Sunday 27 June 2010

लालू के कारनामे : भाग 4

आज लालू जब स्कूल से वापस आये तो अपनी ही उधेड़बुन में थे...हाथ में एक साफ्टी पकड़े खाते हुये घर में घुसे जो टपाटप जमीन पर हाथ से पिघल कर गिर रही थी. दोपहर की गर्मी आज बर्दाश्त के बाहर थी, बाहर आँगन में जमीन बिलकुल तवे की तरह गर्म होकर तप रही थी और कुछ बंदर वहाँ उछल कूद कर रहे थे..लालू ने अपना बैग चारपाई पर पटका और अपनी मम्मी को आवाज़ लगायी जो कहीं नहीं दिख रही थी..वैसे तो उनकी मम्मी कुछ न कुछ करती ही रहती थी घर में..लेकिन आज खाना बनाकर कुछ देर पहले कमरे में जाकर आराम करने लगीं थीं..लालू की निगाह बाहर गयी और वहाँ उन्हें कुछ बंदर दिख गये. तो जल्दी से बंदरों को भगाने वाला एक लम्बा डंडा उठाया और बाहर गये जहाँ पर सूखते हुये कपड़ों को एक बंदरिया खींचने की कोशिश कर रही थी..बंदरिया लालू को देख नहीं पायी तो लालू ने चुपके से उस पर कस कर डंडा जमा दिया..बंदरिया लालू पर जोर से कुछ खौखियाई और फिर कपड़े जमीन पर छोड़ कर पड़ोसी की छत पर कूद कर भाग गयी. उसके पड़ोसी के छत पर कूदते ही किसी बिल्ली की जोर से म्याऊँ-म्याऊँ की दर्दनाक चीखें आईं..लालू ने झाँका तो वह बंदरिया वहाँ घूमती एक बिल्ली से उलझी हुई थी..लालू ने उन दोनों पर कुछ गिट्टियाँ फेंकीं और संतुष्ट होकर अन्दर वापस आ गये. घर में कहारिन जिसका नाम अनीता था बर्तन मांज रही थी उसने लालू को डांटा कि ऐसा करने से बंदरिया उन्हें काट भी सकती थी..तो लालू पलटे और अनीता पर चिल्लाने लगे.

लालू : '' मम्मी कहाँ है और ये रिया दीदी भी नहीं दिख रही है ? और तू अपना मुँह बंद रखा कर अनीता..मुझे पता है कि बंदरों को कैसे भगाया जाता है.''

अनीता: '' तुम्हारी मम्मी अन्दर है आराम कर रही है और रिया अपनी सहेली से मिलने उसके घर गयी है.''
( और मुँह में बुदबुदायी कि तुमसे बढ़ कर शैतान बन्दर और कहाँ हो सकता है. )

और फिर लालू जबाब पाकर बरामदे में पड़ी एक चारपाई पर जाकर लेट कर आराम फरमाने लगे. सीलिंग फैन भी आन कर लिया. अब उन्हें जोरों से प्यास लगने लगी.

लालू: '' अनीता तू उठकर मुझे एक गिलास पानी लाकर दे.''

अनीता: '' अरे लालू भैया इतने भी न आलसी बनो कि तुम एक गिलास पानी भी लेकर न पी पाओ..जाओ फ्रिज में से ठन्डे पानी की बोतलें हैं..जाकर खुद लेकर पी लो.''

लालू ने उसे आँखें दिखायीं कुछ मुँह में बड़बड़ाये और अनमने से उठकर किचन में जाकर पानी का गिलास भर लाये.
कुछ देर बाद अनीता ने काम ख़त्म कर लिया और अपने घर जाने लगी.

अनीता: '' लालू भैया जरा उठो और दरवाज़ा बंद कर लो अन्दर से..मैं अब जा रही हूँ.''

लालू उठकर दरवाज़ा बंद करने गये उसी समय बाहर एक भिखारी जा रहा था. दरवाज़ा खुला देखा और लालू को भी तो कुछ उम्मीद के साथ आगे आया और पैसे मांगने लगा...लालू ने उसे डांट कर भगाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं टला और अड़ा रहा वहाँ तो लालू को गुस्सा आ गया.

भिखारी : '' बेटा अपनी माँ को बुला दो..कुछ पैसे दे दो भगवान के नाम पर वो तुम्हारा भला करेगा.''

लालू: '' चल जा अपनी रास्ता नाप..सारा दिन मुफ्त में कमाई करता फिरता फिर भी कोई घर नहीं छोड़ता.. जा आगे बढ़.''

भिखारी: '' बेटा आपकी खूब लम्बी उम्र हो आप बड़े होकर बहुत बड़े इंसान बनो..भगवान तुम्हें खूब बरक्कत देगा.''

लालू: '' अच्छा ठहरो जरा यहीं मैं अभी आता हूँ. ऐसे तो तुम जाओगे नहीं.''

और अन्दर कमरे में जाकर कुछ लाने गये तो इतनी देर में रिया भी आ गयी.

रिया: '' ठहरो बाबा मैं तुम्हारे लिये अभी कुछ लायी.''

रिया भी अंदर गयी और इधर लालू वापस एक कपड़े में कुछ छुपा कर हाथ में लेकर आये. भिखारी का चेहरा उम्मीद से चमक उठा.

लालू: '' तुम अब यहाँ से चुपचाप खिसकोगे कि नहीं या फिर कोई और इंतजाम किया जाये ?''

भिखारी: ' आप जो कुछ भी लाये हो वो लेकर मैं चुपचाप चला जाऊँगा.''

लालू: '' उसके बाद तो कभी यहाँ वापस नहीं आओगे.''

भिखारी: '' जैसा आप कहें हुजूर.''

लालू: '' तो पलट कर दूसरी तरफ देखो.''

भिखारी खड़ा होकर पलटा और लालू ने कपड़े में छुपाया खिलौने वाला तमंचा उसकी पीठ पर सटा दिया.

लालू: '' अब जायेगा की नहीं यहाँ से या इसे चलाऊँ.''

भिखारी: '' अरे हुजूर, इसे ना चलाना मैं चला जाता हूँ..अब कभी नहीं आऊँगा... जाता हूँ.''

भिखारी उस तमंचे को असली वाला समझ कर घबरा गया और सर पर पैर रख कर भागा वहाँ से...

उसके जाने के बाद लालू दरवाज़ा बंद करके अंदर आ गये. इतने में रिया कुछ पैसे लेकर आई.

रिया: '' लालू वह भिखारी इतनी जल्दी कहाँ चला गया ? ''

लालू: '' हा हा..मैंने उसे भगा दिया दीदी.''

रिया: '' कुछ पैसे दे दिये ना उसे ? ''

लालू: '' अगर मैं उसे पैसे देता तो फिर वह अक्सर यहाँ आता तो मैंने उसे नकली तमंचा इस्तेमाल करके भगा दिया..हा हा हा हा ''

रिया: '' तूने ये अच्छा नहीं किया अगर मम्मी को पता लगेगा तो वह बोलेंगी कि किसी की बद्दुआ लेने से तो अच्छा है कुछ दे दिया जाये.''

लालू: '' अरे दीदी, अब वह इधर का रास्ता भूल जायेगा..घर-घर जाकर ठगते हैं ये लोग. कोई काम नहीं करते तुम्हें क्या पता कि कितना पैसा इकट्ठा कर लिया हो इसने..हा हा हा हा...तुम चिंता न करो.''

और फिर लालू अपनी मम्मी को आवाज़ लगाते हुये अंदर भाग गये...

लालू के कारनामे : भाग 3

गर्मी का मौसम, मच्छरों की भुनभुनाहट और उमस के मारे बेचैनी...लालू को बड़ी मुश्किल से नींद आई थी...जब तक जागते थे तब तक उनका दिमाग खाली नहीं रहता था..बस खेल-कूद व किसी न किसी को तंग करने के प्लान बनाया करते थे..घर में कुछ लोग कमरों में व कुछ लोग बरामदे में सोये हुये थे...और लालू उस दिन बरामदे में लगे एक बिस्तर पर सोये थे...बिजली चले जाने से सबका गर्मी और उमस के मारे बहुत बुरा हाल था...और मच्छरों के उत्पात से लालू की नींद टूट गयी..आधी रात का समय था...लालू ने टटोल कर पास की टेबल से टार्च उठाई और उसकी रोशनी में उठे...जाकर पानी पिया फिर बाथरूम गये और धीरे से वापस आकर फिर सोने के लिये बिस्तर पर लेट गये.

लेकिन आँखों में नींद कहाँ...तो दिमाग कुछ खुराफाती बातें सोचने लगा...और अचानक बिजली की तरह दिमाग में एक आइडिया कौंध गया की चलो रिया को कुछ सबक सिखाया जाये..तो जल्दी से बिना कुछ आहट किये हुये उठ गये और इधर-उधर टार्च की रोशनी में देखा तो एक कोने में एक बड़ी मकड़ी चिपकी हुई दिख गयी...लालू ने उसे अपनी चप्पल से पटक कर मारा फिर उठाकर उसे रिया की तकिया के नीचे जाकर रख दिया..और चैन से जाकर चुपचाप सो गये...उनके मन में कुछ ठंडक सी पड़ गयी थी.

भोर हुयी...घर में सब लोग उठने लगे..लेकिन रिया और लालू जरा अधिक आलसी थे..दोनों को देर तक सोने की आदत थी..जब तक उनकी मम्मी उन पर बुरी तरह झींकती नहीं थीं जोर से तब तक वह दोनों जल्दी उठने का नाम नहीं लेते थे.. उनकी मम्मी यही मनाया करतीं थीं की स्कूल की छुट्टियाँ कब जल्दी से ख़तम हों तो कम से कम सारा दिन तो लालू की खुराफातें ना झेलनी पड़ें...लालू ने सोते हुये अंगडाई ली....उनकी मम्मी सबको उठाने लगी तो लालू ने आँखें खोलीं लेकिन फिर कुनमुना कर चादर तान कर दोबारा सो गये...मम्मी वहाँ से चली गयी...फिर रिया कुछ भुनभुना कर उठी और बिस्तर को तह करके रखने लगी तो तकिया उठाते ही उसके नीचे उसे एक बड़ी सी काली मकड़ी दिखी तो उसके मुँह से जोर की चीख निकल गयी..लालू ने एक आँख खोल कर रिया को देखा..खिलखिलाये धीरे से..और फिर सोने का बहाना करके चेहरा ढँक लिया...रिया तुरंत ताड़ गयी और जाकर उसने लालू के कान उमेठे.

रिया: लालू तू कब अपनी करतूतों से बाज आयेगा...क्यों सताता रहता है सबको. अभी जाकर मैं मम्मी को बुला कर लाती हूँ और दिखाती हूँ की आज तूने क्या किया...अगर मकड़ी मुझे काट लेती और मैं मर जाती तो तुझे पाप लगता.

लालू: हे हे हे हे...पाप मुझे क्यों लगता..मकड़ी काटती तो उसे पाप लगता..और फिर वो मकड़ी तो तुम्हें तुम्हारी तकिया के नीचे मरी दिखी तो फिर पाप तो असल में तुम्हें लगना चाहिये...मुझे नहीं.

रिया: लेकिन रखी तो तूने ही थी ना ? मर गयी तो अच्छा हुआ तकिये के नीचे..वर्ना मुझे काट लेती तो जहर चढ़ जाता और मैं मर भी सकती थी.

लालू: अरे, तुम भी ना दीदी विला वजह के डर जाती हो...वो तो मैंने तकिये के नीचे रखने के पहले ही मार दी थी..तो काटने का सवाल ही पैदा नहीं होता...हे हे हे हे.

रिया: फिर भी मैं अभी मम्मी से जाकर कहती हूँ की तुमने ये कितनी घिनौनी हरकत की है...आज तुम नहीं बचोगे...पिछली बार की तेरी हरकत का मैंने कोई बदला नहीं लिया लेकिन तू नहीं सुधरने वाला.

और रिया गुस्से में बड़बडाती अपनी मम्मी को बुलाने चली गयी इतनी देर में लालू ने वह मकड़ी उठा कर खिड़की के बाहर फेंक दी...और बिचार करने लगे की अपने को आज कैसे बचाया जाये...फिर जैसा की अक्सर या हमेशा ही होता रहता है...लालू के दिमाग ने पलटा खाया और एक आइडिया आया..चुपचाप अपना चेहरा ढककर काँखने लगे.

इतनी देर में उनकी मम्मी आ गयी...और साथ में रिया भी अपने चेहरे पर एक विजयी मुस्कान लिये हुये.

मम्मी: क्यों रे ललुआ...ये क्या करता रहता है..क्यों नहीं रिया को चैन से जीने देता...कुछ तो सोच वो तेरे से बड़ी है...कब अकल आयेगी तुझे...और ऊपर से अब तक सो रहा है...कभी समय से नहीं उठता..चल अब उठ...देख कितना दिन चढ़ आया है और तेरी नींद अब तक नहीं पूरी हुई.

लालू ने और जोर से काँखना शुरू कर दिया..मम्मी ने सुना तो कुछ चिंता हुई.

मम्मी: क्यों..ये काँख क्यों रहा है..क्या हुआ..तबियत तो ठीक है ना..देखूँ कहीं बुखार तो नहीं है.
और लालू के माथे पर हाथ रखकर देखा तो उनका टेम्परेचर सही महसूस हुआ उनकी मम्मी को.

मम्मी: बुखार तो नहीं है तो काँख क्यों रहा है रे ?

रिया: मम्मी तुम इससे पूछो ना की इसने वो मकड़ी क्यों मेरी तकिया के नीचे रखी..देखो मैं दिखाती हूँ.

लेकिन वो मकड़ी वहाँ नहीं थी तो मिलने का सवाल ही नहीं था.

रिया: लेकिन मम्मी वो तो यहीं इसी तकिये के नीचे थी..फिर कहाँ चली गयी ?

मम्मी: ललुआ क्या तूने कोई मकड़ी रखी थी तकिया के नीचे..बोलता क्यों नहीं.

लालू: नहीं मम्मी मैंने कुछ भी नहीं रखा था वहाँ..मैं तो उठा था अपने बिस्तर से तो दीदी की चारपाई से टकरा गया था...इसके सर पर मेरा हाथ लग गया....तो इसने मेरे पेट में खींच कर जोर से मुक्का मारा..मैंने तुमसे जाकर शिकायत नहीं की.. केवल इसलिए की कहीं इसकी डांट न पड़े...मम्मी मेरा पेट अब और भी दुख रहा है.

रिया तो जैसे भौंचक्की रह गयी लालू के तेज दिमाग के बारे में सोचकर..उसे बिश्वास ही नहीं हुआ अपने कानों पर...और अचानक उसकी समझ में नहीं आया की अब वोह उसके आगे क्या कहे...ऊपर से मम्मी ने एक डांट की घुट्टी पिलाई वो अलग.

मम्मी: रिया तुझे बड़ी होकर भी अकल नहीं है की ये तेरा छोटा भाई है..अरे सर पे हाथ ही तो लग गया था..कोई पहाड़ तो नहीं टकराया था की उसके पेट में घूँसा मार दिया..वो भी इतने जोर से की वह अब तक बिलबिला रहा है...चल जा तू किचन में जाकर कुछ काम संभाल और मैं ललुआ को देखती हूँ.

और मम्मी लालू के पास बैठकर उनका सर सहलाने लगी और चुम्मियां लीं..जिसे देख कर वहाँ खड़ी हुई रिया का खून खौल गया. और लाचार सी हो गयी की क्या सफाई दे झूठे लालू की दलीलों पर.

लालू: मम्मी..मम्मी..रिया दीदी पर चिल्लाओ ना अब.

लेकिन फिर मम्मी की निगाह बचाकर रिया को जीभ निकाल कर दिखाई..और रिया किलस कर रह गयी और अपनी मम्मी के कहने पर किचन में काम करने चली गयी...और लालू मुस्कुराके फिर काँखने में लग गये...

लालू के कारनामे : भाग २

वैसे तो लालू का जीवन बहुत मस्त और घरवालों के लाड़-प्यार में बीत रहा है..किन्तु अक्सर उनके वहमी मन में कुछ बातें कचोटती रहती है..और उनका चित्त अस्थिर हो जाता है..पाठकों की जिज्ञासा दूर करने के लिये उचित होगा की उस राज को बता ही दूं...ताकि आप लोग लालू के कभी-कभी झींकने या उदासी के कारन के पीछे क्या वजह है उसे जान सकें.

बात यह है की लालू सोचते रहते हैं की उनके घर में सब लोग गोरे हैं और उनका रंग क्यों काला है..जिस पर पता नहीं कितनी ही बार अपनी मम्मी से पूछ चुके हैं..और उनके कितनी ही बार बताने पर भी लल्लू के मन को तसल्ली नहीं मिलती..इसी लिये वह कभी-कभी काले रंग की चीजों को..जैसे की उनमे कुत्ते-बिल्ली भी शामिल हैं, उन्हें उठा कर घर ले आते हैं.

और लालू अपने चार बहन भाइयों में सबसे छोटे हैं..तो नंबर चार पर आते हैं..मतलब यह की दो भाई और एक बहन उनसे बड़े हैं..जो उन पर अपना रुआब गांठने में लगे रहते हैं और लालू को यह सब बड़ा नागवार लगता रहता है..लेकिन क्या करें..जब लालू शरारत करते हैं और सबकी डांट खाते हैं...तो बाद में लालू को अकेले पाकर दोनों भाई और बहन मिलकर चिढ़ाते हैं की वह सब गोरे हैं..और केवल लालू ही काले हैं..इसीलिए लालू भी अपने भाई-बहन से खीझे रहते हैं और हमेशा बदला लेने की फ़िराक में लगे रहते हैं.

एक दिन लालू किसी की लावारिस भटकती हुई बिल्ली सड़क पर से उठा लाये जो काले रंग की थी और लाकर अपनी बहन रिया के बिस्तर पर रख दिया..जब वह कमरे में आई तो बिल्ली को अपने बिस्तर पर देख कर जोर से चीखी..

रिया : '' लल्लू तू अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाला..क्यों..? मैं अभी मम्मी को बुलाती हूँ और तेरी मरम्मत करवाती हूँ..आज तू एक कमबख्त बिल्ली को भी ले आया घर में..इसकी देखभाल कौन करेगा.''

लालू : '' बड़ी आई मरम्मत लगवाने वाली..पहले अपना चेहरा देख जाकर शीशे में. ''

रिया : '' तू जल्दी से इस बिल्ली को बाहर सड़क पर छोड़ आ..वर्ना फिर... ''

लालू : '' वर्ना क्या..क्या कर लेगी तू या मम्मी मेरा..हा हा..मैं रोने लगूँगा और कहूँगा की..रिया दीदी ने मुझे मारा था..हा हा हा हा... ''

रिया : '' नालायक कहीं का..तू अपनी हरकतों से सबको दुखी करता रहता है. ''

लालू : '' हा हा हा..तुम बक-बक करो..और मैं बिल्ली के लिये किचन से दूध लेकर आता हूँ..अगर मेरी बिल्ली को हाथ लगाया तो अच्छी बात नहीं होगी. ''

और लालू च्युंगम मुंह में चबाते हुये दूध लेने गये..इतनी देर में रिया ने मौका देखकर बिल्ली को उठाया और धीरे से दरवाज़ा खोलकर उसे भगा दिया..अच्छा हुआ की बिल्ली ने शोर नहीं किया...

किचन में जाकर बोले '' मम्मी एक कटोरे में दूध दे दो..पीना है. ''

मम्मी बोली : '' कटोरे में दूध पियेगा रे..ले गिलास में देती हूँ पीने को तुझे. ''

लल्लू : '' नहीं गिलास से जल्दी नहीं पी पाऊँगा..मुझे कटोरे में ही चाहिये. ''

मम्मी : '' चलो ठीक है..जिद्दी तो तू है ही..ले कटोरे में ही ले जा. ''

लालू दूध का कटोरा लेकर गुनगुनाते हुए वापस आये अपने कमरे में..'' बिल्ली रानी दूध पियेगी..पीकर फिर इतरायेगी..रिया दीदी डांटेंगी तो उसको आँख दिखायेगी ''...ला ल ला ल ला ला....

लेकिन कमरे में पहुँचते ही पता लगा की न तो बिल्ली थी वहाँ ना ही रिया..तो पहले तो बिस्तर, अपनी टेबल और कुर्सी के नीचे ढूँढा..फिर इधर-उधर देख आये..पर कहीं पता नहीं लगा..लालू अपने चालू दिमाग से समझ गये की जरूर यह रिया की ही हरकत है..की बिल्ली को वोह बाहर छोड़ आई होगी..मन ही मन में लालू गुस्से से कुलबुला गये और आव देखा न ताव..बहन के कमरे में गये और देखा की वह पढ़ रही थी..लालू को देख कर उसने मुँह बनाया तो लालू और छटपटा गये...और अपने मुँह से च्युंगम निकाल कर उसके बालों को खींचा और उसमे चिपका दिया कस के..रिया चीखी जोर से मम्मी को आवाज़ लगाते हुये. इतनी देर में लालू ने दूध का कटोरा अपने ऊपर पलट लिया..और रोने लगे.

रिया : '' मम्मी देखो, लल्लू ने मेरे बालों को ख़राब कर दिया है.''

मम्मी दौड़ती हुई आई.

मम्मी : '' क्यों रे रिया के बालों में ये च्युंगम क्यों लगाया रे. छुट्टी के दिनों हर समय शैतानी करता रहता है. ''

लालू : '' क्योंकि पहले इसने मेरे हाथ से दूध का कटोरा लेकर मुझपर उंडेल दिया था इसलिए मैंने च्युंगम लगा दिया इसके बालों में. ''

रिया : '' नहीं मम्मी इसने ही दूध को डाला है अपने ऊपर..मैंने कुछ भी नहीं किया था..यह एक बिल्ली लाया था और मेरे बिस्तर पर लाकर बिठा दिया था उसे..तो बस मैंने इसे डांट दिया था.''

लालू : '' मम्मी मैं कोई बिल्ली-उल्ली नहीं लाया था..ये झूंठ बोल रही है..तुम खुद देखो जाकर घर में कहीं भी बिल्ली नहीं है. ''

और फिर रोने लगे..रिया अपना सा मुँह लेकर रह गयी..क्योंकि जब मम्मी ने ढूँढा बिल्ली को तो वह कहीं भी नहीं दिखी घर में..और रिया को लालू पर दूध पलटने के लिये नाराज़ होकर बड़ा सा लेक्चर दिया.

फिर उसके बाद उनकी मम्मी ने लालू के कपड़े बदल कर पुचकार कर उन्हें चुप किया..लेकिन उन्होंने ये बिलकुल गौर नहीं किया की जब-जब लालू अपनी आँखें पूंछते थे रोने का नाटक करते हुये तो..वोह मम्मी के पास आने के पहले ही जल्दी से नाक साफ़ करने के बहाने जाकर पानी से अपनी पलकें और गाल भिगो आये थे..खैर, अब साफ़-सफाई और माँ का पक्ष और प्यार पाकर माँ के कहने पर लालू एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह पढ़ने का बहाना कर के वहाँ से खिसक लिये..और जाते-जाते अपनी बहन को एक विकट मुस्कान छोड़ते गये.

और रिया मन में जल-भुन कर खाक हो गयी..और लालू से अगली बार बदला लेने का प्लान बनाने लगी...

लालू के कारनामे : भाग 1

'' लालू के कारनामे '' साप्ताहिक सीरियल आज से चालू किया है...इसका ये पहला भाग प्रस्तुत है आप सबकी सेवा में...

'' मैं हँसूँ तो हँसे साथ में जमाना..ओ दुखी मन मेरे न दिल को लगाना ''...गाते हुये लालू ने घर में प्रवेश किया...

ये लालू नाम भी उनके माता-पिता ने बड़े दुलार से दिया है...कुछ लालूप्रसाद पर अधिक श्रद्धा होने के कारण..अपने छोटे बेटे को घर में लालू कह कर बुलाने लगे थे..फिर घर में और जान-पहचान के लोगों में यही नाम प्रचलित हो गया..वैसे असली नाम तो उन्होंने रखा था..रोहन.

आते ही तपाक से बोले: '' अरे, ओ मम्मी कहाँ हो तुम, देखो मैं क्या लाया हूँ...कितने बड़े दो टोकरे आम के एक साथ ही खरीद कर लाया हूँ...मैं हँसूँ तो हँसे साथ में ये...अरे, कहाँ हो मम्मी..आजा मम्मी आजा जल्दी से देख.''

उनकी मम्मी किचन से दौड़ कर आयीं और लपक कर टोकरे को पकड़ा और आमों को उलट - पलट कर देखने और उनकी जांच-पड़ताल करने लगीं...आमों को टटोल कर बोलीं, '' अरे ललुआ तुझे कब अकल आयेगी रे , कितनी बार बताया की ऐसी चीजें तू मत खरीदा कर.''

लालू बोले: '' क्यों मम्मी, क्या हुआ ?''

मम्मी: '' देख तुझे अच्छी-बुरी चीज़ की अकल नहीं तो फिर तू क्यों बेकार में पैसे खर्च करके चला आता है. ''

लालू कुछ लाल-पीले हुये और बोले, '' मम्मी, तुम मुझे हमेशा वेवकूफ ही समझती रहती हो...एक तो घर का काम कर देता हूँ कभी-कभी..ऊपर से तुम कभी खुश नहीं होती हो, अब मैंने क्या कर दिया. ''

मम्मी: '' देख ललुआ, तू खुद देख आकर...कितनी बार बताया की कोई चीज़ खरीदे तो जल्दबाजी न करे...टोकरे में नीचे वाले आम तो सड़े हुये हैं. किसी ने तुझे ठग लिया है.''

लालू : '' मम्मी ठग उसने नहीं..मैंने उसे ठग लिया है..उसने एक टोकरा खरीदने पर दूसरा फ्री में दिया है.''

और लालू अपनी अकलमंदी पर मंद-मंद मुस्कुराये.

मम्मी: तब भी तुझे क्या फायदा हुआ रे..बात तो वही है की एक टोकरे भर आम तो सड़े निकल गये..तो इससे अच्छा होता की अच्छे आमो का एक ही टोकरा खरीदता.''

अब लालू इस बात से तिलमिला गये.

लालू: '' ठीक है, मम्मी, अब आगे से न कहना की मैं कुछ काम नहीं करता..भैया से ही कहना आगे से..वही अब बने तुम्हारा भक्त, समझीं..?''

लालू ने नाटक किया नाराज होने का मम्मी के सामने और कमरे में जाकर मुस्कुराये की चलो अब इस तरह से काम करने से मम्मी भी ऊब गयी है...आगे से मेरी जान बची..हा हा हा हा...

आज की सीता

हाँ, मैं आज की सीता की ही बात कर रही हूँ. यह सच है की उस सतयुग की सीता से भी ज्यादा अग्नि-परीक्षायें देती है आज की नारी..एक लड़की के शादी के बंधन की डोर सपनों में बांधकर उसे पति के घर तक कैसे लाती है...लेकिन क्या हर नारी खुश है अपनी शादी से..जो सपने वो आँखों में संजोकर लाती है ख़ुशी से...उन पर तानों व अत्याचार से जो तुषारापात होता है..तो क्या मज़ा आता है वैवाहिक जीवन में ?

किसी ने मुझे ये कमेन्ट भेजा था:
''राम को पुरुषों में उत्तम बनाने के लिए ही सीता को बदनाम होना पड़ा ! क्या यह नहीं माना जा सकता है ? राम का अस्तित्व ही सीता के कारण है ! मुझे लगता है " हर सफल आदमी के पीछे महिला का हाथ होता है " वाली बात का प्रारंभ भी यही से हुआ होगा ! हम अपने घर में हर छोटी बड़ी चीज के लिए घरवाली पर निर्भर रहते है ! ''

तो सवाल उठता है की अगर राम का अस्तित्व सीता से था तो फिर क्यों वह अपनी सीता पर आस्था खो बैठे थे...क्या राम का अस्तित्व ही जरूरी था सीता के लिये और सीता का राम के लिये नहीं ? टिपिकल पुरुष की मेंटेलिटी..वाह ! हमेशा पुरुष अपने लिये और अपना स्वार्थ पूरा करने की सोचता है पत्नी का इस्तेमाल करके..की कैसे औरत को सीढ़ी बना कर ऊपर चढ़ जाये और फिर उस सीढ़ी को पैर से धक्का मार दे..क्या हर आदमी को ही जरूरत पड़ती है की स्त्री उसे उत्तम बनाती रहे..औरत को उत्तम बनाने के लिए कौन होना चाहिए ?..एक पुरुष..उसका जीवन साथी, है ना ? और यदि वह औरत का इस्तेमाल करके उसकी उपेक्षा करे तो औरत किसकी तरफ देखे..? बोलिये. जीवन साथी भी तो वही कुर्बानियां देकर दिखाये समय आने पर अपनी पत्नी के लिए तब ही तो रिश्ते की सार्थकता पता चलती है..हाँ, करते हैं कुछ लोग लेकिन सब नहीं..अधिकतर पुरुष इस समाज में स्वाभिमानी और भावना रहित होते हैं जो पत्नी की भावनाओं की कदर नहीं करते..उसे नीचा दिखाने, ताने देने व तंग करने को ही धरम निभाना समझते हैं..जिन्होंने महिलाओं को अपनी जायदाद समझा और उनके तन को अपनी जागीर!

भारत की तमाम युवा पीढ़ी समझती है नारी की महत्ता के बारे में और नारी खुद भी समझती है की वह जितना कर देगी निस्वार्थ सबके लिये वह पुरुष नहीं कर पायेगा...क्योंकि प्रकृति ने ही उसे कुछ गुण दिन हैं, क्षमता दी है..घर गृहस्थी को ढंग से रखने की, लोगों की देख भाल करने की व जीवन में सुन्दरता बिखेरने की...लेकिन आज के समाज में उसका इस्तेमाल करके पुरुष भूल जाता है इन सब बातों को..उसके गुणों में भी तुलना होती है चाहें वह कुछ भी सीख ले...जब तक कोई वस्तु नहीं है जीवन में तब तक उसका अभाव महसूस करना फिर उसके आते ही सब भूल जाना..यह पुरुष की फितरत में देखा गया है.. एक बात बताऊँ की नारी बहुत कुछ करने के बाद भी अपने को अपने मुंह से महान नहीं कहेगी..हाँ..अपनी महत्ता जरूर जानना चाहेगी कभी-कभी अपने चित्त की शान्ति के लिये....

जंगल में अपने राम से दूर, क्या-क्या नहीं उसपर बीता
राम तो अब भी राम ही रहे, पर आज सीता न रही सीता
ये कलियुग है जहाँ राम हैं कम, रावन ही दिखते चहुँ ओर
आज के राम को नहीं फिकर, फिर भी रखें सीता पर जोर.

राम ने अपनी सीता को आदर्शों की होली में झोंक दिया था बस एक समाज के कहने पर ही. लेकिन इस पर जरा अच्छी तरह गौर करिये कि सीता को केवल दो बार अग्नि-परीक्षा देनी पड़ी थी वह भी रामराज्य में पर आज की कितनी ही नारियों को आये दिन तरह-तरह की अग्नि-परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. अग्नि केवल धधकती हुई लपटों वाली ही नहीं होती बल्कि जहाँ यातनायें बढ़ती जाती हैं अंतरात्मा झुलसने लगती है और नारी को उस यातना की अग्नि से गुजरना पड़ता है जो असहनीय होती है और मरते दम तक जलाती रहती है, वह भी एक अग्नि ही है. यहाँ पर सीता मैया और आज की नारी के बीच कुछ मोटे-मोटे से तथ्य हैं जिनपर भी नज़र डालना ज़रूरी है. कुछ में समानता है और कुछ में नहीं :

1. उस समय के हिसाब से सतयुग की सीता का जीवन बहुत सीधा-सादा व सरल सा था. घर गृहस्थी के मामले में भी और उम्मीदों की तुलनात्मक दृष्टि से भी. क्योंकि आज की नारी कलियुग की होते हुये भी उस युग की नारी से मानसिक विकास में अधिक हैं, साथ में मानसिक परेशानियाँ भी झेलती है. उसे ना जाने कितनी उम्मीदों पर खरा उतरना पड़ता है और उससे न जाने कितनी उम्मीदें बढ़ती ही रहती हैं...जिनका अंत ही नहीं होता। मानसिक और शारीरिक रूप से कामों में व्यस्त व सजग रहती है. उसके बाद भी कितनी ही अंतर्मन को झुलसा देने वाली अग्नि-परीक्षाओं से वह गुजरती है. लेकिन सीता को आज की नारी की तरह इतना कुछ नहीं सहना पड़ा था...फिर भी उनके नाम का ही उदाहरण दिया जाता है.

2. सीता के साथ हुये अन्याय के लिये राम ही जिम्मेदार थे जिन्होंने अपनी पत्नी को दूसरों के शक करने पर उनकी अग्नि परीक्षा ली पर उन्होंने कभी अपनी पत्नी का अपमान नहीं किया. लेकिन आज के तमाम राम (पति परमेश्वर) समाज के लिये नहीं बल्कि समाज से छिपा कर स्त्री में दोष ढूंढकर उसका अपमान करते हैं. कभी-कभी घरवालों के संग मिलकर भी ज्यादतियां और अत्याचार करते जाते हैं. (औरत इसमें दहकती है)

3. राम सीता के कहने पर केवल मृग के पीछे इसलिए भागे थे ताकि सीता को वह हिरन पकड़ कर दे सकें. किन्तु आज के राम की बुद्धि के कपाट कब बंद हो जाएँ पता ही नहीं चलता और कब वह किसी मायाविनी के पीछे पड़कर अपनी सीता जैसी पत्नी को तज दे उस छलना के लिये...कहना मुश्किल है. (औरत इसमें दहकती है)

4. कलियुग में भी घर के बाहर बहुत से रावण मिलेंगें जो स्त्री पर बुरी दृष्टी रखते हैं. किन्तु जिस रावण ने सीता मैया का अपहरण किया था उसने पवित्रता की मर्यादा नहीं लांघी और सीता पवित्र रहीं. वह रावण एक विद्वान व धार्मिक व्यक्ति था किन्तु उसने केवल अपनी बहन की जिद के आगे झुककर बदले की भावना से ही अपहरण के बारे में सोचा था. फिर भी सीता की पवित्रता पर शक किया गया. आजकल के युग में भी बाहरी रावणों से स्त्री बचती रहती है पर फिर भी शक किया जाता है, और ताने सुनती है. (औरत फिर दहकती है)

5. लक्ष्मण ने तो केवल कुटिया के बाहर ही रेखा खींची थी और सीता ने किसी बुरे इरादे से उसे नहीं लांघा था किन्तु उनका धोखे से अपहरण हो गया. और बाद में शक का शिकार बनीं, और आज की नारी वैसे तो निकलती है घर के बाहर लेकिन उसके लिये आज भी कुछ सामाजिक दायरों का बंधन है जिसका कभी धोखे से भी उल्लंघन हो गया तो पुरुष के शक की कटारी आ गिरती है उसपर. किसी पुरुष के संग निर्दोषता से भी हँसने-बोलने या बाहर जाने पर उसे सबकी निगाहों व बातों का शिकार बनकर ताने सुनने पड़ते हैं. लेकिन पुरुष अपनी मनमानी करते रहते हैं और कितने लोग अनदेखी कर जाते हैं. (औरत फिर दहकती है)

6. चलो मानते हैं कि उस समय रामराज्य था और उस समय की विचारधारा और थी। और एक राजा ने प्रजा को प्रभावित करने के लिए अपनी पत्नी को अग्नि परीक्षा देने को मजबूर कर दिया. उस प्रभावशाली व्यक्ति या देवता ने इस अक्षम्य अपराध को किया। पर आज के युग में...ऐसा क्यों ? क्या पुरुष भी ऐसी ही अग्नि परीक्षा देकर अपने को साबित कर सकते थे/ हैं ? क्या कहा...नहीं.
इसका मतलब है कि रामराज्य और कलियुग की नारी में एक बात की समानता अब भी है....और वह है उसपर शक किया जाना और परीक्षाओं से गुजरना.

आज का युग कलियुग कहा जाता है, नारी हर दिशा में सतयुग की नारी से बढ़-चढ़ कर है और हर क्षेत्र में पुरुष की बराबरी करने की इच्छा व क्षमता रखती है और सिद्ध कर चुकी है...पर आज के कितने पुरुषों की विचारधारा नारी को लेकर बदली है ? कोई बतायेगा ? आज की नारी मानसिक रूप से समर्थ होते हुये भी पुरुष से तरह-तरह की मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना सहती है. देश-विदेश में हर जगह देखो पुरुष का अहम् ही नारी का सबसे बड़ा दुश्मन बन रहा है. नारी की साधना, उसका आत्म विश्वास, उसका खिलखिलाना जब पुरुष तोड़ता है तो सब मुरझाकर भस्म हो जाता है. जीते जी कितनी ही नारियाँ सुलग रही हैं समाज में चारों तरफ. मिलने-जुलने वाले लोग आते हैं और अपनेपन की बातें करते हैं दिखावे को व मन बहलाने के लिए किन्तु जैसे ही वहां पर किसी नारी पर अत्याचार होने का आभास पाते हैं तो तुंरत ही वह सब अपने को एक किनारे कर लेते है, सोचते हुये कि ' हम क्यों किसी की बुराई-भलाई व झगडे में पड़ें '...उस समय उस लाचार औरत को कितने अकेलेपन का अहसास होता होगा क्या कभी किसी ने सोचा है? सभी अपने उस समय पराये हो जाते हैं उसके लिये. सबको अपनी-अपनी पड़ी रहती है इस दुनिया में. इसीलिए शायद कहा गया है कि ' यह दुनिया केवल मुंह देखे की है ', जहाँ किसी को सुख में देखा तो जलन और किसी को परेशानी में देखा तो मुँह छिपा कर खिसक लेते हैं लोग. एक टूटता हुआ इंसान सहारा न पाकर बिलकुल ही टूट जाता है. ऐसी स्थिति में एक इंसान की नहीं बल्कि कइयों के संबल की आवश्यकता होती है मुसीबत की मारी किसी नारी को. एक नहीं बल्कि तमाम आवाजों से किसी अत्याचार की दीवारें हिलाई जा सकती हैं. वरना जब तक हम यह चाहेंगे और होने देंगें तब तक यह सब होता रहेगा...क्योंकि नारी वसन लज्जा कहा जाता है और उस लज्जा से वह अपनी असलियत को नंगा नहीं करती क्योंकि अत्याचार के विरुद्ध बोलने से उसकी बदनामी होती है...और मुंह बंद रखकर कष्ट झेलती रहती है घर भर का सम्मान बचाने को. घर की मान-मर्यादा बचाकर सबके सामने अपनी तकलीफों को छिपाने का ढोंग करती रहती है जाने-पहचाने लोगों में...लेकिन फिर अन्दर ही अन्दर मन में घुटकर किसी के जाने बिना ही वह सबकी निगाहों से बचकर अपनी अग्नि में एक दिन वास्तव में मर जाती है...स्वाहा कर देती है अपने को अत्याचार की आग में...कितना दुखद और अजीब है यह क्रम!! सोचती हूँ कि सीता में तो दैविक शक्ति थी जो आज की नारी में नहीं है. और वह दूसरी बार अग्नि परीक्षा से गुजरते हुये अपमान को न झेल पायीं थीं और पृथ्वी में समा गयीं हमेशा के लिये. किन्तु आज की नारी तिल-तिल कर जलती है सोचते हुये कि वह भी धरती में समा जाये ताकि और अपमान ना सहना पड़े...

माँ, बहन, बेटी का रूप और पुरुष की सहचरी
जो सृष्टि की रचना करती वह तो केवल नारी है
दया-धरम, प्यार-ममता की मूरत का प्रतिरूप
इतना होने पर भी नारी इस धरती पर भारी है.

मेरी खता: वाल-पिक्चर कथा भाग 2 प्रोफाइल फोटो

आज फिर एक और सर दर्द हो गया..अब आप सबको याद आयेगा की मैं उस दिन की बात कर रही हूँ जिस दिन मैंने कुछ वाल पिक्चर बनायीं थीं और उस पर बड़ी ऊधम-बाजी मची थी..और उसके बाद मैंने तोबा कर ली थी..लेकिन उसका परिणाम अब भी भुगत रही हूँ..तो उनमें से एक पिक्चर में भाई साहेब को सबसे ऊपर शाह जी के पास टाँगा था..क्योंकि शाह जी हाथ में माइक पकड़े गाते ही रहते हैं हर समय..तो मैंने सोचा की भाई साहेब का मनोरंजन होता रहेगा उनको ताकते हुये..लेकिन भाईसाहेब ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया और मैं घबरा गयी की अब इन्हें क्या समस्या है..अब तो ये चिपक गये हैं इसमें शाह जी के साथ हमेशा के लिये..अगर पिक्चर में कोई गाता हुआ दिख भी रहा है तो इस बात से भाई को या किसी और को क्या फरक पड़ने वाला, है ना ? वोह चिल्ला कर गा रहे हों या नहीं लेकिन भाई को पची नहीं ये बात..पिक्चर को देख खुद चिल्लाने लगे और साथ में क्या-क्या हुआ आप सबके सामने पेश करती हूँ.

भाई: हम तो भाई जी को देख रहे हैं, वे कया गा रहे हैं...लेकिन वे चिल्ला चिल्ला कर गा रहे हें....'' मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये... बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये ''... लेकिन ये आज किसके लिये गा रहे हैं ... कौन है आज इनके निशाने पर ? इनके पास अगर मैं चिपका रहा तो हम तो इनकी सिंगिंग सुन-सुन कर बहरे हो जायेंगें..हमें पता होता तो हम कानों में रुई लगा लेते फोटो खिंचवाने के पहले..

मैं बोली: हाँ, भाई.. इस तस्वीर में मैंने जान बूझ कर आपको ऐसी जगह ऊपर बैठाया है की आप ऊपर भी बैठें और साथ में सामने शाहजी की सिंगिंग का भी बिना गर्दन मोड़े हुये आनंद ले सकें..वर्ना उनके बिना आप बोर होते वहां बैठे-बैठे..lolzzzzzzzzzz..
अब मैं क्या बताऊँ आपको की आपका पोज़ ही ऐसा है..इसमें किसी की क्या खता है ? बोलो.

भाई: हूँ.. सुन ली सबकी...शन्नो बहिन हमारे और भी फोटो हैं हमारी प्रोफाइल में...उनमें सब तरफ गर्दन घुमी घुमाई है.

मैं बोली: भाई..तो फिर वो अपने दूसरे चेहरे भी हम सबको दिखाओ..तो फ्यूचर में उसके मुताबिक भी डायलाग लिखे जायें.. lolzzz

भाई: प्रोफाइल फोटो में पडे हैं.

मैं बोली: ठीक है भाई..आपकी इज़ाज़त है तो जरूर देखूँगी.

फिर मैंने कुछ देर में जाकर खोज-बीन की तो वहां पता नहीं कितनी फोटो का ढेर लगा हुआ था लेकिन क्या बताऊँ अब..सीधे जाकर भाई से ही पूछा की..

मैं: भाई...आपने मेंशन किया तो हमने जाकर चेक किया तो बहुत टेंशन हुई देखकर की आपकी अल्बम में फोटो का तो ढेर लगा हुआ है...लेकिन आपकी अपने चेहरे वाली प्रोफाइल पिक्चर दो ही हैं..एक तो यही वाली मुंह पर उंगली रखे और दूसरी जिसमें दाढ़ी उग रही है और बनियान में हैं..और हम सबकी तरफ देख भी रहे हैं ..तो इस दशा में समस्या है की या तो बनियान वाली फोटो लगाओ आप चेंज के लिये या कुछ और खिंचाओ या फिर इसी में ही खुश रहो..जो सुझाव था वो मैंने कह दिया :):)

इतनी देर में प्रिया जी भी आ टपकीं और अपनी राय देने लगीं...

Priya: Arre ye to smart hain shanno Di, Unki to koi Bhi Photo Lag jaaye...cute and handsome... always Evergreen hain. Baniyaan vaali bhi sahi rahegi, Voh to Aur Bhi Khoobsoorat hai.

मैं बोली: प्रिया और शाहजी देखिये...भाईसाहेब के चेहरे की केवल दो ही फोटो हैं..तो इसका मतलब हुआ..केवल दो पोज़..आप लोग इनमें से एक सेलेक्ट करो :) मेरे ख्याल से अगर इस बार भाई अपनी बनियान को चेंज किये बिना ही उस फोटो को ही चिपका दें तो जरा सबके लिये चेंज हो जाये उनकी नयी तस्वीर देखने का...कैसा है ये आइडिया..अच्छा है न..हूँ ? :) क्या कहते हो सब ?

भाई: हा हा हा हा ....बस दो ही फोटो दिखीं वहाँ.... वैसे और भी कई हैं.... खैर चलो अब कुछ नये फोटो अपलोड करेंगे, और ये प्रिया क्या कह रही है... बनियान वाला ही लगा दो... अच्छा...बडी हसरत है हमें बनियान में देखने की...सोच लो सुन्दरी प्रिया...हमारा पुराना डायलाग है...हमें सड़क पे लाने की कोशिश मत कर, हम सडक पर आये तो ट्रैफिक जाम हो जायेगा...तो प्रिया हमें बनियान में लाने की कोशिश न करो सुन्दरी प्रिया, हम बनियान में आये तो क्या होगा...पहले अंजाम सोच लो... Lolzzzz..........zz

मैंने फिर सोचा की भाई को मेंटल टेंशन हो रही है तो..

मैं बोली: भाई ये फ़िल्मी डायलाग बोलना बंद करो..कुछ देर को सीरिअस हो जाओ ..

न चिंता करिये अब किसी भी अंजाम की
आप बस फिकर करें अपने ही काम की
दाढ़ी को उगने दें जरूरत न हज्जाम की
बाहर भी निकलें न सोचें ट्रैफिक जाम की.

इस बात पर भाई भी बहुत ही हाजिर जबाब निकले...

भाई: का बनियान की हस्ती है का लुंगी की बस्ती है क्या ये फोटो इतनी सस्ती है या फिर केवल मस्ती है.. फोटो पर है क्या कुछ लिखा हुआ जो कोई पढ़ लेगा.. या है जो भी पढ़ा हुआ वो रट लेगा...वरना क्या अपनी बनियानी हस्ती है...हा हा हा हा...समझ में आया...हमें भी नहीं आया...लोल्ज्ज्जज्ज्ज़

मैं ये बातें या डायलाग सुनकर पागल होने लगी..क्योंकि भाई को फ़िल्मी डायलाग बोलने का कभी-कभी दौरा पड़ जाता है..तो मैं फिर बोली भाई...

आपकी कुछ बातें तो अपनी समझ में भी ना आयीं
फोटू की बात है चाहें बनियान में या ओढ़ के रजाई
अदल-बदल कर पोज को प्रोफाइल में उसे लगाओ
कबसे साइड में गर्दन है अब थोडा सा इधर घुमाओ.

भाई: अरे कोई सा फोटो ठोक दो बहिन क्या फर्क पडता है । अब बुरा फोटो अपलोड करूँगा तो सब भाई जी की और तुम्हारी हँसी उडायेंगे कि छि-छि जरा देखो तो इनका भाई कैसा है..और अगर अच्छी और खूबसूरत फोटो अपलोड करूंगा तो प्रेमी-प्रेमिकाओं से परेशान हो जाऊंगा, पहले से ही परेशान हूँ..लड़कियां तो छोड़ो बहिन मेरे पीछे तो लड़के भी पड़े हैं.. अब तुम्हें जो सूझ जाये वही लगा दो...हे भगवान प्रभु ही बचायें अब तो...क्योंकि ये लड़कियां तो हर समय कांव-कांव करती रहती हैं हमारे सर पर...राम-राम...राम-राम..

मैं दंग रह गयी भाई के ये वाक्य सुनकर की भाई क्या ऊल-जलूल बके जा रहे हैं किन्तु वह फिर नितिन की तरफ मुखातिब हुये..जो चुप चाप हमारी बातें सुन-सुन के मुस्कुराये जा रहे थे..

भाई: अब देखो नितिन भईया लड़कियों के हग्स मिलते थे तो हम बहुत खुश हुआ करते थे, अब तो लड़के हग भेजने लगे हैं भईया , इसका का करें... कौनऊं इलाज है का.. ससुरा शाम तक पूरा मोबाइल एस.एम.एस. से और ई मेल बाक्स भर देते हैं पठ्ठे...

मैं बोली: ha ha ha ha...लोल्ज्ज्जज्ज्ज़.... HUG aur wo bhi mobile se...heeee heeeeeeeeeeeeee
फिर मुझे अचानक कुछ सोच कर दया आई की शायद भाई सीरिअस हों इस विषय पर तो मन में बहुत दुखी हो रहे होंगे..यह सोचकर मेरी हंसी बंद हो गयी.

मैं बोली: भाई..आप फिर इसी फोटू में रहो...आप को भी आराम मिलता है इस पोज़ में और हम सब भी आदी हो गये हैं आपको इसी तरह देखने के..सो काहे को झंझट में फंसो...वैसे ही आप मेंटली इतने टेंस लग रहे हो...आपके कहने के मुताबिक समस्यायें भी खड़ी हो सकती हैं...हम दोनों ही भाई-बहन पोज़ बदलने के बारे में आलसी हैं..
भाई: Lolzzzzzzzzz हा हा हा हा.....सही है....यही तो प्राब्लम है LOLZZZZZZ

एक और आदत है भाई में इन दिनों वो lolzzzzzz बहुत करते हैं..ये एक नयी आदत डाल ली है फेसबुक पर होने से...

अब शायद वाल पिक्चर भाग ३ का भी आप लोगों को इंतज़ार होगा तो...कुछ दिनों में उसकी भी प्रस्तुति होगी.

मेरी खता: वाल पिक्चर-कथा भाग 1 हंगामा

उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़..जिन्दगी में सबको खुश करना भी कितना डिफिकल्ट होता है कभी-कभी..अब मेरा ही किस्सा सुनिये की फेसबुक पर क्या हंगामा हो गया मेरे साथ..चूँकि आप लोग मेरे फ्रेंड हो तो सोचा इस घटना को भी अगर शेयर कर लूं तो सबको पता लग जाये की मेरी स्थिति क्या है अब..तो और लोगों की गलतफहमियां दूर हो जायें..तो हुआ यूँ की हमने भी कुछ वाल-आल पिक्चर बनाने के बारे में पहली बार हिम्मत की और कुछ सीख कर कुछ लोगों पर प्रयोग किया और उन्हें वाल पिक्चर में चिपकाया..और कुछ को लटकाया..और फिर अपने टॉप फैन को ढूँढने की सूझी..तो लिस्ट में सिर्फ आठ लोग मिले..टॉप फैन को कप बाकी को मेडल मिले..तो फिर अब क्या बोलूँ..कुछ लोगों ने नोटिस किया और बोले:'' की हम आपके फैन की लिस्ट में क्यों नहीं हैं..हमें कप क्यों नहीं मिला ?'' कहने का मतलब की..शिकायत करने वाले आ गये.'' गाँव बस नहीं पाया और बिल्लियों ने आना शुरू कर दिया.'' हा हा..तो हमने कहा की..'' भईया, ये तो सब ऑटोमेटिक ही हो गया.. हमारा इसमें कोई फाल्ट नहीं है ''...फिर भी लोगों को चैन नहीं पड़ा..और हम अपनी बगलें झाँकने लगे..और समझ में नहीं आया की क्या करें..अब हम सबके बीच के डायलाग की केवल कुछ झलकियाँ आप सबको भी दिखाते हैं. तो देखो:

प्रनी: Dhanyavad Shanno ji apni top fans ki list mein mujhe shaamil karne ke liye...

मैं बोली: Prani..No problem..ye sab TOP FAN walon ka kamaal hai unki hi meharbani se sab sambhav ho saka hai..unhen jo pasand aaya usko mera fan bana diya..garmi ke dinon me fan ki bhi to jaroorat padti hai naa? Lolzzzz

अब ये भी देखिये की प्रनी ने जो जबाब फिर भेजा तो वो एक कविता सा था:

प्रनी: फेसबुक देखिये और इसके एप्लिकेसन देखिये
हर एक के लिए कुछ न कुछ मिलेगा यहाँ पर
कोई राशिफल देख कर रो रहा तो कोई
फार्म विल्ला खेल कर अपना वक्त खो रहा
यहाँ हर कोई है किसी न किसी दीवार पर
कोई टंगा इस दीवार पर तो कोई टंगा उस दीवार पर
कोई मुंह बाए सामने को तो कोई कोने को निहार रहा है
कोना निहारने का भी अपना एक मजा है
ये तो निहारने वाला ही बता सकता है की मजा है या फिर सजा है
चाहे कुछ भी हो सब अपनी अपनी जगह पर मस्त हैं
हर कोई कमेन्ट करने में व्यस्त हैं

अब लीजिये इतनी देर में गीता की शिकायत आ गयी..वो मुंह से तो क्या बोलती बेचारी फेसबुक पर होने से फेस ही तो चिपका है उसका..लेकिन अपनी फोटो में मुझे गुस्से भरी निगाहों से देखती रहती है चुपचाप और मैं निगाहें बचाती रहती हूँ...

मैं बोली: Geeta..thank u sweetie... tum itne gusse se kyon hame dekh rahi ho..tumhen maine kahin aur chipkaya hai..jaakar apne ko dhoondho..niraash naa ho.. please.. Lolzzzz

फिर भाई बीच में आ टपके शिकायत करने को....

भाई : कहाँ पटका है ले जाके पिछाड़ी वाले कुन्ने में सबसे नीचे , लेकिन ये हम देख किसको रहे हैं , क्या कोई और भी छिपा है साइड में या पिछाड़े में ? ओ छुप छुप छलने वाले छलिये..... तेरे छुपने छिपानें में क्या राज है....

मैं बोली : Lolzzzzzzzzzzzzzz हा हा हा हा hhhhhhhhhhhhhhhhh
भाई साहेब मुझे इसी बात का डर था..की आप ये शिकायत जरूर करेंगे..जायज़ भी है..मैं भी परेशान थी..लेकिन फिर जितनी अकल है उसे लगाकर समझ में आया की ये टॉप फैन अपने आप ही लोगों की पोजीशन सेलेक्ट करता है की किसको कहाँ पर बिठाया या लटकाया जाये...अफसोस की जहाँ आपको जगह मिली..( हा हा)...उस के बाद कोई नहीं बैठा है जिसे आप ताक सकें..हह्ह्ह्ह..

भाई: कोई बात नहीं..हा हा हा...कम से कम मेरे पीछे कुछ सुंदरियाँ तो हैं टंगी या चिपकी हुई...सुन्दरियॉं पीछे हों और हम आगे तभी तो मजा है .... क्या समझे ......पूरा फौज-फाटा है हमारे पीछे.. ला ला ल ला...
मैं तो इस वाली पिक्चर के लिये तीनों लोक न्योछावर कर दूं ....

मैं बोली: हा हा हा हा ..लेकिन फिर भी आप बोर तो हो रहे होंगे...क्योंकि जिधर आपका फेस है..उधर कोई भी सीनरी या सुन्दरी नहीं है..भाई, सब सुंदरियाँ आपकी पीठ के पीछे हैं..( ही ही )..अब कोने को ताकने का मज़ा भी लो यहाँ बैठकर और भजन करो..ही ही ही.....

इतनी देर में रितु आई.

रितु ने बोला : main kahan hun???????? Booooooooooooo Hooooooooooooo Hooooooooooooo....

मैं बोली : Ritu sorry! tum kahin doosri jagah tangi ho..apne ko dhoondho jaakar....लोल्ज्ज

रितु: nahiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii.
.... aisa nahi ho sakta hai....

मैं बोली: हाँ ऐसा ही हुआ है...

भाई फिर बीच में टपके.

भाई: जो भी यहाँ पिक्चर में नहीं हैं वो सब मेरे दिल में टंगे हुये हैं...हूँ..

रितु: तब ठीक है..

मैं बोली: भाई..मेरी रक्षा करने के लिये आपको बहुत धन्यबाद..और ये बहुत अच्छी और उपकार की बात है कि आपने यहाँ जगह न होने से मेरी हेल्प की और बाकी लोगों को अपने दिल में टांग लिया...और अब तक तो आपके दिल में लोगों की भीड़ लग गयी होगी....लोल्ज्ज्ज़ .

भाई: भीड़ नहीं पूरा मेला लग गया है..इन सबके हाथ में एक-एक माला देंगें...एक-एक मंत्र रटवा कर... हरि सुमिरन करवायेंगें ... बोल हरि बोल....

मैं बोली: हाँ, भाई..कोई खतरा नहीं आपको इनसे..सब अपनी-अपनी जगह टंगी हैं...आप बेफिक्र रहो और कोने को ताकते हुये मुरलिया बजाओ..हरे कृष्णा..हरे रामा..हरे..हरे..
और चलो..मुझे ख़ुशी है, भाई.. की आपको ये वाली पिक्चर स्पेशली पसंद आई...तीनो लोक न्योछावर करने की भी जरूरत नहीं पड़ी.. :):)

भाई मुस्कुरा दिये और कोने को ताकते रहे..और अब वह बिचारे कर भी क्या सकते हैं..जिस पोजीशन पर टंगे हैं वो तो बदलेगी नहीं..

नाम में क्या रखा है ?

जी, क्यों नहीं रखा है नाम में कुछ ? लोग कैसे झट से कह देते हैं की ' अजी नाम में क्या रखा है '. कितना आसान है यह सब कुछ कहना...पर यदि आपका वाकई में नाम बिगड़ चुका है बचपन से तो बड़े होकर उसी नाम से बुलाये जाने पर कितनी तकलीफ होती है और सहना कितना मुश्किल होता है यह वही इंसान जान सकता है जो इस तकलीफ को भुगत चुका हो वर्ना..'' जाके पैर न गई बिंवाई, वह क्या जाने पीर पराई '' वाली बात है. अब आप पूछेंगें की मुझे कैसे पता ? जी...तो...बताना ही पड़ेगा की यह आप-बीती भी है. मैं उन गलियारों से गुजर चुकी हूँ जहाँ बचपन में किसी ने मेरे बिगड़े हुये नाम को लेकर मुझे चिढ़ाया या फिर सहानुभूति दिखाई तो दोनों तरह से ही बेचैनी और तकलीफ होती थी. अब चूँकि, यहाँ फेस बुक पर हम सब दोस्त हैं तो आइये कुछ अपने नाम से जुडी पीड़ा को भी शेयर कर लिया जाये...कहते हैं की दोस्त ही असली दर्द को समझ सकते हैं..सच में मेरे नाम के साथ एक बड़ा हादसा हो गया था जिसे अब भी भुगत रही हूँ...लेकिन जब मैंने बड़े होकर कुछ समझदारी से काम लिया तो दर्द गायब होने लगा और अब किसी हद तक गायब हो गया है. मुझे पता है की मेरी दास्तान सुनकर और लोग चौकन्ने हो जायेंगे, और मेरी भी यही सलाह है की हो भी जाना चाहिये. तो अब मैंने अपने आप ही अपनी दुखती रग पर ऊँगली रख ही दी है तो लाओ उभर आये दर्द को भी सबकी सहानुभूति से कम कर लूं. लेकिन क्या कम हो सकेगा ?..खैर, अब आप सबके मन में उथल-पुथल हो रही होगी की ऐसा क्या हादसा हो गया मेरे नाम के साथ जो मैं अपना दुखड़ा लेकर आ बैठी. तो चलो अब सबका सस्पेंस दूर करुँ..कहानी जरा लम्बी है पर कोशिश करती हूँ संछिप्त में बताने की...हुआ यूँ की मेरा जूनियर स्कूल घर के पास होने से सभी टीचरों को मेरा घर पर बोला जाने वाला नाम धीरे-धीरे पता लग गया...उसके बाद फिर कब, क्यों और कैसे वह सब मुझे शन्नो ( जी हाँ, अब इसी नाम से जानी जाती हूँ और इसी नाम का रोना रो रही हूँ ) कहकर बुलाने लगीं. और मैं इस बात से बिलकुल बेखबर और बेफिक्र थी और सोचती थी की हाजिरी के रजिस्टर में तो मेरा असली नाम ही लिखा होगा..लेकिन असल में जब हाजिरी के समय मेरे नाम को पुकारा जाता था तो मुझे नहीं पता था की वाकई में रजिस्टर में भी स्कूल में मेरी माँ जो नाम लिखा आईं थीं, वह बदल चुका था. और वह नाम था..स्नेहलता( मन फिर से बिलखने लगा है लेकिन मैं काबू में कर रही हूँ ). और असलियत एक दिन सामने आ गई जब मुझसे हाई स्कूल में आने पर एक टीचर ने पूछा की यह मेरा निक नेम है या..तब माथा ठनका और पता लगा की रजिस्टर में तो लिखा हुआ है..शन्नो, बल्कि आठवीं कक्षा का बोर्ड का इम्तहान होने से उसके प्रमाणपत्र पर भी चिपक गया था यही नाम.

सदमें के बाद सदमा या यूँ कहिये की '' एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा ''...मतलब यह की रजिस्टर में तो लिख ही दिया था ऊपर से प्रमाणपत्र पर भी..लेकिन मेरे माता-पिता पर इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. क्योंकि प्रमाण-पत्र पर नाम बदलवाने के लिए कुछ झंझटों का सामना करना पड़ता सो हम इसी नाम को झेलते रहे..और झींकते रहे...और उससे भी बदतर यह की घर में भाई-बहन से कभी झगड़ा हुआ तो गायत्री मन्त्र में मेरे नाम का प्रयोग होने से उस मन्त्र को गाकर वह लोग मुझे चिढ़ाना शरू कर देते थे. उन सबको डांटा तो खूब जाता था पर किसी पर कोई असर नहीं होता था. मुझे तसल्ली देने के लिए मेरे माता-पिता कहते थे की यथा नाम तथा गुण..पर अपने मन को तसल्ली ही नहीं होती थी और मन चुपके-चुपके रोता था...

अब सुनिये मेरे नाम की कहानी का दूसरा पहलू ...वह यह की शादी के बाद जब यहाँ लंदन आई और सर्विस करने लगी तो मेरा नाम छोटा होने के कारण सबको बहुत भाया. तो अपने को बड़ी ख़ुशी हुई जब मुझे सब शानो कहकर बुलाने लगे. तब मैंने अपने दिल को तसल्ली देते हुये सोचा की अरे...मेरा नाम तो जरा फैशनेबिल सा हो गया है. फिर क्या कहने ? मन हुलसित सा हो गया...चहकने लगा ख़ुशी से. थैंक गाड ! वर्ना मानसिक परेशानी हर दिन बनी ही रहती नाम को लेकर. है ना ?

यह तो रही अपने नाम की गाथा....लेकिन आज को भी कई जगह जो माता-पिता अपने बच्चों को टिल्लू, पिल्लू, लल्लू, गुल्लू, सल्लू ( सलमान जी, जरा मुझे क्षमा करियेगा, प्लीज़! ) गुड्डी, चंगू-मंगू , चन्नू-मुन्नू , चिंकी, पिंकी, बबलू, गुड्डू, अन्नू, घुन्नू, गप्पू, पप्पू, टप्पू, चप्पू, चिंतू, मिंटू, बंटी, संटी आदि...और भी ना जाने कितने ही अंट-संट नामों से यदि बुलाते हों तो प्लीज...उन पर तरस खाकर उनके भविष्य की चिंता करते हुये बड़े होने से पहले ही उनके असली नाम से बुलाना शुरू कर दीजिये. एक जान-पहचान के लोगों में उनकी माला नाम की लड़की का नाम स्कूल में मल्लू लिखते-लिखते बच गया. वर्ना आज वह भी रोना रो रही होती अपने नाम का. और रोहित का नाम घर पर प्यार से लल्लू था. कुछ लोग अब भी उसे लल्लू कहने से बाज नहीं आते...लेकिन लल्लू भी अब बहुत चालाक हो गये हैं...लल्लू कोई कह दे तो उस नाम से जबाब ही नहीं देते. फिर आखिरकार झींक कर लोग जब रोहित नाम से बुलाते हैं तब रोहित तुंरत जबाब देते हैं. एक जगह किसी के यहाँ टिल्लू थे..तो उनके घर में सब लोग हाँक लगाते थे..'' अरे ओ टिलुआ कहाँ है रे..'' और टिल्लू ख़ुशी-ख़ुशी भागते हुए आ जाते थे..लेकिन बाद में बहुत तकलीफ हुयी होगी बड़े हो जाने पर अगर टिल्लू इसी नाम से चिपके रहे होंगे..खैर, अपनी-अपनी किस्मत. तो कहने का तात्पर्य यही है की लाड़-प्यार का नाम अपनी जगह एक हद तक, और असली नाम अपनी जगह जिन्दगी भर बरकरार रहे तो अच्छा हो. आजकल के माँ-बाप इतने भी नादान नहीं होते की स्कूल में लिखे नाम पर चौकन्ने ना रहें पर अगर उम्र बढ़ने के साथ बच्चे को घर के नाम से ही बुलाते रहेंगे तो उन्हें दूसरों के सामने सकुचाहट का सामना भी तो करने से कितनी तिलमिलाहट सी होगी...या नहीं ?
ना सोचते-सोचते भी अक्सर सोचना ही पड़ता है की नाम की गहराई को अगर देखो तो क्या-कुछ नहीं होता नाम में...मन का चैन, गर्व, तसल्ली सब कुछ तो होता है...

लेकिन एक गुजारिश है की आप लोग मुझे गलत ना समझें और ना ही तरस खाकर हमें अब कोई दूसरा नाम दें, प्लीज़। फिर मैं अपने आप को पहचान नहीं पाऊँगी...क्योंकि मैं अब अपने इसी नाम की आदी हूँ...वो तो दिल में कभी- कभार टीस उठती थी अतीत में...तो सोचा की मित्र होने के नाते आप लोगों को भी ये कहानी बता दूँ.

Saturday 26 June 2010

नारी की दुर्दशा

बदलते समय के साथ-साथ नारी की और दुर्दशा हो रही है...सबकी उम्मीदों का वजन ढोते-ढोते वह गल रही है.

शहर और गाँव में रहने वाले, कम या अधिक शिक्षित लोग और आर्थिक परिस्थितिओं की विवशता ने भी कई जगह एक बहू...यानी एक शादी शुदा लड़की के जीवन में भी बदलाव लाना शुरू कर दिया है. एक वह समय था जब गाँव व शहर की बहू बस घर का काम देखती थी और लोगों का सत्कार करना और सिलाई, बुनाई, कढ़ाई आदि ही कर पाती थी फिर भी दिन में गप-शप भी करने को समय मिल जाता था. फिर एक ऐसा दौर आया जब केवल उस पर डिग्री का लेबल भी लगा होना चाहिये था (जो अब भी है ) ताकि ससुराल में सब कह सकें की उनकी बहू खूब पढ़ी-लिखी है...लेकिन अब के दौर में अपने देश में ( विदेशों की तो बात ही छोड़ें, वहां भी कुछ काम करती हैं और कुछ नहीं करती हैं ) कितनी ही बहुएँ आर्थिक तंगी से सर्विस करती हैं और साथ-साथ घर व बच्चों को संभालती हैं और सास ससुर की सेवा का दायित्व भी उठाती हैं...

जैसे-जैसे जमाना बदलता गया वैसे ही हर वस्तु में भी बदलाव आता गया. बदलाव से मेरा मतलब है की...हर पिछली पीढ़ी के बाद नई पीढ़ी आती है...तो हमारे चारों तरफ की चीजें तो बदलती ही हैं साथ में पहनावा-उढावा, खान-पान, बोलचाल और लोगों के बिचार भी बदलते हैं. उसी तरह शादी के बारे में भी बिचार लगातार बदलते रहे हैं.

भारत में भी आजकल शादी की बात करते हैं लड़के और लड़की की तो compatibility की बातें पहले होती हैं...लेकिन फिर शादी के बाद compatability (बराबरी) गई भाड़ में...उन्हें तो सब कुछ चाहिये लड़की से. सास को बहू से चाहिये घर का पूरा काम...चाहें बहू सर्विस से आने के बाद कितनी ही थकी हो. और उनके अपने ' प्यारे से लाल ' आराम से बैठे टीवी पर क्रिकेट या फुटबॉल के गेम को देखते हुये रह-रह कर किलकारी मारते रहते हैं और बीबी को हुकुम देते रहते हैं...(जो पहले से ही अपने पैरों पर चरखी की तरह घूम-घूम तमाम काम किये जा रही है)...अपने व दोस्तों को कुछ न कुछ टूंगने के लिये....लेकिन बख्त आने पर...क्या वह भी उसकी सहेलिओं के लिये इतनी ही तवज्जो देते होंगें ?...हाँ, चिपक कर चटर-पटर बातें करके अपना चार्म दिखाकर, अच्छे बनने की कोशिश जरूर करते हैं. दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप लोग कहेंगे की लट्ठ मार बात कह दी फिर भी कह लेने दीजिये मन में रखने से क्या फायदा तो...वह दूसरा कहने का तरीका है की...flirting करके...लेकिन खातिरदारी करना...ओह, नो ! यह शब्द क्यों कह दिया मैंने ? कैसा गुनाह हो गया मुझसे ? PARDON ME!

NO WAY...पुरुष अपनी जगह से हिलेंगे नहीं..हाँ, यह सही है. या फिर हेल्प करने के नाम पर गायब हो जायेंगे जैसे...गधे के सर से सींग. यह ट्रेंड नया नहीं है...actually 1970 के आस-पास चालू हुआ था. विदेशों से चलकर अब यह यूनीवर्सल ट्रेंड हो गया है और हर माडर्न पति घर की जिम्मेदारिओं से ऊबकर इसका शिकार हो गया है. पहले भी यह male species हमेशा से आलसी ही रही है. लेकिन अब घर के अन्दर और बाहर मनोरंजन के साधन बढ़ने के साथ औरत की दशा कई जगह बद से बदतर हो रही है. हर समय entertainment की बातें होती हैं, पर घर की जिम्मेदारियों की नहीं, वर्ना पति महाशय के मुँह का स्वाद खराब हो जाता है. हर समय मनोरंजन की बातें करने की औरत कहाँ से compatibility लाये जब सर पर घर से सम्बंधित तमाम काम लदे हों. इस सब के लिये चाहिये तमाम फुर्सत. तो अब बताइये की औरत तिलमिला के, बिलबिला के, असहाय और असमर्थ समझ कर बुदबुदायेगी नहीं कुछ न कुछ, तो और क्या होगा. और फिर उसे खिताब दे दिया जाता है nagger का....यह शब्द अंग्रेजों की औरतों को खूब सुनना पड़ता है...आदमी तो हर जगह हैं ना ? उनकी जबान को कौन रोक सकता है. जहाँ जिम्मेदारिओं का अहसास नहीं वहीँ दरारें पड़ने लगती हैं. जो औरतें या बहुएँ इस तरह की परिस्थिति में होंगीं उनकी ही सहानुभूति दूसरी औरत के लिये होती है चाहें वह कोई देश हो...एक औरत दूसरी औरत के अहसास को समझती है...वह चाहें किसी भाषा को बोलती हो या किसी भी धर्म या सभ्यता की हो.
एक कहावत है ''जाके पैर ना गई बिंवाई, वह क्या जाने पीर पराई.'' एक सी समस्या या दुख से ही तो संगठन की भावना को जन्म मिलता है. ठीक कहा ना मैंने ?

OOPS!! किसने कहा है की नारी अबला है ? अरे, यह सब तो कहने की बातें हैं. असल में नारी का जीवन और कठिन होता जा रहा है क्यों की उससे सबकी उम्म्मीदें इतनी बढ़ गयी हैं की वह एक पारिवारिक जीवन को ढंग से निभा नहीं पा रही है, क्योंकि सबको खुश रखना बहुत मुश्किल हो जाता है.

शादी के पहले देखते हैं की लड़की अच्छी तरह शिक्षित हो...कभी-कभी तो उसकी योग्यता लड़के के बराबर हो क्योंकि उसे (लड़के को) केवल खाना और सफाई करने वाली ही नहीं चाहिये (अपने आप तो शायद खाना बनाना और सफाई-सुथराई की परिभाषा भी न जानते हों ). अगर जरूरत पड़ी तो पति लोग बेमन से कुछ कर देते हैं और सोचते हैं की इस तरह उलटी-सीधी तरह से काम करने से वह दोबारा काम करवाने की उम्मीद ही नहीं रखेगी उनसे और वह अगली बार काम करने से बच जायेंगे. या फिर कुछ हाथ बंटाने की वजाय बहाना करके टाल-मटोल कर जाते हैं यह कहकर.. ' अरे तुम इतनी neurotic क्यों हो '...या फिर ' क्या जरूरी है की रोज़ सफाई हो, अभी इतनी जल्दी भी क्या है ? ' और भी सुना है की न जाने क्या-क्या बुदबुदाते रहते हैं. लेकिन हाँ, उनके अपने entertainment में कोई कमी नहीं रहनी चाहिये. घर में तो हाथ बंटाने के नाम पर जैसे पहाड़ टूट पड़ता है और अगर दोस्त के संग मटरगश्ती करनी हो तो पता नहीं कहाँ से अचानक शरीर में फुर्ती आ जाती है...चाहें कुछ देर पहले जबरदस्ती नाक पूँछते हुये जुकाम होने की एक्टिंग कर रहे हों. लेकिन हर वाइफ इतनी भी बेवकूफ या मोटे दिमाग की नहीं होती है की इस नौटंकी का मतलब ना समझ सके.

पति चाहें किसी पीढ़ी के हों लेकिन सब आलसी जीव होते हैं और एक्सपर्ट होते हैं काम से बचने की बहानेबाज़ी में. लेकिन टीवी पर स्पोर्ट हो या दोस्तों का फोन आये तो तैयार होकर बाहर जाने में मिनट भी नहीं लगते. ऐश ही ऐश है भाई ! वाइफ दांत किलस कर सारा काम निपटाएगी ही और साथ में नाक टपकाते हुये पें-पें करते बच्चों को भी संभालेगी...और कुर्सी या चारपाई पर बैठी माँ जी को भी...जो एक ही दिन में बहू के घर में कदम रखते ही बूढ़ी हो जाती हैं, पर जब अपनी अक्सर मिलने जुलने वाली सहेलिओं के यहाँ जाती हैं तो पैर का दर्द ठीक हो जाता है उस दिन अचानक..ईश्वर की महिमा तो देखो ! फिर अपनी सहेलिओं से यह भी कहती हुई सुनीं जाती हैं की..' बहू का तो काम प्यारा होता है चाम नहीं '..जैसे की बिचारी बहू हाड़-मांस की नहीं बल्कि पत्थर की बन कर आई है की उसे कभी कोई हारी-बीमारी होनी ही नहीं चाहिये ..अब आप ही बताइये की क्या वह इंसान नहीं है? और क्या हर सास को बहू के आते ही अपने को बूढा कह कर सारा दिन बस आराम फरमाना चाहिये बिना बीमारी के ? बहू भी तो आखिर एक इंसान है. उसे भी तो आराम की जरूरत होती है.

और यदि कभी वाइफ को जुकाम हो गया तो पतिदेव को लगता है की वह क्यों पीछे रहें तो वह भी जबरदस्ती खों-खों करने लगते हैं और लगने लगता है की उन्हें जुकाम हो गया है, ताकि काम से बच जायें वाइफ के बीमार होने पर. और फिर एक औरत होने के नाते वाइफ अपने को घसीट कर घर के काम करने लगती है...और पति जी बिस्तर में रजाई ओढ़ कर अपनी बिना टपकती नाक वाइफ को देखते ही पोंछने लगते हैं जैसे की उस बिचारी को असलियत का पता ही नहीं. लेकिन क्या करे फिर वो भी इस परिस्थिति में...उसने तो अपना, बच्चों का और घर का काम करना ही है..किसके सहारे छोड़े और किससे बहाना करे और नखरे दिखाये...बस कहानी चलती रहती है वैवाहिक जीवन की लंगड़ाते हुये...

इसका क्या इलाज़ होना चाहिये...?

वलदेव हलवाई

उन दिनों उस छोटे से कसबे में कुछ अधिक लोग नहीं रहते थे. हर कोई एक दूसरे को जानता था. मजहब के कोई झगडे नहीं थे. ना ही व्यापार में कोई कम्पीटीशन. मिलते जुलते हुए लोग एक दूसरे से हँसी मजाक करते थे और किसी भी समय एक दूसरे का स्वागत करने को तैयार रहते थे. ना कोई दिखावा, ना ही कोई समय का पाबंद किसी के यहाँ जाने का. कभी भी चले जाओ और लोग प्यार में बिछ जाते थे एक दूसरे के लिए....मिलते-जुलते दिल नहीं भरता था किसी का एक दूसरे से. लोगों के दिल बड़े थे खिलाने-पिलाने के मामले में. और उन दिनों उस कसबे में मिठाई की दुकानें भी अधिक नहीं थीं. और हलवाइयों के दोस्त लोग तो उनकी दुकान में मुफ्त की रबड़ी और रसगुल्ले नित्य ही झाड़ते रहते थे. लेकिन वह उन दिनों की दिलेरीपन की मिसालें थीं. तब जाने-माने घरों के बच्चों को भी दूकान पर आने पर हलवाई लोग कई बार मुफ्त में ही मीठा-नमकीन हाथ में पकड़ा देते थे. अक्सर ही ''अरे दद्दा इधर तो आओ, जरा देखो तो...अभी-अभी यह गुलाब जामुन बनी हैं खाकर तो बताओ कैसी हैं.'' या फिर ''अरे ताऊ कैसे हैं आप, और यह क्या बन रहा है?''..''अरे लल्ला कहाँ जा रहे थे ...आओ-आओ आप यह गरम-गरम इमरती तो चखकर बताओ और यह दो-चार बहू व बच्चों के लिये भी दोने में लेते जाओ.'' तो उस कसबे में इतने उदार थे हलवाई लोग अपने जान-पहचान वाले लोगों के लिये. लेकिन अब कहाँ वो बात रही ?


उनमे से एक हलवाई को जाना जाता था वलदेव हलवाई के नाम से. वह वहाँ पर नये-नये थे. एक छोटी सी दुकान से श्रीगणेश किया था. शुरुआत में तो उनकी दुकान इतनी अच्छी नहीं चली, क्योंकि पहले वाले नामी हलवाइयों के सामने उनकी कोई बिसात नहीं थी, ना ही नामवरी. और सुबह-सुबह हर दिन जब गरम-गरम जलेबी और समोसे हरी हलवाई और रामचंदर ताऊ के यहाँ बनते थे तो बड़े घरों के लोग वलदेव के यहाँ से नहीं बल्कि उन नामी हलवाइयों के यहाँ से ही मंगवाते थे. शाम को मिट्टी के कुल्हड़ों या सकोरों में खुरचन वाली रबड़ी आती थी बड़े लोगों के यहाँ तो वह भी उन्ही हलवाइयों के यहाँ से ही. वलदेव के यहाँ से नहीं. और वलदेव के यहाँ छोटी जगह होने से बाहर ही भट्टी पर दूध की कड़ाही में बराबर कोई नौकर खोया या रबड़ी बनाने को दूध को अपना पसीना पोंछते हुये चलाया करता था. ताज्जुब की बात नहीं कि उसमें पसीना भी टपक जाता हो. कितनी ही तो मक्खियाँ उसमे गिरकर मोक्ष को प्राप्त हुआ करती थीं हर दिन. तब उन दिनों वलदेव की दूकान पर गरीब लोग ही खरीदते थे जाकर. सड़क पर गुजरते हुये गाय और बकरियाँ भी मौके का फायदा उठाकर लड्डू, वर्फी, बालूशाही के थालों पर मुँह मारने से पीछे नहीं रहती थीं.


खैर, धीरे-धीरे वलदेव की भी किस्मत का सितारा चमका और लोगों ने उधर भी ध्यान दिया. एक कान से दूसरे कान में भनक पड़ी और उनके यहाँ भी लोगों की संख्या बढ़ने लगी. एक दिन ऐसा आया कि फिर औरों का नाम पीछे रह गया और हर सुबह शाम वलदेव हलवाई के यहाँ ही तांता लगने लगा. चार गज दुकनिया की वजाय अब उन्होंने स्टेशन के पास एक बड़ी दूकान खोल ली, जो बड़े मौके की जगह थी. इस बात को भी काफी साल हो गये हैं. अब तो वहाँ मिठाई-नमकीन के साथ-साथ उन्होंने एक रेस्टोरेंट भी चालू कर दिया उसी में ही. किस्मत की बात कि खाने वालों की भीड़ लग गयी. छोटा-बड़ा और गरीब-अमीर सबकी ही जबान पर लाला वलदेव का नाम था. वलदेव के बच्चे हुये तो उनमे से उन्होंने कुछ बेटों को उसी दूकान में कुछ पढ़ाने-लिखाने के बाद लगा दिया. और कई नौकर भी काम करने को लगा लिये. अब तो बस चांदी ही चांदी थी. उनका नाम चमकने लगा.


सुना है अब आधी रात तक दूकान बंद होने का नाम ही नहीं लेती. आस पास के गाँवों से जो भी आता है वहाँ ही जाता है. सभी बड़े घरों के लोग अब लाला वलदेव के यहाँ से ही मिठाई मंगवाना पसंद करते हैं. पीछे की तरफ रेस्टोरेंट में टेबिल और कुर्सियां डाल दीं हैं जहाँ बैठ कर लोग खाना खाते हैं. सामने की तरफ गद्दी पर काउंटर के पीछे लाला और उनके बेटे बैठते हैं जहाँ दुकान के सामने खरीदने वालों की लाइन लगी रहती है.


अब इन दिनों तो पैसे में लाला लोट रहे हैं. लेकिन पता नहीं लाला को यह बात पता है कि नहीं पर सुनने में आया है कि कई बार गाँव वाले खाना खाने के बाद पैसा ही नहीं देते. क्योंकि अब तक उनके यहाँ सिस्टम है काउंटर पर जाकर पैसा देने का. सो इस बात का फ़ायदा उठाते हुये कई नियतखोर बिना पैसा दिये हुये ही चलते बनते हैं. वह इस तरह कि वेटर से कहेंगे '' भैया हम जरा हाथ धो के आते हैं अभी, और फिर जाकर पैसा उन लाला को दे आयेंगे.'' वेटर इतनी देर में किसी और के लिये खाना लेने जाता है और वह इंसान हाथ धोने के बहाने नौ-दो-ग्यारह हो जाता है. ना वेटर को खबर ना लाला को. और वह गाँव वाला अपने साथियों में शान से ढींग मारता है की '' खाओ पियो चल देउ, लाला का नाम वलदेउ.''


उन लाला के पास इतना पैसा है कि उन पर वही बात लागू होती है की ''अगर कुआँ में से कुछ लोटे कोई पानी खींच ले तो वह कुआँ तो खाली नहीं हो जाता.'' तरस खाने की बात नहीं है लाला पर लेकिन भोले-भाले से गाँव वाले अब नियत के कैसे हो गये हैं यह सोचने की बात है. ऐसा सुनने में आता है कि अब तक तो वही ढर्रा चल रहा है. अब ये तो लाला की समस्या है वो आगे कुछ करना चाहेंगे इस बारे में या नहीं इसके बारे में कोई क्या कह सकता है.


Friday 25 June 2010

'' हमारे सवाल आपके जबाब '' निरानंद जी का इंटरव्यू

'' हमारे सवाल आपके जबाब ''..शीर्षक से..आज मैं फेसबुक के जाने-माने अदभुत लेखक और महान रचनाकार '' निरानंद '' जी का साक्षात्कार उनकी कुछ नयी झलकियों के साथ..आप सभी से करवाने जा रही हूँ...

मैं: निरानंद जी प्रणाम...आज आपके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ...आपके नाम का इतना प्रचार है और सारे फेसबुक पर ही इसकी बहार है...लेकिन आज यह वन टू वन बातचीत सभी फेसबुक के साथिओं के लिये पहली बार आपसे कर रही हूँ...आपकी इज़ाज़त के ( या बिना इज़ाज़त ) आशा है की आप अपने बहुमूल्य समय में से कुछ समय निकाल कर ( बर्बाद करके ) हमें देने का कष्ट करेंगे और हमें कृतज्ञ करेंगे..कुछ संक्षिप्त में सवाल हैं.

निरानंद जी: हूँ, प्रणाम..बोलिये आपने जो बोलना हो...पूछिये जो आपने पूछना हो...सोचिये अगर आपने कुछ सोचना हो...हूँ...

मैं: आपको लेखन का चस्का....क्यों..कब और कैसे लगा ?

निरानंद जी: हूँ, सोचता हूँ..सोचता हूँ...कुछ बातों का जबाब होते हुये भी नहीं होता..कुछ ऐसा ही हमारे साथ है...कुछ बातों का हिसाब पल, दिन और सालों में नहीं रखा जाता...क्या आपको कोई परेशानी होगी अगर हम कहें की हमारा शायद जनम ही हुआ था लिखने को और लोगों को हँसाने के लिये...हा हा हा...इसमें किनारे पे नहीं छलाँग मार के कूद पड़ने में ही मजा आता है...तैरने में नहीं डूबने में आनन्द आवे है...इक ज्ञान का दरिया है और डूब के जाना है...हा हा..

मैं: आप अक्सर ज्ञान-चर्चा छेड़ते हैं और फिर लोगों को उस ज्ञान-जाल में फंसा कर आनंद महसूस करते हैं...ये किस हद तक सही है ?

निरानंद जी: हूँ,..ये उसी हद तक सही है जिस हद तक ऊपर वाला हमें इस दुनिया की मुश्किलों को भुगतने के लिये छोड़कर बैठा हुआ तमाशा देखता है..तो हम भी अपने भक्तों को मेरा मतलब है ज्ञानियों व अज्ञानियों से ज्ञान की चर्चा की शुरुआत करते हैं फिर उनकी आपस की बहस का आनंद लेते हैं..तब भी तमाशा वो ऊपर वाला देखता है..और साथ में हम भी सबको खेल खिला कर चुपके से अलग बैठ कर...हा हा हा हा..

भक्त के वश में है भगवान बस जान इतना लीजिये
सब बिसरा याद आये जरा याद तो दिल से कीजिये.

मैं: सुना है की आप लेखन की कला में माहिर होते हुये तमाम विषयों पर डिसकस करने में पटु हैं ऐसा कम ही देखने में मिलता है...और राजनीति की गंगा में भी डुबकी लगा रहे हैं...लोगों को डराते-धमकाते भी हैं...जेल पहुँचाने की भी हस्ती रखते हैं...यह सही है ना ?

निरानंद जी: हूँ, आपका सोचना सही है...

मैं: इसके वावजूद भी आपको घमंड रत्ती भर नहीं छू गया है...आप बड़ी-बड़ी हस्तियों के अलावा हमारे जैसे साधारण लोगों से भी बोलने में नहीं झिझकते या दूसरे शब्दों में कहूँ की शर्म नहीं महसूस करते..ऐसा क्यों ?

निरानंद जी: क्यों का क्या मतलब ? मैडम..जो करे शरम उसके फूटें करम..हा हा..यह मौसम तो पहले से ही चल रहा था..जिन्दगी के पल दो पल हैं..कुछ हँस लो मुस्कुरा लो..महफिलें सजा लो...जीवन की डोर...बड़ी कमजोर...क्या जाने कब टूट जाये. अपने दिमाग से सोचो की असली लाइफ का मजा तो पब्लिक में घुल-मिल कर ही मिलता है...तो हमारी ख़ुशी है की हम अपनी चौपाल या कहो बैठक लगाकर जब तक लोगों से बातचीत नहीं करते..हँसते-बोलते नहीं हमको मजा नहीं आता...अरे भाई..ये दुनिया चार दिन की है...

जिन्दगी की रेलगाड़ी छकपक करती जाय, इक स्टेशन सीटी देती दूजे पर कुकियाय
बड़ा विचित्र गाड़ी का मेला कोई समझ ना पाये, ठंडी हवा के इन झोंको में मस्त सफर कट जाये.

मैं: हमने सुना है की आपको राजनीती में तो चस्का है ही..पर आपको फिल्मों और फ़िल्मी गाने सुनने का भी अत्यधिक चस्का पड़ा हुआ है..और बात-बात में आपको फ़िल्मी डायलाग बोलने का दौरा पड़ता है..और फिर गाने की लाइनों की टांगे तोड़ देते हैं आप..इसमें कितनी सचाई है ?

निरानंद जी: हाँ, हम इतनी बड़ी हस्ती हैं...फेसबुक पर भी मस्ती है...दुनिया हमारे साथ हँसती है...क्या आप भी बताने की तकलीफ करेंगी की दुनिया आपके साथ क्यों हँसती है..क्या आप बता सकती हैं की आपको राजनीति में इंटेरेस्ट क्यों नहीं है ?

मैं: जी..वो...मैं...मैं....मैं तो यहाँ आपका इंटरव्यू फेसबुक की तरफ से लेने आई थी...बस इसलिये..लेकिन आप तो नाराज़ होने लगे...क्षमा कीजिये सर जी, अगर कोई बात आपके हृदय को चुभ गयी हो तो...

निरानंद जी: ठीक है..आगे का सवाल शूट करिये...

मैं: हम्म्म्म.. इतने महान होकर भी हमने सुना है की आपकी कुछ लोगों से दुश्मनी हो गयी है...और आप उनकी तरफ देखना भी नहीं चाहते...क्या यह सत्य है ?

निरानंद जी: नज़र-नज़र में हाल दिल का पता चलता है..उनकी नज़र किधर है साफ़ पता चलता है..अरे छोड़ बातें दुश्मन होने की जरा पास आ, थाम के तेरा हाथ जो गले से न लगा लूं तो दुश्मन नहीं...हम दुश्मन हैं कुछ अलग अंदाज के जो दुश्मन को गले लगा कर उसे प्यार देते हैं...दुश्मन का दिल लूट कर अपने प्रेम में जकड़ अपनी हुकूमत का सरताज बनाते हैं. हा हा हा ..ये भी फ़िल्मी डायलाग है..कैसा लगा ?

मैं: सुना गया है..मेरा कहने का मतलब है..उड़ती-उड़ती ख़बरें मिलती हैं आपके बारे में की..आपके संग कुछ हगिंग-किसिंग का लफड़ा भी होता रहता है..लड़के आपको ईमेल और मोबाइल पर बेधड़क मेसेजेज़ भेजने की जुर्रत करते हैं..और लड़कियों के संग सैंडल बाजी के लफड़े भी हो जाते हैं अक्सर..इंटरव्यू ले रही हूँ इसलिए पूछना आवश्यक है ( ही ही ) तो क्या ये भी सत्य है ?

निरानंद जी: नज़र-नज़र में हाल दिल का पता चलता है...किसकी नज़र किधर है साफ़ पता चलता है..हा हा हा हा हा..पट्ठे मेरे मोबाइल पर हग के मेसेज भेजते हैं और ईमेल बॉक्स भरा रहता है...हगिंग और किसिंग के मेसेजेज़ से...अब तक तो सुंदरियों के हग, किस और सैंडल की चिंता करते थे..और अब ये कमबख्त लड़के भी मेसेज भेजने लगे हैं...ससुरों ने नाक में दम कर रखा है...क्या जमाना आ गया है..हा हा हा...

मैं: निरानंद जी..आपका भ्रष्टाचारी के बारे में क्या कहना है ? और साथ में देश में बढ़ती हुई मंहगाई, भुखमरी, गरीबी, गर्मी, मच्छर, पानी और गंदगी के बारे में कुछ बिचार प्रकट कीजिये..इन बातों से आप बहुत प्रताड़ित होकर अपनी महफ़िल..मेरा मतलब अपनी रोज़मर्रा वाली बैठक में बहुत गरमजोशी से बातें करते हैं..यहाँ इन मुद्दों पर कुछ रोशनी डालिये.

निरानंद जी: खून पसीने की जो मिलेगी तो खायेंगे...नहीं तो यारो हम भूखे ही सो जायेंगें...

पैसे की पहचान नहीं, इंसान की कीमत कोई नहीं, बच के निकल जा इस बस्ती से यहाँ करता कोई मुहब्बत नहीं
मच्छर बन सब खून चूसते हैं, भुखमरी से कोई डरता नहीं, साबुन की क्या जरूरत है जहाँ हाथ धोने को पानी मिलता नहीं
बिजली धोखा देती है हर दिन, ये मुयें मच्छर रात में मरते नहीं, मंहगाई की क्या बात करें कभी हम इससे उबरते नहीं.

मैं: सुना गया था की आपने कोई वंदना लिखी थी भ्रष्टाचार महाराज को खुश करके हमेशा-हमेशा के लिये भगाने के लिये..मुझे लगता है की ये वंदना भी एक रिश्बत की ही तरह है..भ्रष्टाचार महाराज को भेंट की गयी..आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे..क्या भ्रष्टाचार महाराज खुश नहीं हुये अभी तक..क्या शर्म नहीं आई उन्हें..अब तो इतनी निंदा सुनने के बाद भागते नजर आने चाहिये..या लोग पगले हैं जो इसकी वंदना में राग अलाप रहे हैं..इतनी वंदना गाने के बाद भी किसी पर असर नहीं होता...

निरानंद जी: ओ, सोनिये..देख तूने मेरे डायलाग मुझसे पहले ही बोल दिये हा हा हा..भ्रष्ट गंगा तो भ्रष्ट गंगोत्री से लेकर भ्रष्टाचार के गंगा सागर तक सब साफ होना चाहिये, क्या आपको इस बात में कोई वजन लगता है..की नहीं ?

मैं: देश के क्राइम मेरा मतलब है की बढ़ते हुये अपराध चोरों आदि को सजा दिलाना..इसके पीछे भी आपका योगदान कुछ बिचित्र प्रकार से होता है..( ही ही ही )..अगर बुरा ना माने तो कुछ बताने का कष्ट करें..ये मैं नहीं कह रही सर जी..कुछ और मीडिया व पब्लिक की तरफ से सुनने में आया है..तो आपके क्या ख्यालात हैं इस बारे में ?

निरानंद जी: अरे ख्यालात क्या होंगें...चोरों के पीछे तो हम जब पड़ते हैं. तो उन्हें लतिया के मुकिया के धकिया के उनके भेजे को ऐसा ठिकाने लगाते हैं..उन्हें ऐसा रपटाते हैं की फिर वो गिरते-पड़ते अपना पिछौड़ा झाड-पोंछ के ऐसे भागते हैं की मुड़ के भी देखने की हिम्मत नहीं पड़ती..जैसे उनके पीछे भूत पड़े हों..वो ऐसी जगह पहुँचते होंगे जहाँ वो हमारी खुसबू दूर-दूर तक न सूंघ पायें..हम उनके भागने के पहले उन्हें दिन में ही तारे दिखा देते हैं...या दिल में तारे हा ह हा..

मैं: हा हा हा..सर जी माफ़ करियेगा हँसने के लिये...मैं रोक नहीं सकी अपनी हँसी..सॉरी..
आपका आजकल के मौसम के बारे में क्या ख्याल है ? मेरा मतलब है की कभी गर्मी..कभी ये ठंडी हवायें ?

निरानंद जी: आसमान पर बादल छाये रहने तथा ठंडी हवायें चलने से मौसम सुहाना हो गया और ये ठंडी हवायें..मन को सतायें..आजा गोरी मोहे काहे को रुलाये..काहे को रुलाये..ये ये ये..मुर्दा और पत्थर भी मोहब्बत के तराने में डूब जायें. एक-एक पंक्ति पर चुलबुली हरकतों पर, उन हसीन वादियों पर..बस वाह, वाह कहने के अलावा और कोई शब्द ही नहीं सूझते.

नजारा देख तारों का, आठ दिन जो दिखते हैं, करोड़ों हैं गोया फिर भी छाये हुये अँधेरे हैं. उजाला चॉंद का दिल में, मोहब्‍बत भी उसी से है, भले ही तारों के मंजर छाये हुये हजारों हैं.
आजा आई बहार... दिल है बेकरार ... ओ मेरे ... राजकुमार

मैं: तो यह वाकई में सच है आपको देखकर की आपको आशिकी के गाने बहुत पसंद हैं..और इस मुद्दे पर बात करना भी आपका शौकिया अंदाज़ है.

निरानंद जी: हा हा हा ये एक अबूझ पहेली है...मोहब्बत तो हमें जिन्दगी से बेइन्तहां है..आशिकों को दिन में तारे नजर आते हैं, कोई जरा उनकी नजरों में झांक कर तो देखे...हिन्दुस्तान तो चांद को धरती पर लाने और कटोरी भर पानी में उतारने का काम सदियों पहले कर चुका...सुना नहीं...मैया मोरी चन्द्र खिलौना लैहों, या फिर इक रात में दो दो चाँद खिले इक घूंघट में इक बदली में..या फिर दिनतारा...दिनतारा..दिनतारा
तेरा नजारा बडा प्यारा..ताक धिना धिन..ताक धिना धिन...या फिर किसी ने गंगाघाट का पानी पिया है...फ़ोकट में दिन में तारे दिखा दूंगा...हा हा हा...

किस्‍सा ए लैला का सुना, मुफत मजनू मारा गया खाये पत्थर पागल पुकारा गया
क्‍या वो देवदास था क्‍या चन्‍द्रमुखी की कहें कि बदनसीब पारो की सुनें उन्‍हें भी गरियाया गया
जो भी इस डगर पे चला दोस्‍तो या तो बेवफाई की भेंट चढ़ा दोस्‍तो या जमाने से ठुकराया गया
बहुत बेहतर है जरा सध के चलो, किसी रूप के भंवर जाल में न फंसो इतर न होगा अंजाम ये बताया गया
रूप राह पर चल-चल कर पॉंव फफोले उठते हैं, फिर भी यारो कब कहॉं किसके सपने सजते हैं
बड़ी दुश्‍कर है राह कठिन, पर कभी-कभी कोई चाहने वाले बड़ी मुश्किल से मिलते हैं
हमने बिगड़ी मुहब्‍बत के अंजाम कई नाकाम सुने, पर सच्‍चे चाहने वाले हमें चन्‍द मगर, पर खूब मिले
नसीबा अच्‍छा था, पार हुये, हमराह हुये, बेवफाई-तिजारत की इस मण्‍डी में हमें सच्‍चे दिल के यार मिले.

हाँ, तो आप फिर क्या कह रहीं थीं ?

मैं: आपके इस इंटरव्यू से मैं व समस्त पाठक और श्रोता भी प्यार की बारिश में नहा गये...आपकी सब पर हमेशा ऐसी ही इनायत रहे.

निरानंद जी: हाँ..हाँ क्यों नहीं, क्यों नहीं..इनायत रहेगी बिलकुल रहेगी..इसमें कोई शक नहीं...हा हा हा...
पर लडकियाँ दिमाग घुमा-घुमा कर चकरघिन्‍नी कर देती है..अर्थ का अनर्थ कर देती हैं...भगवान ने लडकियों का दिमाग छोटा और कभी-कभी दिल भी छोटा बनाया है, जब सोचेंगी, अपने दायरे में ही सोचेंगीं, सबको अपने जैसा ही सोचतीं हैं...पता नहीं क्या अपने को समझ रखा है...की..

मैं: सॉरी ! लगता है की आपकी किसी दुखती रग पर मैंने उंगली रख दी है..आपको हमारे सवाल से तकलीफ पहुँची हो तो हम क्षमा माँगते हैं.

निरानंद जी: नहीं, नहीं..ऐसी कोई बात नहीं मैडम जी..आप अपने सवाल जारी रखिये यही जीवन का क्रम है..मन पे आघात लगता है की लड़कियां आती हैं झलक दिखा कर छूमंतर हो जाती हैं...
बंसी बजाओ बंसी बजैया...चारों तरफ गोपियॉं बीच में कन्‍हैया..सोचिये अपने ही दिमाग से सोचिये की कन्‍हैया बनने का शौक किसे नहीं होता...बस गोपियां नहीं मिलतीं..हा हा हा हा मतलब समझीं न आप..जब गोपियाँ मिलेंगी तभी तो कोई बंशी बजायेगा..बोलिये..

मैं: जी..जी...अच्छा जी...हाँ, तो अब आप बताइये की आप अपने...मेरा मतलब है..सॉरी.. ( हा हा हा )..

निरानंद जी : कभी खुदा की रहमत से आये चॉंद जमीं पर जो, आगे बढ़ कर थाम लो. चूम कर हिफाजत से रखना, सीने में रख कैद करना, क्‍या पता कब भोर हो. पर चॉंद का दस्‍तूर अलग, वह न मिले रोज रात को. जो सात दिन का चॉंद है, फिर आठ दिन बस याद है. याद में गुजरें आठ दिन, उससे पहले संभल, रख चॉंद को महफूज कर आपको कुछ समझ में आया या नहीं...

मैं: हाँ, आया...लगता है की आपको खुद भी गाने का बहुत शौक है ?

निरानंद जी: सही फ़रमाया, मन को भरमाया..हमने खूब गाया..जम कर गाया..कईयों के संग गाया है, अब छोड दिया..मोबाइल, इण्टरनेट, फेसबुक है न...अब तो सुबह यहीं होती है शाम यहीं होती है, बस यूँ ही जिन्दगी तमाम होती है.
हा हा..जब फिल्म में बारिश होती है तो हम भी प्यार की बारिश में नहा जाते हैं..और फिर कभी-कभी गुनगुनाते जरूर हैं...वो क्या कहा आपने..शौकिया..हा हा हा..

मैं: सर जी..एक बार आपका इंटरव्यू एक लेडी ने लिया था..और सुनने में आया था की उनके लिखे इंटरव्यू को आपने ख़ारिज कर दिया था...और उनका डब्बा भी गोल कर दिया था..मतलब की उन्हें उनके जॉब से निकलवा दिया था...और वह इंटरव्यू छपते-छपते रह गया..अखबार में..इस पर भी क्या आपकी कुछ प्रतिक्रिया मिल सकती है ?

निरानंद जी: ये इंटरव्यू आनंद देने वाला है..कोई सीरियस मैटर नहीं...हम उस सीरियसनेस और उस महानुभाविका को सदा सर्वदा के लिये तिलांजलि दे चुके हैं...हमें टेंशन के तोते पालने की आदत नहीं है, मूरख की दोस्ती जी का जंजाल...अब हम राहत और आनंद महसूस कर रहे हैं...वो हमसे ऊट-पटांग सवालों की बौछार कर रही थीं..हा हा हा..चलिये छोड़िये उस बात को...बीती ताहि बिसारि के, आगे की सुधि ले..हे हे हे हे..कुछ समझीं आप ?

मैं: जी..जी हाँ, बिलकुल समझी..आपने अपना ये बेशकीमती समय हमारे इंटरव्यू के लिये दिया है उसके लिये आपको बहुत धन्यबाद.

( हे भगवान ! मैं कहाँ फंसी आकर...ये निरानंद जी तो निरे सनकी लगते हैं की जरा सी भी हंसी यहाँ तो फंसी...और अगर कुछ देर और रुकी तो ये निरानंद जी कहीं हमारा भी डब्बा न गोल करा दें.. इसलिए जल्दी सरकूं यहाँ से अब )

निरानंद जी: कहॉं तेरी ये नजर है...मेरी जान मुझे खबर है...चल चलें ऐ दिल कहीं पर...कर किसी का इंतजार...
आखिरी गीत मोहब्बत का सुना लूं तो चलूं ..मैं चला जाऊंगा दो अश्क बहा लूं तो चलूं...
ओ दुखी मन मेरे अभी मत जाना..किसी की जिन्दगी का नहीं है ठिकाना..ओ दुखी मन मेरे...

मैं: निरानंद जी बहुत ख़ुशी हुई आपका साक्षात्कार करके और आपसे बात करके...लेकिन अब हमारा यहाँ और ज्यादा रुकना असंभव है..आप भूल रहे हैं की यहाँ से हमें जाना है..आपको नहीं. हमें बहुत ख़ुशी होती आपका गाना सुनकर मगर हमें अब जरा जाने की जल्दी है...किसी और का इंटरव्यू लेने के लिये..और आपके इंटरव्यू का समय समाप्त हो गया है इसलिए आप से मैं क्षमा प्रार्थी हूँ..वैसे आप मेरे जाने के बाद भी गाना गाकर आँसू बहा सकते हैं.

निरानंद जी: ढल गया दिन, हो गयी शाम...जाने दो जाना है..अभी-अभी आये हो...अभी-अभी जाना है...ओ ! जाने वाले जरा रुक जा, मेरी मंजिल का पता क्या...पता क्या...पता...क्या...ठीक है..गुडबाई..हा हा...

मैं: निरानंद जी, आप हमेशा इसी तरह खुश व सानंद रहें ऐसी हमारी शुभ-कामना है और जो आपने अपना बहुमूल्य समय इंटरव्यू के लिये दिया है उसके लिये सभी फेसबुक के साथियों की तरफ से आपको हार्दिक धन्यबाद...आल द बेस्ट फार योर फ्यूचर...बाई...बाई...

* फेसबुक पर जिन मित्रों को अपना इंटरव्यू देना हो वो कृपया अपना फुल परिचय देते हुये हमसे कान्टेक्ट करें...उनकी खिदमत करने के लिये भी हम तैयार हैं...वट दिस लिमिटेड ऑफर डिपेंड्स ओनली आन टाइम अवेविलिटी...