Sunday 5 June 2011

धूम्रपान से छुटकारा

देखा जाये तो धूम्रपान करना आमतौर से लोगों की एक आदत है. किसी न किसी कारण से वो लोग पीना शुरू कर देते हैं और फिर पता ही नहीं चलता कि कब वो स्मोकिंग के बुरी तरह से आदी हो गये. कितने ही लोग सोचते भी हैं इस आदत को छोड़ने को लेकिन उन्हें ये पता नहीं होता कि इससे निजात पाने के लिये क्या करना चाहिये.


जो लोग धूम्रपान करते हैं वो कुछ देर को जरा कल्पना करके देखें कि यदि वो स्मोकिंग करना बंद कर दें तो उसी दिन से उनके जीवन में परिवर्तन आना शुरू हो जायेंगे..उनकी बेहतरी के लिये उनकी पूरी जिंदगी ही बदल जायेगी. फेफड़ों में कैंसर का खतरा कम व बलगम बनना भी कम हो जाता है, हार्ट अटैक के चांस बहुत कम हो जाते हैं, मानसिक तनाव में कमी व साँस लेने में आसानी हो जाती है. स्मोकिंग बंद करने के 48 घंटे बाद ही आप बदलाव महसूस करने लगेंगे और आपका शरीर निकोटिन से मुक्त हो जायेगा.


इंग्लैंड में हजारों लोगों ने धूम्रपान छोड़ दिया है. लेकिन उस मंजिल तक पहुँचने के लिये सबको एक सी ही राहों से गुजरना पड़ा. स्मोकिंग से छुटकारा पाने की कोशिश करते हुये कई लोगों का संकल्प टूट जाता है और वो दोबारा स्मोकिंग करने लगते हैं लेकिन इसमें चिंता करने की बात नहीं है. क्योंकि अक्सर कुछ लोग 4-5 बार की असफलता के बाद भी प्रयास करते हुये हमेशा के लिये सिगरेट पीना छोड़ देते हैं. जिस तरह एक बच्चे के कदम लड़खड़ाते हैं पर कोशिश करते-करते संभल जाता है और फिर अच्छी तरह से चलने लगता है बस ऐसा ही स्मोकर्स के साथ भी होता है.


जरा इन बातों पर गौर कीजिये:


1. स्मोकिंग छोड़ने के बारे में सबसे पहले तो आप ये निर्णय लीजिये कि आप इसके बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं और आपका संकल्प पक्का है. एक-एक कदम बढ़ाते हुये ही आप सफलता की पूरी सीधी चढ़ पायेंगे. और पहले से प्लान करिये कोई एक दिन जब आप उस दिन बिलकुल भी स्मोकिंग नहीं करेंगे.


2. अगर आप किसी और को भी जानते हैं जो स्मोकिंग करता है तो उसे भी आप साथ देने को कह सकते हैं एक दूसरे का सहारा पाकर इस आदत को छोड़ना और आसान हो जायेगा.


3. स्मोकिंग से विच्छेद करते हुये लोगों को अजीब-अजीब आसार (withdrawal symptoms) महसूस होते रहते हैं जिनका मुकाबला करने के लिये शुरू में निकोटिन-फ्री प्रोडक्ट का उपयोग करना चाहिये.


4. जहाँ लोग स्मोकिंग कर रहे हों तो वहाँ जाने से अपने पर कंट्रोल करिये ताकि आपको फिर कहीं तलब ना लगने लगे.


5. ये सोचिये कि जो पैसा आप सिगरेट आदि पर खर्च करते हैं उसे बचाकर अपनी किसी और अच्छी जरूरत में लगा सकते हैं.


6. और सबसे बड़ी बात ये कि अपनी इच्छा शक्ति को प्रबल रखते हुये मन को समझाइये कि अगर और तमाम लोग स्मोकिंग की आदत छोड़ने में सफल हो सकते हैं तो आप भी वैसा कर सकते हैं. ‘’बस एक सिगरेट और’’ के बारे में बिलकुल ना सोचें. अपने पास कोई सिगरेट, दियासलाई या लाइटर ही न रखें.


लेकिन खाली संकल्प-शक्ति से भी काम नहीं चलता है तमाम लोगों का. तो उस परिस्थिति में सहायता करने के लिये निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरापी (NRT ) का सहारा लें. मार्केट में निकोटिन की एवज में तमाम प्रोडक्ट हैं जिनसे लोगों को निकोटिन की तलब से छुटकारा मिलता है, जैसे कि पैच (पट्टी), चुइंगम और इन्हेलेटर्स. इन चीजों का उपयोग करने के वावजूद भी यदि ग्रुप थेरापी को भी ज्वाइन कर लें तो सफलता के चांस और भी बढ़ जाते हैं. ग्रुप में लोग आपस में अपना अनुभव बांटते हैं और धीरे-धीरे इस आदत को छोड़ने का प्रोत्साहन व हिम्मत जुटाते हैं. सिगरेट छोड़ने की शुरुआत करते हुये पहले कुछ दिन बहुत मुश्किल होते हैं फिर तलब धीरे-धीरे कम होने लगती है.


मार्केट में ये प्रोडक्ट उपलब्ध हैं:


1. निकोटिन गम (Nicotine Gum): इन्हें चबाकर मुँह के अंदर साइड में रखा जाता है और निकोटिन धीरे-धीरे जीभ के जरिये अंदर पहुँचती रहती है.


2. निकोटिन पैच (Nicotine Patch): ये पेबंद या टेप की तरह होते हैं जिन्हें शरीर पर लोग दिन में या 24 घंटे भी लगाये रह सकते हैं. बहुत लोगों का अपने अनुभव से कहना है कि उन्हें निकोटिन पैच से बहुत मदद मिली, बिना उसके प्रयोग के शायद वो स्मोकिंग ना छोड़ पाते.


3. इन्हेलेटर्स (Inhalators): ये एक प्लास्टिक सिगरेट की तरह होते हैं जिनसे निकोटिन भाप के रूप में मुँह व गले में पहुँचता है.


4. जाइबान (Zyban): इन टैबलेट्स को स्मोकिंग छोड़ने के 1-2 हफ्ते पहले से लेना शुरू करते हैं. अचानक स्मोकिंग छोड़ने पर जो आसार (withdrawal cravings) होने लगते हैं वो इससे कम होते हैं. और ये इलाज करीब दो महीने तक चलता है.


5. चैम्पिक्स (Champix): जाइबान की तरह ही इन टैबलेट्स को भी स्मोकिंग छोड़ने के 1-2 हफ्ते पहले लेना होता है और ये सिगरेट पीने पर उसकी तलब को मिटाती हैं. इसका इलाज करीब 12 हफ्ते तक चलता है.


स्मोकिंग छोड़ने के यत्न में जो अजीब-अजीब आसार (withdrawal symptomps) महसूस होते हैं वो ये हैं:


1.धूम्रपान की बहुत तीव्र इच्छा: क्योंकि दिमाग को निकोटिन की चाहत होती है. कुछ दिनों तक बुरी तरह से तलब होती रहती है फिर धीरे-धीरे कम होने लगती है.


2.मुँह में सूखापन व खांसी का आना: ये फेफड़ों में तारकोल की अचानक कमी से होता है. लेकिन ये आसार जल्दी ही गायब हो जाते हैं. गरम पेय पदार्थ सेवन करें.


3.भूख: शरीर में खाना पचाने की रस प्रक्रिया (मेटाबोलिस्म) में बदलाव आता है. स्मोकिंग बंद करने के बाद खाने का स्वाद अच्छा महसूस होने लगता है. अधिकतर फल और सब्जियाँ खायें व पानी खूब पियें. और चुइंगम चबायें.


4. कब्ज व दस्त आना: ये निकोटिन शरीर से निकलने की प्रक्रिया में होता है. क्योंकि शरीर अपनी सामान्य अवस्था में लौटने की कोशिश कर रहा है. फलों व पानी का खूब पीना जारी रखें.


5.सोने में परेशानी: ये भी शरीर से निकोटिन निकलने की प्रक्रिया से होता है. 2-3 हफ्ते लगते हैं स्थिति को सामान्य होने में. चाय व कॉफी का उपयोग कम कर दें और ताजी हवा में कुछ समय बितायें.


6.चक्कर आना: क्योंकि कार्बन मोनोकसाइड की जगह दिमाग में अब आक्सीजन पहुँच रहा है. कुछ दिनों बाद सब ठीक महसूस होने लगता है.


7. मिजाज में बदलाव, चिड़चिड़ापन और ध्यान में कमी: ये आसार भी निकोटिन की कमी हो जाने से महसूस होते हैं पर कुछ दिन में चले जाते हैं. परिवार व मित्रों को इस बदलाव के बारे में बुरा ना मानकर समझदारी से काम लेना चाहिये.


एक बार स्मोक फ्री हो जाने पर अपने में बदलाव महसूस करते हुये आप अपने अतीत को याद कीजिये तो खुद आपको बिश्वास नहीं होगा कि आपने कितना समय, ताकत और पैसा कभी अपनी स्मोकिंग की आदत पर फेंका था. साथ में हर समय स्वास्थ्य का खतरा भी मंडराता था. स्मोक फ्री होने का मतलब है: आपकी आपसे एक नयी पहचान.

धूम्रपान की लत

''चिमनी सी वो धुआँ उगलती जाय

ना छूटे रामा लत सिगरेट की हाय.''


मुझे पता है कि सिगरेट पीने वाले कुछ मित्र इस लेख को पढ़कर मुझसे नाराज हो जायेंगे...किन्तु मेरा किसी को नाराज या दुखी करने का इरादा नहीं है. बल्कि मैं उन सभी की शुभचिंतक हूँ.


सिगरेट पीना ना केवल पीने वाले के लिये हानिकारक है बल्कि जो लोग सिगरेट नहीं पीते उनका ऐसे लोगों से सोशल होना भी बहुत मुश्किल हो जाता है. और चाहें वो कई बार पास में बैठकर सिगरेट न पियें कुछ देर के लिये फिर भी उनके पास बैठने व बातचीत करने पर धुयें की महक आती रहती है. और ऐसे लोगों को जब पीने की तलब लगती है तो फिर वह पीने से रुक नहीं पाते. कुछ मेहमान या दोस्त ये जानते हुये भी कि मेजबान व उसका परिवार स्मोकिंग नहीं करता घर के अंदर पीने से नहीं चूकते और मेजबान चुपचाप मन में कुढ़ते हुये बर्दाश्त कर लेते हैं.


काफी पहले ऐसे लोगों के साथ बस, ट्रेन या प्लेन में यात्रा करने पर बैठना मुश्किल हो जाता था. क्यों उस समय ऐसे कोई रूल्स नहीं बने थे कि वह लोग वहाँ सिगरेट नहीं पी सकते. लेकिन जो नहीं पीता है अगर उसे कभी किसी स्मोकर के पास की सीट पर बैठना पड़े तो बहुत सरदर्द हो जाता है. फिर एक समय आया कि बस, ट्रेन और प्लेन में स्मोकर्स के अलग कम्पार्टमेंट कर दिये गये. लेकिन धुयें को उड़ने से तो मना नहीं कर सकते तो जिन लोगों को पास की पंक्ति में बैठना पड़ता था तो धुआँ उन तक उड़ता हुआ पहुँच जाता था और वो लोग फिर भुनभुनाते थे. कई बार जब अन्य लोग उनसे ऊब कर वहाँ सिगरेट ना पीने को कहते थे तो इस बात पर पीने वालों की जिद से लड़ाई-झगड़ा तक हो जाता था. क्योंकि वहाँ धूम्रपान ना करने के कोई रूल्स ना होने के कारण पीने वाले परिस्थिति का नाजायज फायदा उठाते थे. इसी तरह आफिस में भी सिगरेट पीने वालों को न पीने वाले लोग बर्दाश्त करते थे और कभी-कभी उनमे झक-झक भी हो जाती थी. आपस में तनाव की रेखायें खिंच जाती थी; काम करते हुये लोगों की भौंहों पर बल पड़े रहते थे...लेकिन सिगरेट स्मोकर फिर भी दीन दुनिया की परवाह किये वगैर धकाधक सिगरेट पीते रहते थे. सुपरमार्केट जैसी जगह में भी पीने वाले नहीं मानते थे. शापिंग ट्राली के संग टहलते हुये सिगरेट को फुकफुक करना जैसे अनिवार्य था उनके लिये.


अब समय के साथ करीब हर जगह इस समस्या का समाधान हो गया है. ट्रेन, प्लेन, बस, आफिस, सुपरमार्केट, थियेटर व सिनेमा के अंदर धूम्रपान करने की सख्त मनाही है वरना बहुत भारी हर्जाना ठुकने का डर रहता है. हर जगह आफिस में भी अब सख्त मनाही है पीने की. और काम करने वालों को जब तलब होती है सिगरेट फूँकने की तो वह अपनी तमन्ना आफिस की बिल्डिंग के बाहर जाकर पूरी करते हैं या फिर बिल्डिंग में कहीं उनके लिये एक अलग कमरा होता है जहाँ जाकर जी भर कर पीते हैं और कलेजा ठंडा करते हैं (जलाते हैं) अगर कोई धोखे से भी उस कमरे में पहुँच जाये तो ऐसा लगेगा कि जैसे मौत की सजा झेलने के लिये किसी गैस-चैम्बर में घुस गये हों.


बहुत बार जहाँ लोग धूम्रपान कर सकते हैं तो कभी-कभार कोई स्मोकर किसी नान स्मोकर पर उसकी तरफ मुँह करके सिगरेट का कश लेकर धुआँ छोड़ता है तो नाक की हालत इतनी खराब हो जाती है कि बताना मुश्किल है...और उसके धुयें से सारा चेहरा जैसे नहा सा जाता है.

गर्मी की हाय-तोबा

सुनती हूँ कि आप लोग वहाँ भारत की भभकती गर्मी में बिलबिला रहे हैं. उससे कुछ राहत / निजात पाने के लिये यही उपाय सूझ रहा है कि आप सब ठंडा जल, शरबत, लस्सी, ठंडाई व मौसम्बी के जूस को पीजिये. सलाद और फल आदि का सेवन कीजिये. और हाँ, आजकल तो आमों का सीजन है वहाँ तो तमाम किस्म के बढ़िया आम भी तो आ रहे होंगे इन दिनों. तो उन्हें व अन्य फलों को जैसे खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, अंगूर, जामुन, और खीरा भी शौक से खाइये. और आमला, सेव व बेल का मुरब्बा भी तो ठंडक पहुंचाता है तो उसे खाकर भी तरोताजा रहिये. रात में मच्छरों से अपनी सुरक्षा के लिये मच्छरदानी लगाना ना भूलें क्योंकि पंखे की हवा में भी ये दुष्ट अपनी दुष्टता से बाज नहीं आते.


एक सीक्रेट की बात भी...वो ये कि जो लोग आफिस में काम करते हैं वो रोज मुफ्त की हवा का लुत्फ़ उठायें...गरमी में ए सी की शीतलता से सुकून मिलने के साथ-साथ आपके पैसे की भी बचत होगी. ''एक पत्थर से दो चिड़ियों का शिकार'', है न ? या फिर आप लोग घर में हैं तो बिजली के पंखे व कूलर की ठंडक में पड़े रहिये. यदि इत्तफाक या आपकी बदकिस्मती से बिजली जाती है तो हाथ से झलने वाले पंखे सलामत रखिये..वो इस इमरजेंसी में बहुत काम आते हैं.


और यदि आप गाँव में हैं तो दरवाजा खुला रखिये और घर के अंदर हवा आने दीजिये. बरामदे में चारपाई पर आराम फरमाते हुये नैचुरल हवा का आनंद लीजिये. और अगर आपके यहाँ खुशकिस्मती से कोई पेड़ है नीम, आम, आमला, अमरुद, इमलिया, पीपल या बरगद...कुछ भी..तो उसके नीचे खरखरी खटिया पर विराजमान होकर सर्र-सर्र चलती हवा में आराम करिये...विश्वास कीजिये जो सुख इस पेड़ के नीचे आपको मिलेगा सोने में वो अतुलनीय है..उसका कोई मुकाबला नहीं पंखे की हवा से. और अगर वहाँ पर कोई कुआँ भी है तब तो सोने में सुहागा ! इसके मिनरल वाटर को पीकर मजे लीजिये और बिना बिजली के बिल की चिंता किये और उसके आने-जाने के नखरों को बिना सहे हुये सुबह, दोपहर शाम जब जी चाहे वाल्टी भर पानी शरीर पर उलीच कर नहाइये. इस स्वर्गीय सुख का आनंद लीजिये. रात में आंगन में खटिया पर बस एक दरी बिछाकर सोकर देखिये. पलकों को झपकाते हुये झींगुरों की आवाज़ व किसी आते-जाते मेढक की टर्र-टर्र के संगीत को सुनते हुये स्वप्नलोक की तरफ प्रस्थान करिये. और इस तरह गर्मी के सीजन के सुखों में खोकर अपने भाग्य को सराहिये. शुभ रात्रि !


* खरखरी=खुरदुरी, उलीच=उंडेलना

डायबिटीज और मरीज

डायबिटीज एक बहुत ही गंभीर बीमारी है जिसे एक बार हो जाने से इंसान को जिंदगी भर भुगतना पड़ता है. जब किसी को जांच करवाने पर पहली बार पता लगता है तो उस इंसान के व उसके परिवार के कदमों के नीचे से जैसे जमीन निकल जाती है. अब एक रिसर्च के मुताबिक सबके दिलों को हिला देने वाली खबर है कि हर तीन मिनट में एक इंसान डायबिटीज का शिकार होते हुये पाया जा रहा है. यहाँ इंग्लैंड में 3% लोग डायबेटिक हैं...और उनका नंबर बराबर बढ़ता ही जा रहा है. जिनमे अब युवा लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. और 2025 तक पूरे विश्व में डायबेटिक लोगों की संख्या दुगनी होने की सम्भावना की जा रही है.


डायबिटीज क्या है ?


डायबिटीज के लक्षण होते हैं हाई ब्लड सुगर लेवल या फिर लो ब्लड सुगर लेवल. और अगर डायबेटिक लोग लापरवाही बरतते हैं यानि अपने खान-पान में संतुलन नहीं रखते हैं तो इस असंतुलित ब्लड सुगर लेवल से उन्हें आँखों, किडनी, दिल, टांगों, पैरों और रक्तसंचार में बहुत समस्यायें पैदा हो सकती है.


शरीर का अग्न्याशय (Pancreas) अंतःस्राव (Harmone) को जिसे हम इंसुलिन कहते हैं उसे पैदा करता है. और इस इंसुलिन की सहायता से ग्लूकोस हमारे रक्तप्रवाह में पहुँचता है जिससे शरीर को ऊर्जा ( Energy) मिलती है. इंसुलिन की कमी व इसके ना होने से ग्लूकोस रक्तचाप में न पहुँचकर शरीर में इकठ्ठा हो जाता है और यूरिन में निकल जाता है. डायबिटीज का संबंध मोटापा व जननिक (Genetic) से भी है. या जो लोग मीठी चीज़ें अत्यधिक खाते हैं या शराब आदि बहुत पीते हैं उन्हें भी डायबिटीज हो जाने की अधिक सम्भावना रहती है. डाक्टर से इस बीमारी की पुष्टि होने के पहले इस बीमारी के आसार ये होते हैं:


1.प्यास का बहुत लगना.


2.अत्यधिक थकान.


3.दृष्टि में धुंधलापन.


4.बार-बार पेशाब जाना.


5.एकदम से तमाम वजन कम हो जाना.


6.घाव व जख्मों का जल्दी न भरना आदि.


जैसा कि अब अधिकाँश लोग जानते हैं डायबिटीज दो तरह की होती है:


A. टाइप 1 डायबिटीज: ये या तो जननिक (Genetic) होती है या अग्नाशय में शरीर के इम्यून सिस्टम या कहिये विषाणु (some Virus) से इंसुलिन पैदा करने वाले कोष की क्षति से इंसुलिन बिलकुल पैदा नहीं हो पाता. और इन मरीजों को हमेशा इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने की जरूरत होती है. इसका अब तक और कोई इलाज नहीं है. कितनी बार, कब और शरीर के किस हिस्से में हर दिन इंजेक्शन लेना है ये डाक्टर ही बताता है.


B. टाइप 2 डायबिटीज: डायबेटिक लोगों में से 90% डायबेटिक टाइप 2 के होते हैं जिनके शरीर में बहुत कम इंसुलिन बनती है या फिर शरीर उसका इस्तेमाल ढंग से नहीं कर पाता है.


डाक्टर और नर्स जैसे अनुभवी लोगों का सहारा होते हुये भी इंसान को हर दिन खुद ही अपनी बीमारी का सामना करना पड़ता है. इसलिये उसके बारे में क्या करना है उसे खुद समझदारी से काम लेना चाहिये. डायबिटीज का प्रबंधन यानि अनुशासन (Management) स्वयं करना सीखना चाहिये. सेहत के लिये व्यायाम करना, टहलना, तैरना अच्छा है. अपना वजन कम करना चाहिये व और कामों में भी सक्रिय रहना चाहिये. डायबेटिक के लिये मीठी व तली चीजों को खाने की बिलकुल मनाही नहीं होती है. बल्कि उन्हें बहुत कम खायें और भी खाने की अन्य चीजों में संतुलन रखें. घी का इस्तेमाल न करके ओलिव आयल या रिफाइंड आयल का उपयोग करें लेकिन बहुत कम. खाना सही समय पर खायें व ताजे फल और सब्जियों का अधिक प्रयोग करें.


नियमित रूप से डाक्टर को दिखाना, ब्लड सुगर लेवल, कोलेस्ट्रल लेवल, और आँखों की जाँच करवाना बहुत ही जरूरी होता है ताकि कोई समस्या बढ़ने के पहले उसका सही उपचार किया जा सके.

जल है जीवन-धन

जल जीवन का आदि और अंत है - इंसान के जीवन का मूलतत्व है. और केवल इंसान ही नहीं...सारी सृष्टि ही इस पर निर्भर है. पेड़-पौधे, हर जीव-जंतु व पशु-पक्षियों के प्राणों का ये आधार है. केवल भारत के क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में अब इसका अकाल पड़ा है यानि कि इसकी कमी हो रही है; और कितनी ही जगहों में पेय जल दूषित पाया जा रहा है. लेकिन जहाँ इसकी कुछ अधिकायत है तो वहाँ किफ़ायत नहीं. कुछ लोग इसे बेफिजूल खर्च करते हैं और बिना किसी पाबन्दी के नल आदि को कई बार बहने देते हैं.


ये हँसती-मुस्कुराती हुई प्रकृति अब धीरे-धीरे उदास सी दिखने लगी है. इतराकर शोर मचाकर बहने वाली नदियों की वेगवती धारायें अब कमजोर पड़ने लगी है. लबालब भरे हुये हिलोरें लेते हुये पोखर व तालाब अब सूखे पाये जा रहे हैं. लहलहाते हुये जंगल व उपवनों में अब वह पहले वाली हरियाली और घनेपन का अहसास नहीं होता. पेड़-पौधे मुरझाकर मर रहे हैं. पशु-पक्षियों की नस्लें धरती से मिटने लगी हैं इसमें जल की कमी का हाथ है और प्रकृति का बदलता रूप जिसकी गोद में ये सब चहचहाते हैं और खेलते हैं वो अपनी सुंदरता खोने लगी है. इस तरह से धरती का सीना एक दिन बिलकुल सूख जायेगा और तब इस सृष्टि में कोई जीवन नहीं बचेगा. और वह, जिसके सहारे हम बैठे हुये हैं..यानि इस सृष्टि का चित्रकार, चुपचाप कहीं मजबूर सा बैठा हुआ है कुछ भी करने में असमर्थ हो रहा है तो हमें ही कुछ करना चाहिये...सोचना चाहिये.


और तब बस यही उपाय समझ में आता है कि जल की त्राहि-त्राहि करते हुये संसार को बचाने के लिये हमें केवल अपने ही लिये नहीं बल्कि अपने समस्त देश व सारी दुनिया की भलाई के बारे में सोचना चाहिये. और इस जीवन-धन जल को बहुत किफ़ायत से खर्च करना चाहिये. ये मेरा सबसे विनम्र निवेदन है. धन्यबाद.