Friday 26 August 2011

एक ही संतान..तो ?

आजकल पति-पत्नी शादी के बाद बच्चों के बारे में खुद फैसला करते हैं कि परिवार की साइज कितनी बड़ी होनी चाहिये...यानि प्लानिंग कितने सालों की हो और कितने बच्चे उन्हें चाहिये. अपने बच्चे सबको खुद पालने पड़ते हैं तो उन्हें पैदा करने के बारे में किसी के कहने पर क्यों निश्चय करें. आप सबको ये जानकर आश्चर्य होगा कि आजकल पश्चिमी देशों में कुछ लोग तो चाइल्ड-फ्री रहने का इरादा रखते हैं. खैर, परिवार के बारे में कभी-कभी तो लोग चाहते हैं एक से दो या अधिक बच्चे किन्तु कभी-कभी कुछ लोगों की किस्मत में एक से अधिक बच्चा नहीं लिखा होता है तो उन्हें एक से ही संतोष करना पड़ता है. उन लोगों पर ''नहीं से कुछ भला'' वाली बात लागू हो जाती है. तो समाज में जहाँ ऐसे लोग हैं वहीं वो लोग भी हैं जो एक से अधिक बच्चा ही नहीं चाहते हैं.

और उस औरत के बारे में भी यही बात थी. उसके एक बेटा था और वह व उसका पति दोनों ही एक बच्चे से संतुष्ट थे...दोनों ही खुश थे. किन्तु समाज के लोगों को चैन नहीं पड़ता है..उन्हें दखलंदाजी करने की आदत जो होती है. इसलिये उन दोनों को आये-दिन ही लोगों की तरह-तरह की बातें सुननी पड़तीं थीं. लोगों के सवाल का सामना करना पड़ता था: ''कितने बच्चे हैं तुम्हारे ?'' और ''केवल एक'' सुनकर उनकी भौहें चढ़ जाती थीं जैसे उनका कोई व्यक्तिगत नुकसान हो गया हो. और जब उन्हें पता लगता था कि वह बच्चा नौ साल का है तब तो उनको जैसे दहशत सी हो जाती थी सोचकर कि अब तक दूसरा क्यों नहीं हुआ. ''ओह ! केवल एक'' कहकर बड़ी रंजिश व्यक्त करते हुये साँस खींच कर रह जाते थे. उस औरत को तो लोगों से मिलते हुये भी डर लगता था. वह दोनों ही पति-पत्नी काम करते थे और अपने बच्चे को बहुत प्यार करते थे...उनका बेटा उनकी खुशियों का केंद्र था फिर भी वह दूसरे बच्चे के बारे में सोचना नहीं चाहते थे. पर इस बात को तमाम लोगों को समझाना बहुत मुश्किल था.

मौका मिलने पर तमाम अजनबी लोग और जिन औरतों के कई बच्चे होते थे वह भी उसके इकलौते बच्चे के बारे में जानकर आश्चर्य प्रकट करके ''अकेला एक'' कहकर उस औरत को अजीब निगाह से देखते थे. यहाँ तक कि पार्टी में एक बार उन पति-पत्नी को उनके एक मित्र ने उपदेश दिया कि उन दोनों को इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिये जब कि वह आदमी खुद तलाकशुदा था और अपने बच्चों के साथ नहीं रहता था. ऐसी बातों को झेलकर वह सोचा करती थी कि उन लोगों का क्या हाल होता होगा जो जिंदगी भर बच्चों के ववाल में नहीं पड़ना चाहते. क्यों नहीं लोग खुद चैन से जीते हैं और दूसरों को भी चैन से जीने देते हैं इस दुनिया में.

उसके बिचार से जिनके कई सारे भाई-बहिन होते हैं उनमें अक्सर लड़ाई-झगड़े व आपस में प्रतिस्पर्धा भी हो जाती है अगर परिवार में कोई बच्चा अधिक फेवरिट हो तो. लेकिन उनका अकेला बच्चा होने के कारण किसी अन्य बच्चे के फेवरिट होने का सवाल ही पैदा नहीं होता और वह अपना पूरा प्यार व ध्यान उसी पर दे रहे हैं. उनका बेटा ना बड़ा, ना मंझला और ना ही कभी छोटा कहलायेगा..और वह एक इंसान है ना कि नंबर जहाँ सोचना पड़े कि वह सब बच्चों में किस नंबर पर आता है. किन्तु ऐसी बातें वह अधिक बच्चों वाली माँओं को नहीं बता सकती थी क्योंकि उन सबका अधिक बच्चे पैदा करने का अपना निश्चय था और ये सचाई सुनकर उन्हें बुरा लग सकता था. इसलिये अपने मन में ही ये बातें रखती थी. वह पति-पत्नी दोनों ही खुश थे क्योंकि ये उनका आपस का फैसला था सिर्फ एक बच्चे के बारे में किन्तु वह ऐसे लोगों के बारे में भी जानती थी जहाँ पति-पत्नी में से एक को तो अधिक बच्चे चाहिये पर दूसरे को नहीं और तब उनकी शादी-शुदा जिंदगी में बहुत समस्यायें आती होंगी, क्योंकि इससे एक का दिल टूट जाता है.

उन दोनों के करीबी मित्र उनके फैसले की कद्र करते हैं लेकिन विस्तृत रूप से समाज का दबाब ऐसे लोगों के लिये एक सिर दर्द बना हुआ है. कई लोग तो उनसे ये भी पूछते हैं कि अगर लड़की होने की गारंटी हो तो क्या वह लोग दूसरा बच्चा चाहेंगे. क्योंकि लड़कियाँ अपने माता-पिता को अधिक प्यार करती हैं..माँ के साथ में शोपिंग जाना, घर के काम में हाथ बंटाना आदि-आदि. लेकिन अगर सोचें तो कब तक ये बातें भी खुशी देंगी...आजकल जमाना बदल गया है. बड़े होकर बेटा-बेटी सभी बच्चे मूडी हो जाते हैं और एक दिन सभी अपनी-अपनी अलग जिंदगी जीने लगते हैं चाहे वो बेटा हो या बेटी. दोस्तों के संग आउटिंग जरूरी होती है ना कि माँ के साथ घर के काम में हाथ बंटाना. तो बेटा या बेटी में क्या फर्क ? और जहाँ तक उनके बेटे के बचपन में बहिन-भाइयों के साथ खेलने की बात है तो उसके साथ खेलने वाले उसके तमाम दोस्त हैं जिनसे उसे अकेलापन नहीं महसूस होता. स्कूल से सम्बंधित व और कई सारी एक्टिविटीज में उसे तमाम दोस्तों का साथ मिलता है. और उसे घर में अपने खिलौनों को खेलते हुये किसी और से झगड़ा भी नहीं करना पड़ता.

घर में अपने माता-पिता के साथ बोर्ड गेम खेलना, टीवी देखना, बातें करना, बाहर आउटिंग पर जाना और उनसे शिक्षा सम्बंधित बातों में सहायता मिलना आदि बातों से वह अकेला कहाँ महसूस कर पाता है. और सबसे बड़ी बात तो यह है कि परिवार की साइज़ एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला है जिसमें दखल देने का किसी को हक नहीं होना चाहिये. फिर भी न जाने क्यों ऐसी कहानियाँ हम सभी सुनते रहते हैं जहाँ लोग विवेचना करते रहते हैं कि किसी का परिवार छोटा या बड़ा क्यों है ? उस औरत की समझ में नहीं आता कि अगर कोई खुश है अपनी जिंदगी में तो किसी अजनबी को क्यों बेचैनी होती है जानकर कि किसी के एक ही संतान क्यों है. इसपर आप लोगों का क्या मत है ?


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