुशी के लिये समझाना या ऐसे बिचारों को थोपना, जिनका मैं पास रहने वालों पर भी प्रभाव नहीं डाल सकी, मेरे लिये एक सपना है. अब क्या मैं कोई अनशन करूँ अन्ना हजारे की तरह भारत आकर ? और वो तो सरकार से एक शिकायत थी..राष्ट्र के लिये था और लोकपाल बिल का खाका खींचा गया फिर भी अब तक खटाई में पड़ा है. लेकिन ये कदम तो सामाजिक मुद्दों के लिये उठाने को पूछा जा रहा है. जहाँ अनशन करके लोगों की बिचारधारा बदलने की मांग रखी भी जाये तब भी कौन-कौन परवाह करेगा उस माँग की.


हर कोई अपने आप ही जानता है कि परिवार व समुदाय में क्यों बिखराव है और उसे कैसे दूर किया जा सकता है. मैं किसी की आलोचना नहीं कर रही..सिर्फ आज के युग की वास्तविकता से परिचित करा रही हूँ. और इस तरह के तमाम लोगों से मिलकर ही हमारा आज का समाज बनता है. और उस समाज में जो लोग रह रहे हैं वो कितने नजदीक हैं, क्या बिचार हैं उनके आदि बातों पर विमर्श करके किसी भी सामाजिक समस्या को स्वयं सुलझायें एक दूसरे की भावनाओं को समझते व कदर करते हुये तो बेहतर होगा. राष्ट्र व समाज से जुडी समस्यायें बड़ी विकट होती हैं और उन्हें उसी देश में रहने वाले लोग सुलझा सकते हैं. या वहाँ के तमाम प्रभावशाली लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि कहाँ क्या हो रहा है और उसकी नब्ज़ कहाँ पर पकड़नी चाहिये.


Sunday 1 May 2011

नयी पीढ़ी, नया परिवेश

नयी कौम है नया जमाना, और सबकी है एक कहानी

बच्चों की सोच बदल गयी, सब करते अपनी मनमानी.


कितने ही लोगों से सुनने में आता है कि आजकल के बच्चे कुछ और ही तरीके से सोचने लगे हैं. उन्हें ये ख्याल अच्छा नहीं लगता कि माता-पिता ने उन्हें अपने बुढ़ापे का सहारा बनने के वास्ते अपने स्वार्थ के लिये पैदा किया है. भारत व विदेशों के बच्चों की सोच अब करीब-करीब एक सी हुई जा रही है. अधिक बंधन लगाने से माता-पिता को डर रहता है कि कहीं उन्हें खो न दें यानि कहीं वो अलग ना रहने लगें या बोलना ही छोड़ दें उनसे. इसलिये बच्चों से उन्हें जरा दब कर रहना पड़ता है. वो जमाने गये जब बड़े लोग उन्हें उपदेश दे सकते थे और वो समझदारी से सुनते थे और बच्चे फिर उन बातों पर अमल करते थे. अब तो बड़े भी उनसे कुछ कहते डरते हैं. पहले बड़े सलाह देते थे और अब बच्चे सलाह लेते नहीं बल्कि देने लगे हैं. पहले के बच्चे पूछते थे कि 'ये काम करना ठीक रहेगा या नहीं' , या 'क्या हम वहाँ चले जायें ठीक होगा या नहीं ?' लेकिन नयी पीढ़ी के कहते हैं कि 'हम ये करने जा रहे हैं ' या 'हम वहाँ जा रहे हैं '( कभी-कभी तो वो भी कहना जरूरी नहीं समझते ) और ये ऐलान वो अचानक कभी भी कर सकते हैं. अपने को दुनियादारी की हर बात में बहुत होशियार समझते हैं. और कभी उनसे घर में हेल्प लेने का प्लान बनाओ तो पता चलता है कि वो पहले से ही अपने पार्टनर या फ्रेंड्स के साथ कोई और प्लान बना चुके हैं. अपने दोस्तों का साथ देने को घर में हेल्प देने का प्लान कैंसिल कर देते हैं. दोस्तों को माता-पिता से अधिक अहमियत देने लगे हैं. क्योंकि उन्हें घर में किसी की परवाह नहीं. उनका मन क्या करता है करने को बस इस बात की परवाह करते हैं. दबाब डालने या समझाने पर वो बोर हो जाते हैं या बीच में ही नाराज़ होकर चले जाते हैं पूरी बात बिना सुने.


और बेटे अगर शादी शुदा हैं तो उनकी बीबियों को घर की सफाई सुथराई करना नहीं भाता है. तो या तो बेटे करते हैं या फिर माता-पिता. आजकल की सासें तो वैसे भी बहू के आने पर उनसे सब काम नहीं लेतीं. वो इतनी एक्टिव रहना चाहती हैं कि तमाम काम खुद ही कर लेती हैं. लेकिन जब बहू अपनी जिम्मेदारी किसी भी काम की न समझे तब बहुत मुश्किल हो जाती है. बहू से सास-ससुर डर के मारे केवल इशारे से ही कहते हैं किसी काम के लिये कभी तो वोह समझ के भी समझना नहीं चाहतीं. कि देखो तुम कुछ भी कहो हम पर तुम जोर नहीं रख सकते हम अपनी मनमानी करेंगें. और अगर किसी का अकेला बेटा है और साथ रहता है माँ-बाप के साथ शादी के बाद भी तो भी बहू को अखरता है. उसे तो सास के रूप में एक नौकरानी मिल जाती है लेकिन सास को और अकेलापन...क्योंकि अब बेटा भी उतना नहीं बोलता माँ से. और माँ अपना दर्द सीने में छिपाये रहती है कि कुछ कहने से कहीं बेटा को बुरा न लग जाये और अलग ना रहने लगे. काम के बारे में नयी बहुयें सोचती हैं कि वह बाहर काम करती हैं. उन्हें नहीं पता कि एक दिन सास भी काम पर जाती थी और उसके बाद घर की पूरी ड्यूटी भी करती थी सातों दिन. लेकिन नयी पीढ़ी की बहुयें सुपरमार्केट से खाने की चीजें फ्रिज व फ्रीजर में भर लेती हैं, सफाई के बारे में बहुत आलसी...उन कामों को करने की वजाय सहेली से मिलने खिसक लेती हैं. लेकिन सास अपने जमाने में घर का काम पूरा निपटा के तब मिलती थी सहेलियों से. बहुत अंतर है, है न ?


और आजकल वाली तो बाहर का खाना खाने को हर समय तैयार रहती हैं. घर में खाना सास तैयार किये बैठी है और वो लोग ऐलान कर देते हैं बाहर का खाना खाने को. काम करके सास चाहें कितना ध्यान रखे बहू का और लाड़-प्यार करे उसे अपनी बेटी मानकर पर उससे एक बेटी की तरह की हेल्प नहीं मिलती. वीकेंड का इंतज़ार करते हैं तो बहू बिना बताये हर वीकेंड का प्लान बना चुकी होती है. सारा दिन के लिये आउट. बेटे अपनी पत्नियों की हर बात से सहमत रहते हैं. साल के किन्ही खास अवसरों के अलावा माँ-बाप के संग कहीं जाना भी नहीं अब पसंद करते वो लोग. तो सिचुएशन ये होती है उन माँ-बाप के लिये कि अपने पास कभी-कभार बिठाकर उनसे कोई बात तो करना दूर उनकी तो शकल देखना भी अधिक नसीब नहीं हो पाता वीकेंड पर भी. और बहुयें जब घर पर रहती हैं तो अपने कमरे में बंद रहकर सारा दिन टीवी या किसी और मनोरंजन में व्यस्त रहती हैं. सास का डिप्रेशन और बढ़ जाता है. और बेटे महसूस ही नहीं करते कि उनकी पत्नी कुछ देर उनकी माँ के पास भी बैठे. इस तरह की समस्यायें कितने ही माता-पिता व सास-ससुर के लिये जटिल होती जा रही हैं. फिर भी माता-पिता अपने बहू बेटे को दिलो-जान से चाहते हैं..और हर समय उनका भला मनाते हैं.

विलियम व कैथरीन की शादी - 29.04.2011

देखते ही देखते समय बीत गया और प्रिंस चार्ल्स के दोनों बेटे विलियम व हैरी बड़े हो गये. और आज है 28 साल के बड़े बेटे प्रिंस विलियम की शादी का दिन. पूरे जोर-शोर से लन्दन में कल से उत्सव मनाया जा रहा था. वैसे भी लोगों को यहाँ किसी बात का बहाना चाहिये उत्सव के नाम पर...और फिर ये तो एक प्रिंस की शादी है. तो आप समझ सकते हैं कि यहाँ लंदन में इस पर कितनी चर्चा और धूम-धड़क्का हो रहा होगा. सुबह से ही आसमान पर हलके बादल छाये हुये थे. सबको डर था कि कहीं बारिश ना हो और दूर-दूर से आये हुये लोगों को, जो शादी का जुलूस देखने के लिये हर सड़क के फुटपाथों पर जमा हो रहे थे कल रात से ही, उन्हें निराश न होना पड़े. उस भीड़ में तमाम लोग विदेशों से भी आये हुये थे. जबकि ये समारोह वह अपने देश में टीवी पर भी घर बैठे देख सकते थे. लोगों की लंबी कतारें लगी थीं सड़क के किनारों पर, पुलिस की कड़ी निगरानी में. पर हम यहाँ घर पर ही इत्मीनान से टीवी के आगे जमे बैठे थे...खाने-पीने का इंतजाम करके. चाय आदि पीते हुये आराम से ये सब तमाशा देखना शुरू किया. बेकार में भीड़ में जाकर हाथ-पैर कुचलवा के क्या फ़ायदा.

खैर, आगे बढ़ते हैं...Westminster Abbey जहाँ हर शाही शादी होती है उसके अंदर लाल रंग की कालीन बिछी हुई थी और बाहर तमाम प्रसिद्ध हस्तियाँ यानि बड़े नामी लोग दिख रहे थे जो अंदर जाकर अपने लिये नियुक्त सीट पर बैठने की जल्दी में थे. उनमे मिस्टर बीन, एल्टन जॉन, बेकहैम और पोश, जॉन मेजर, केनेथ विलियम और भी न जाने कितने पुराने चेहरे दिख रहे थे. दूर खड़ी हुई भीड़ में से निरंतर शोर उठ रहा था. उनमें तमाम लोग ब्रिटिश झंडे की डिजाइन को चेहरे पर पेंट करवाये हुये थे, वस्त्र व हैट के रूप में भी पहने हुये थे, कुछ लोग हाथ में झंडों को पकड़े हुये खुशी से चीख रहे थे. भीड़ में छोटे-छोटे बच्चे तक बड़े धैर्य से प्रतीक्षा कर रहे थे. सड़कों के किनारे कतार में ऊँचे-ऊँचे शाही झंडे फहरा रहे थे. और लंदन के प्रसिद्ध हाइड पार्क में दो बहुत बिशाल स्क्रीन लगायी गयी थीं..जिनपर बराबर सब कुछ लाइव शो आ रहा था. ऊपर से हेलीकाप्टर नीचे के सीन का कवरेज कर रहे थे और नीचे तमाम और मीडिया के लोग. सड़कों पर कारें बहुत ही शालीनता से मेहमानों को लेकर आ रही थीं.

थोड़ी देर में विलियम भी अपने भाई हैरी के साथ एक शाही कार में आ गये. और Abbey के अंदर जाते हुये सबसे हँसते बोलते एक प्राइवेट एरिया में चले गये. रुक-रूककर चर्च की घंटियाँ बज रही थीं. यहाँ की रानी व दूर और पास के सभी रिश्तेदार भी आ गये और उनके बाद बिदेशों के निमंत्रित शाही मेहमान भी. कैथरीन की बहिन फिलिप्पा जो ब्राइडमेड है साथ में चार और छोटी-छोटी ब्राइडमेड के संग आती है और अब कैथरीन भी लिमजीन में अपने पिता के संग आ गयी उनका हाथ पकड़े हुये, जैसा कि रिवाज़ है. वह सर पर रानी का दिया हुआ छोटा सा मुकुट (किरीट) पहने थी जो 1936 में बना था और इसी अवसर के लिये शाही खानदान की बहुओं को पहनने को दिया जाता है. Abbey के अंदर मयूजिक आरंभ हो गया. प्रिंस विलियम भी आकर कैथरीन के साथ दाहिने तरफ खड़े हो गये. प्रीस्ट ने वचन पढ़े और उन दोनों ने एक दूसरे का साथ जीवन के हर अच्छे-बुरे समय में निभाने की हामी भरी. विलियम ने कैथरीन को एक अँगूठी पहनाई. और दोनों ने जाकर मैरिज रजिस्टर में हस्ताक्षर किये. फिर एक तरफ जाकर सीटों पर बैठ गये. कुछ देर ईश्वर की प्रार्थना की ध्वनि गूँजती रही. सबके ओंठ हिल रहे थे उच्चारण करते हुये. सब कुछ बहुत ही शानदार तरीके से संपन्न हुआ. अंदर बाहर सब प्रकार की व्यबस्था का बहुत ही भव्य प्रदर्शन था. काश ! आज प्रिंस विलियम की माँ प्रिंसेस डायना अपने बेटे की शादी देखने व उसे आशिर्वाद देने को यहाँ होती.

चर्च की घंटियाँ निरंतर बजे जा रही थीं. फिर कुछ देर बाद दोनों पति-पत्नी शाही घोड़ा-गाड़ी में बैठे और बकिंघम पैलेस को रवाना हुये. उनकी छोटी-छोटी हरकतें भी टीवी पर आ रही थीं. उनके चारों ओर घोड़ों पर सवार शाही गार्ड्स चल थे. शाही जोड़ा सड़कों पर खड़ी भीड़ को अपने हाथ हिलाके उनका धन्यबाद कर रहा था जो वहाँ घंटों से उनकी झलक देखने को बेचैन थी. हर तरफ खुशी की लहरें दौड़ रही थीं. आसमान शोर से जैसे गूँज रहा था. और वो दोनों मुस्कुराते हुये उनके बीच से निकल रहे थे हाथ हिलाते हुये. ये सब जैसे किसी पुरानी कहानी की तस्वीरों जैसा परीलोक की शादी का सीन लग रहा था. बकिंघम पैलेस पहुँच कर कुछ समय पश्चात वो दोनों महल की बाहरी बालकनी पर आये और यहाँ की रिवाज के मुताबिक विलियम व कैथरीन ने सारी पब्लिक के सामने चुम्बन लिया. दूर से दर्शकों में कोलाहल उठा और तमाम भीड़ ने उन दोनों को तमाम बधाइयाँ दीं.

मैं ये आलेख लिख रही हूँ और वहाँ इस समय बकिंघम पैलेस में शाही दावत दी जा रही होगी. सुना है कि रानी जी यानि क्वीन ने 300 लोगों को इनवाइट किया है किन्तु हमें पता है कि उनमें हमारा नाम नहीं है. फिर भी हमारी तरफ से प्रिंस विलियम व प्रिंसेस कैथरीन को उनकी शादी पर बधाई व तमाम शुभकामनायें !

फेसबुक के भूत

अब हम भी क्या क्या करें....


दिल की कुछ बातें कहनी ही पड़ती हैं

दोस्त हैं तो शेयर करनी ही पड़ती हैं

फेसबुक मुँह देखे की दुनिया है दोस्तों

गर शेयर ना करो तो बहुत अखरती हैं.


कल रात फेसबुक पर दो सहेलियाँ बातचीत कर रही थीं...नाम गुमनाम ही रहने दीजिये तो अच्छा रहेगा. लीजिये चुपचाप आप भी उनकी बातचीत का लुत्फ़ उठाइये:


सहेली १: मुझे फेसबुक के भूतों से बहुत डर लगता है.

सहेली २: क्या मतलब है तुहारा ?

सहेली १: पता है कुछ देर पहले क्या हुआ था ?

सहेली २: नहीं पता...बताओ क्या हुआ ?

सहेली १: एक मित्र की हरकतें कुछ दिनों से सही नहीं थीं...इनबाक्स में आकर अजीब से शब्द कहकर भाग जाते थे..और मैं हमेशा चुप रहती थी...और आज तो हद ही हो गयी.

सहेली २: क्या किया उसने ?

सहेली १: आज उसने भूत की तरह एक्टिंग करके मुझे डराया..और मैं डर गयी.

सहेली २: तो क्या कहा उसने ?

सहेली १: बोला...HOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO

सहेली २: तुमने भी फिर कुछ कहा ?

सहेली १: हाँ, मैंने उससे कहा...SHOOOOOOOOOOOOOOOOOOO

सहेली २: उसके बाद ?

सहेली १: उसके बाद मैंने उसे असली भूत बना दिया.

सहेली २: वो कैसे ?

सहेली १: ब्लाक कर दिया.

रचनाओं से सम्बंधित एक दुख की सूचना

दोस्तों,

मुझे ये सब कहते हुये बड़ा अफ़सोस हो रहा है किन्तु फिर भी जानकारी देने को कहना / पूछना पड़ रहा है कि...

क्या कभी किसी ने आपकी लिखी रचनाओं को आपके न जाने हुये अपने नाम से पोस्ट किया है अपने नोट में ?...क्यों कि मेरे साथ ऐसा हुआ है. और किसी की इस हरकत के बारे में मुझे कल पता लगा. मैं उनका नाम लेकर सबको बताकर उन्हें लज्जित नहीं करना चाहती...किन्तु मुझे बहुत धक्का लगा था..और अब भी सदमे में हूँ. हुआ ये कि कल एक नयी फ्रेंड रिक्वेस्ट को मैंने जब स्वीकार किया तो उनके पन्ने पर जाकर पता लगा कि उन्होंने मेरी दो कवितायें अपने नाम से लगाई हुई थीं..लेकिन उनमें कहीं भी मेरा नाम मेंशन नहीं किया गया था.

पूछने पर पता लगा कि उन्होंने मेरे ब्लाग से कापी पेस्ट किया था...और ये जानकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई कि उन्हें मेरा ब्लाग बहुत अच्छा लगा था. किन्तु उन्होंने रचनाओं में मेरा नाम न डालकर अपना नाम डाला हुआ था और लोगों से कमेन्ट भी ले रहे थे अपने नाम पर. फिर मेरे कहने व शिकायत करने पर उनमें मेरा नाम डाला. इस तरह पता नहीं पहले भी मेरी कितनी और रचनाओं के संग ऐसा किया होगा. तो समस्या यह है कि न जाने कितने और लोग भी इस तरह की गलत बात कर रहे होंगे. मैं किस-किसका पता लगाकर उन लोगों को बताऊँ कि इस तरह की बात करना अनुचित है. पढ़ने वाले गलतफहमी में आकर उन्हें उसी इंसान की रचित रचना समझ कर कमेन्ट दे रहे होंगे..फिर भी वो नहीं बताते कि वो पोएम उनकी नहीं किसी और की लिखी हैं. फेसबुक से शेयर करने में कम से कम मेरा नाम तो रचना के साथ आ सकता था.

बहुत दुख के साथ आपकी फेसबुक मित्र

- शन्नो अग्रवाल

तेरी याद अब भी आती है - भाग 2

प्रिय भारत,

लो आज मैं फिर आ गयी तुमसे बात करने को..अब तुम सोच रहे होगे कि मैंने तुमसे परसों बात करते हुये अंत में कल यानि उसके अगले दिन यानि जो कल गुजर गया...फिर बात करने का वादा किया था कि अपनी बातचीत जारी रखूँगी लेकिन वो वादा पूरा न कर सकी और इसका मुझे अहसास है..इसका बुरा ना मानना क्यों कि कुछ कारन हो गया था. शायद तुम्हें मेरी बातें बकबास लग रही हों...क्योंकि हमारी बातचीत इक तरफ़ा रहती है..मैं ही बोल सकती हूँ..तुम तो मौन हो. इसलिये मैं तुमसे खुद ही बातें करती रहती हूँ. तुम्हारी खासियत यही है कि तुम मेरी और सबकी बातें सुनकर हमेशा बस चुप ही रहते हो..इसलिये मुझे यदि दिल की बात कहना है तो कहती ही जाऊँगी. करने को तो वैसे बहुत सारी बाते हैं..लेकिन सब कुछ इकठ्ठा तो नहीं कह सकती ना ?

हाँ, तो मैं कह रही थी कि इंसान के सभी किये हुये वादे झूठे नहीं होते बल्कि किसी बात या मजबूरी से कभी मुस्तकिल नहीं हो पाते हैं. ये सब मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ वर्ना आगे से मैं कोई वादा नहीं करूँगीं..हाँ..क्या समझे ? बात यूँ हुई कि कल कहीं से तुम्हारी ही शरण में रहने वाली गरीब महिलाओं के बारे में बहुत दुखद और दयनीय हाल पढ़ने का मौका लगा..तो उसके बाद दिल बहुत बेचैन हो गया और तुम्हे पत्र लिखने की वजाय उनके बारे में एक रचना लिखने लगी थी..फिर इतना थक गयी कि निद्रा देवी की गोद में सर रख के भयानक सपनों के लोक में पहुँच गयी. जहाँ इतनी भीड़ थी कि पूछो ना..लोग चारों तरफ तुम्हारे गाने गा रहे थे '' मेरा भारत महान..आई लव माई इंडिया..आई एम प्राउड टु बी एन इंडियन ..हमारे वतन जैसा कोई और वतन नहीं..भारत एक ऐसा देश है जहाँ सभी धर्म मिलकर रहते हैं..मेरे देश की धरती सोना है..भारत की जन्म भूमि हमारी जननी है जो स्वर्ग से महान है ''...आदि-आदि. और मेरा दिमाग बौखला रहा था सोचकर कि तमाम लोग तुम्हें महान कहने के वावजूद भी तुम्हारा अपमान करने से नहीं चूकते..जरा तुम ही सोचो कि ये सब कुछ कितना सच है या नहीं. और अगर सच है तो कितना ?

जहाँ मानवता की तारीफ होती है वहाँ पे न जाने कितनी गरीब औरतों व छोटे बच्चों को ऐसे काम करने पड़ते हैं कि दिल दहल जाये. जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों तक से महरूम रहते हैं वो लोग. अपने पेट की ज्वाला बुझाने और तन ढँकने को इस बेरहम दुनिया में हर काम करने को तैयार हो जाते हैं. कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें करते हुये उनके हाथ तक गल जाते हैं...घंटों ही बहुत मुश्किल और खतरे वाले काम करने पर भी जरा से ही पैसे पाते हैं. जो लोग ऊँचे-ऊँचे घरों में रहकर तमाम सुख सुविधा का आनंद लेते हुये इस तरह के तुच्छ काम पैसे के लिये मजबूर लोगों से करवाते हैं और ढंग से पैसे भी नहीं देते बदले में तो क्या उनमें मानवता है ?

पता है तुम्हें कि कितने बहरुपिये तुम्हें धोखा दे रहे हैं ? वो लोग तुम्हारे सीने पर बहने वाली पवित्र गंगा में स्नान करते हैं..तुमको महान कहते हैं...फिर अपने काले कारनामों से तुम्हें बदनाम करते हैं..तुम्हें महान कहकर तुम्हारी चापलूसी करके तुम्हारी दशा बिगाड़ रहे हैं...तुम्हारे अपने बच्चे आपस में फूट डाले हुये हैं..आपस में सहनशक्ति नहीं है फिर भी सबको झूठी दिलासा देते हैं..ये सहकर तुम्हें कैसा लगता होगा. और तुम्हें तो पता है कि जो धरती पे सोना उगाने वाले हैं उनका क्या अंजाम हो रहा है. लेकिन तुम तो चुप हो..मौन हो सब सहते हुये. क्योंकि तुम्हारे रूप को सजाने और सुधारने वाले तुम्हारे बच्चे एक दूसरे का गला काटने को तैयार हैं. तुम्हारी आँखों के तले कितने अन्याय हो रहे हैं, कितना भ्रष्टाचार और कुरीतियाँ पनपे जा रही हैं. एकता की बात करने वाले खुद ही एक दूसरे को सीधी आँख से देख नहीं सकते. जलन, आलोचना करने वाले और दूसरों को सहारा न देकर उसकी मजबूरियों का फायदा उठाने वाले लोग जब इसके नारे लगाते हैं देश पर राज करने के लिये तो मन में बहुत रोष भर जाता है. पता नहीं कितने ताकत वाले कितनों की जान ले रहे हैं और कितने ही गरीब और निसहाय अपनी जान दे रहे हैं. अरे देखो बात करते-करते आज फिर जम्हाइयाँ आनी शुरू हो गयी हैं...लगता है कि अब गुड नाइट कहने का समय आ गया है..आज दिन में मैं बाहर भी गयी थी कुछ घंटों को तो थकान भी बहुत हो रही है...पर फिर भी तुमसे बात किये बिना न रह सकी. अब आज अगली बार का वादा नहीं कर रही हूँ..पर बातें तो अभी भी बहुत करनी हैं...चलो तो फिर तुमको गुड नाइट और स्वीट ड्रीम्स...काश तुम्हारे ड्रीम्स पूरे हो सकें....

तुम्हारे अतीत से बिछुड़ी एक कड़ी

- मैं


तेरी याद अब भी आती है - भाग 1

तेरी याद मुझे अक्सर आती है

खाली लम्हों में मुझे सताती है.

प्रिय भारत,

कैसे हो ? आज अचानक दिमाग में पता नहीं क्यों कुछ उचंग उठी और तुम्हे पत्र लिखने को जी चाहा जो अब लिख रही हूँ. तुम्हें तो शायद मेरी याद तक न होगी..क्योंकि तुम्हारे पास तो पता नहीं कितने लोग हैं उनमें ध्यान बंटा रहता होगा. सुना है कि आजकल तुम बहुत उदास और परेशान रहते हो...और मैं अक्सर यह सोचती हूँ कि तुमसे मिले और तुम्हें देखे हुये बहुत समय हो गया है..कभी-कभी तो तुम्हारी बहुत याद आती है. कई बार ऐसे ही खाली पलों में या कभी कहीं आते-जाते भी तुम्हारी याद आ जाती है. कुछ भी हो मैं तुम्हें वेवफा नहीं कहती..क्यूँ कि...

न हम वेवफा थे न तुम वेवफा थे

यूँ कहो हमारे सितारे कुछ खफा थे.

ये हमारी मजबूरियत थी..किस्मत में हमारा बिछड़ना ही लिखा था. लेकिन जब-जब तुम्हारा अहसास होता है..तो आँखें बंद करके उन मीठी यादों में डूब जाती हूँ. तुम्हारे संग बिताये वो साल और उन सालों के सुखद-दुखद पल याद आते रहते हैं..और इतने साल होने के वावजूद भी तुम अब भी मेरी यादों में रहते हो...तो मैं वेवफा कैसे हो सकती हूँ..तुममें अब भी अपनापन ढूँढती हूँ. हाँ, तुम मुझे मूरख कह सकते हो, नादान कह सकते हो..पर क्या करूँ तुमसे अपनेपन का अहसास कभी गया ही नहीं...अब भी मोह जाल में फँसी हूँ कि अगर तुम्हारे पास होती तो कैसा लगता मुझे...इस तरह की बातें अक्सर चक्कर काटती रहती हैं अपुन के भेजे में. खैर, अभी तो ढेर सारी बातें और करनी हैं तुमसे..लेकिन ये काया आपे में नहीं है..इस समय बहुत जोरों की नींद आ रही है..दिमाग सुन्न होने लगा है..इसलिये बुरा ना मानना. कल तुमसे फिर बातें करूँगी शायद इसी समय. तो अब गुड नाइट..स्वीट ड्रीम्स..लेकिन मीठे सपनों से क्या होगा..वो तो सपने ही रहते हैं.

तुम्हारे अतीत की एक कड़ी

- मैं