Sunday 5 June 2011

धूम्रपान की लत

''चिमनी सी वो धुआँ उगलती जाय

ना छूटे रामा लत सिगरेट की हाय.''


मुझे पता है कि सिगरेट पीने वाले कुछ मित्र इस लेख को पढ़कर मुझसे नाराज हो जायेंगे...किन्तु मेरा किसी को नाराज या दुखी करने का इरादा नहीं है. बल्कि मैं उन सभी की शुभचिंतक हूँ.


सिगरेट पीना ना केवल पीने वाले के लिये हानिकारक है बल्कि जो लोग सिगरेट नहीं पीते उनका ऐसे लोगों से सोशल होना भी बहुत मुश्किल हो जाता है. और चाहें वो कई बार पास में बैठकर सिगरेट न पियें कुछ देर के लिये फिर भी उनके पास बैठने व बातचीत करने पर धुयें की महक आती रहती है. और ऐसे लोगों को जब पीने की तलब लगती है तो फिर वह पीने से रुक नहीं पाते. कुछ मेहमान या दोस्त ये जानते हुये भी कि मेजबान व उसका परिवार स्मोकिंग नहीं करता घर के अंदर पीने से नहीं चूकते और मेजबान चुपचाप मन में कुढ़ते हुये बर्दाश्त कर लेते हैं.


काफी पहले ऐसे लोगों के साथ बस, ट्रेन या प्लेन में यात्रा करने पर बैठना मुश्किल हो जाता था. क्यों उस समय ऐसे कोई रूल्स नहीं बने थे कि वह लोग वहाँ सिगरेट नहीं पी सकते. लेकिन जो नहीं पीता है अगर उसे कभी किसी स्मोकर के पास की सीट पर बैठना पड़े तो बहुत सरदर्द हो जाता है. फिर एक समय आया कि बस, ट्रेन और प्लेन में स्मोकर्स के अलग कम्पार्टमेंट कर दिये गये. लेकिन धुयें को उड़ने से तो मना नहीं कर सकते तो जिन लोगों को पास की पंक्ति में बैठना पड़ता था तो धुआँ उन तक उड़ता हुआ पहुँच जाता था और वो लोग फिर भुनभुनाते थे. कई बार जब अन्य लोग उनसे ऊब कर वहाँ सिगरेट ना पीने को कहते थे तो इस बात पर पीने वालों की जिद से लड़ाई-झगड़ा तक हो जाता था. क्योंकि वहाँ धूम्रपान ना करने के कोई रूल्स ना होने के कारण पीने वाले परिस्थिति का नाजायज फायदा उठाते थे. इसी तरह आफिस में भी सिगरेट पीने वालों को न पीने वाले लोग बर्दाश्त करते थे और कभी-कभी उनमे झक-झक भी हो जाती थी. आपस में तनाव की रेखायें खिंच जाती थी; काम करते हुये लोगों की भौंहों पर बल पड़े रहते थे...लेकिन सिगरेट स्मोकर फिर भी दीन दुनिया की परवाह किये वगैर धकाधक सिगरेट पीते रहते थे. सुपरमार्केट जैसी जगह में भी पीने वाले नहीं मानते थे. शापिंग ट्राली के संग टहलते हुये सिगरेट को फुकफुक करना जैसे अनिवार्य था उनके लिये.


अब समय के साथ करीब हर जगह इस समस्या का समाधान हो गया है. ट्रेन, प्लेन, बस, आफिस, सुपरमार्केट, थियेटर व सिनेमा के अंदर धूम्रपान करने की सख्त मनाही है वरना बहुत भारी हर्जाना ठुकने का डर रहता है. हर जगह आफिस में भी अब सख्त मनाही है पीने की. और काम करने वालों को जब तलब होती है सिगरेट फूँकने की तो वह अपनी तमन्ना आफिस की बिल्डिंग के बाहर जाकर पूरी करते हैं या फिर बिल्डिंग में कहीं उनके लिये एक अलग कमरा होता है जहाँ जाकर जी भर कर पीते हैं और कलेजा ठंडा करते हैं (जलाते हैं) अगर कोई धोखे से भी उस कमरे में पहुँच जाये तो ऐसा लगेगा कि जैसे मौत की सजा झेलने के लिये किसी गैस-चैम्बर में घुस गये हों.


बहुत बार जहाँ लोग धूम्रपान कर सकते हैं तो कभी-कभार कोई स्मोकर किसी नान स्मोकर पर उसकी तरफ मुँह करके सिगरेट का कश लेकर धुआँ छोड़ता है तो नाक की हालत इतनी खराब हो जाती है कि बताना मुश्किल है...और उसके धुयें से सारा चेहरा जैसे नहा सा जाता है.

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