Wednesday 27 October 2010

करवा चौथ..या कड़वा चौथ ?

हाँ, अपने समाज का यह कड़वा सच है कि एक औरत ही पतिव्रता बन कर वफादार रहती है और पति से अगले सात जन्मों के बंधन के बारे में सोचती है. लेकिन पुरुष के मन में क्या है उसका पता उसे नहीं लग पाता. और वो शायद जानना भी नहीं चाहती. तो ये तो एक तरह से पति पर ज्यादती हुई कि उसकी पत्नी अगले सात जन्मों में भी उसी पर अपने को थोपना चाहती है, है ना ? अपने पति की असली इच्छा जाने बिना ही अगले सात जन्मों में भी उसी से ही चिपकी रहना चाहती है. आँख-कान बंद करके औरत यही करती आयी है अपने समाज में पतिव्रता बनने की कोशिश में. क्या ये दिखावा है..ढोंग है लोगों को अपने पतिव्रतापन को इस तरह से जताकर ? इन बातों पर जब गंभीरता से गौर किया तो मुझे यह सब लिख कर कहने की प्रेरणा मिली.

मानती हूँ, हर तरह के बिचार व व्यवहार के लोग हर जगह होते हैं..और आज की आधुनिकता में तो लोगों के बिचार लगातार बदल रहे हैं. पहली बात तो ये कि अगले जनम का क्या पता कि कौन क्या होता है और मिलता भी है या नहीं. लेकिन जहाँ चाहत व असली प्यार हो वहाँ तो ऐसी बातें करना अच्छी लगती हैं..वरना औरत अपने को एक तरह से वेवकूफ ही बनाती है इन सब बातों को करके व कहके. चलो मानती हूँ कि जो औरतें पूजा-आराधना करती हैं पति की लंबी उम्र व भलाई के लिये वो सही है किसी हद तक. लेकिन अगला जनम उसी के नाम !!!! WHO KNOWS ABOUT THAT ? पता नहीं दुनिया में कितने शादी-शुदा पुरुष शायद सोचते होंगे कि '' VARIETY IS THE SPICE OF LIFE '' तो फिर वो क्यों अपनी उसी वीवी की अगले आने वाले जन्मों में तमन्ना करने लगे, बोलिये ?

सुनी हुई बातें भी हैं लोगों से कि कितने ही शराबी पति इस दिन भी देर से आकर अपनी पत्नियों को भूखा-प्यासा रखते हैं. और अगर किसी बीमार औरत ने इंतज़ार करते हुये उसके आने की उम्मीद छोड़कर कुछ मुँह में डाल लिया कमजोरी से चक्कर आने पर तो पति आकर गाली- गलौज करता है और मारता है उसे कि '' तूने मुझे खिलाये बिना कैसे खा लिया..तेरी हिम्मत कैसे और क्यों हुई ऐसा करने की ? ''

मुझे पता है कि मेरे बिचारों के बिरुद्ध तमाम लोग बोलने को तैयार होंगे. फिर भी कहना चाहती हूँ कि अपने समाज की बातों को देख और महसूस करके मन में जो बिचार उठ रहे थे उन पर मैंने गौर किया. पर उन्हें किसी से डिसकस करते हुये डर लग रहा था तो अपनी बात कहने का ये तरीका सोचा मैंने कि शायद औरतों का ध्यान मेरी कही बात की तरफ कुछ आकर्षित हो सके. और इतना भी बता दूँ कि मैं इस '' करवा चौथ '' की प्रथा के विपक्ष में नहीं हूँ..मुझे बगावत करने का दौरा नहीं पड़ा है. किन्तु क्या उन रिश्तों में ये उचित होगा कि वो औरतें जो खुश नहीं हैं अपनी जिंदगी में अपने पतियों के संग..वो आगे के जन्मों में भी उन्हीं को पति के रूप में अवतरित होने के लिये कहें. अपनी समझ के तो बाहर है ये बात.

खैर, आखिर में इतना और कहना है कि इस बात पर हर औरत अपने आप गौर करे और समझे तो उचित होगा. मैंने तो सिर्फ अपने बिचार रखने की एक सफल या असफल कोशिश की है. और सोचने पर मजबूर होती हूँ कि ऐसे पतियों का साथ पत्नियाँ क्यों माँगती है अगले जन्मों में..वो भी सात जन्मों तक ? क्यों, आखिर क्यों..जब कि किसी भी जनम का कोई अता-पता तक नहीं किसी को ? और क्या फिर से यही अत्याचार सहने के लिये उन जन्मों का इंतजार ?????

Wednesday 13 October 2010

नारी जीवन सुलभ नहीं

नारी चाहे कितना पढ़-लिख गयी हो किन्तु अब तक उसकी परिस्थितियाँ भारतीय समाज में अधिक नहीं सुधरीं हैं..उसे नीचा दिखाने में समाज व ससुराल वाले अब भी पीछे नहीं रहते..और फिर कहने वाले लोग दुहाई देते हैं कि आज की नारी बहुत पढ़ी-लिखी है, सशक्त है और अपना भला-बुरा खुद सोच सकती है. किन्तु कहने भर से क्या होता है..कोई उसे सशक्त बनने पर टोकता रहे तो कैसा आत्म विश्वास ? वो तो सब काफूर हो जायेगा. सोचने की शक्ति कोई छीन ले तो अपना भला-बुरा क्या सोच पायेगी.
अधिकतर नारियाँ अपने पारिवारिक कर्तव्यों की तरफ से विमुख नहीं होती हैं..फिर भी न जाने क्यों भारत में उन्हें पराई बेटी कहकर रखा जाता है. और चाहें कोई लड़की विदेश में भी पति के साथ रह रही हो..भारत जाने पर उसे सारे कर्तव्यपालन करने व संस्कारयुक्त होने पर भी न जाने क्यों कुछ ससुराल वाले नीचा दिखाया करते हैं और वह तिलमिलाकर रह जाती है. इसमें अकेली नारी अपने लिये क्या कर सकती है जब तक कि इस समस्या को कुछ जानपहचान वाले न सुलझायें. किन्तु लोग दूर से ही सिर्फ कुछ सहानुभूति दिखाकर अपना कर्तव्य पूरा कर देते हैं. समझाना कोई नहीं चाहता सोचकर कि '' अरे कौन किसी की बुराई-भलाई में पड़े. '' जहाँ समाज की ऐसी मानसिकता है तो नारी की यही स्थिति रहेगी. कुछ लोग बिना दहेज की लड़की ले लेते हैं फिर दहेज ना लेने की बात अक्सर उठाकर उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं..उसे ताने देकर व उसके साथ मनमानी करके..जैसे उसे ब्लैकमेल कर रहे हों. कुछ गरीब, अशिक्षित व मजबूरी की मारी नारियों के जीवन में तो और भी कई भयानक और बदसूरत पहलू होते हैं. जिस तरह के काम करके उन्हें अपना और अपने बच्चों का पेट पालना पड़ता है उन पर भी बिचार करने की जरूरत है.
नारी के जीवन का ये सच बहुत कड़वा और दर्दनाक है..लेकिन वाकई में नारी जीवन सुलभ नहीं. कितनी शर्मनाक बात है कि हम आज औरत के अधिकार की बात करते हैं कि '' औरत के भी अधिकार होते हैं '' कोई बताये कौन से अधिकार ? माता-पिता के घर में पराया धन समझी जाती है. क़ानून बनने के बाद भी वह पैत्रक सम्पति लेने पर जोर नहीं रखती क्योंकि उसे समझाया जाता है कि उसके भाई ही उसके माता-पिता की देखभाल करेंगे और उसे भी उसकी ससुराल से जरूरत आने पर विदा कराके लायेंगे और मायके में उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखेंगे. ये सब ढकोसलेबाजी है. आजकल ना तो भाइयों का उतना लगाव रहा है बहनों से और ना ही भाई लोग पहले के भाइयों की तरह उन्हें विदा कराने जाते हैं..बल्कि कई जगह तो उलटे बहिनें ही अपना पैसा खर्च करती हैं उन पर और माँ-बाप को भी रखती हैं. बेटियों को बचपन से ही समझाया जाता है कि जब भी और जहाँ भी वह शादी के बाद जायेंगी तो वही घर उनका अपना होगा. लेकिन इस समाज में यह एक काले धब्बे की तरह सच है जो छुपाया नहीं जा सकता कि कितनी जगह नारी पर पढ़ी-लिखी होने के वावजूद भी अत्याचार होता है. एक लड़की अपने माता-पिता का घरबार किसी दूसरे परिवार के आश्वासन पर छोड़ कर आती है. एक खूँटे से खोलकर उसे दूसरे खूँटे से इस समाज के बनाये हुये नियमों पर लाकर बाँध दिया जाता है..एक नये संसार में नये लोगों के बीच यह सोचकर और भरोसा करके कि उसका पति उसकी हर बात में रक्षा करेगा. किन्तु यह अधिकतर सच नहीं होता. और अगर पत्नी में सभी गुणों के होने पर भी पति की नीयत बदल जाये तो वह क्या करेगी ? औरत मजबूरी में कितना सहती है ससुराल वालों के लिये..अपने पति के लिये कितना कुछ झूठ बोल जाती है. कुछ पति व दामाद बहुत स्मार्ट होते हैं..औरों के सामने बहुत चतुराई से व्यवहार करके उन लोगों का दिल जीत लेते हैं और सच को झूठ साबित कर देते हैं..फिर भी शादी की गाड़ी खिंचती रहती है.
नारी को एक ऐसा अभिशाप बना रखा है अपने समाज में कि उसे अपनी स्थिति का खुद ही पता नहीं कि उसका वजूद क्या है. शादी के पहले माँ-बाप के घर को वह अपना कहती है तो उसे बराबर अहसास कराया जाता है कि वह पराया धन है..फिर भी उसकी अकल में नहीं आता. घर-भर का ख्याल रखना, पढ़ना-लिखना, घर का काम-काज सीखना व अच्छे संस्कारों को सीखना ताकि उसे अपने जीवन में कोई समस्या ना हो और ससुराल में भी उसे सम्मान मिले. लेकिन फिर पति के यहाँ आने पर अगर सुनना पड़े कि '' मैंने तेरे बाप का कर्जा नहीं खाया..तू क्या अपने बाप के यहाँ से ये घर लाई है या वो लाई है '' आदि कहकर उसे परायेपन का अहसास दिलाया जाता है..तो उसे पति के यहाँ कैसे अपनापन लग सकता है ? कितने समझौते करते हुये भी शादी एक ऐसा कड़वा घूँट है कुछ औरतों के लिये कि वह चाहें कितनी भी कोशिश करे ससुराल में सबको खुश करने को तो भी नहीं कर पाती है..सब सहन करती हुई शादी के बंधन को एक कड़वे घूँट की तरह ना ही उसे घूँट पाती है और ना ही थूक पाती है..और आपसी रिश्तों की कटुता बढ़ती जाती है. लेकिन पति का घर छोड़ कर उन ज्यादतियों से बचकर औरत कहाँ जाये ? ये सब वह जान बूझ कर क्यों सहती है ? एक दिन जिस इंसान का हाथ पकड़ कर वह आती है और जो शादी के समय उसका संरक्षण करने का दावा करता है बाद में उसके ही हाथों से मार खाती है..जिस मुँह से वह वचन लेते हैं अग्नि को साक्षी मानकर साथ निभाने का उसी मुँह से वह बाद में पत्नी को किलस कर गालियाँ देकर उसे कोसते हैं और उसका अपमान करते हैं. कुछ पुरुष उन्हें घर वालों के संग मिलकर भी सताते हैं.
एक समय वह था जब नारी को हर यज्ञ में बराबर का स्थान और घर में गृह-लक्ष्मी का दर्ज़ा दिया जाता था..और उससे हर बात में सलाह मशवरा लेकर काम किया जाता था..और सम्मान दिया जाता था. और अब कई पुरुष अपने उन रटे-रटाये अग्नि के फेरे वाले वचनों को भूल कर पत्नी से चुरा-छिपा कर मनमानी करते हैं. और अगर कोई ताड़ ले उनके अत्याचारों को तो अपनी पत्नी के विरुद्ध कहानी गढ़ कर उस पर झूठे / मनगढंत दोषारोपण करके दूसरों की निगाह में उसे ही कसूरवार ठहरा देते हैं. और पत्नी अवाक सी रह जाती है. पुरुष अगर अकेले कहीं रहकर गुजर करते हैं तो उनपर उँगली नहीं उठाता कोई..लेकिन अगर एक औरत अकेली रहकर कहीं गुजर करना चाहे तो समाज उसका जीना मुश्किल कर देता है. किसी पुरुष से निर्दोषता से बात भी करे तो उसपर बदचलन होने का इलजाम भी लगते देर नहीं लगती. अगर सोचिये तो शायद यही कारण हो सकता है कि इस डर से पढ़ी लिखी औरतें भी अपने पति के संग उनकी ज्यादती सहते हुये एक गुलाम की तरह रहती है. और उनके माँ-बाप सोचते हैं कि उनकी लाडो बेटी ससुराल में रानी बनकर राज कर रही होगी..हाँ कुछ करती हैं जो किस्मत वाली होती हैं. जैसा मैंने कहीं सुना है कि कहीं तो किसान की बेटी भी सबको मुट्ठी में रखती है और कहीं जज की बेटी को भी पति के हाथों मार खानी पड़ती है. लेकिन हर हाल में अधिकाँश की दशा शोचनीय ही है. अगर समाज के तानों को झेलने की जिल्लत ना सहनी पड़े तो पता नहीं कितनी औरतें बिना शादी किये हुये आत्मनिर्भर होकर जीना पसंद करेंगी. शादी का ऐसा बंधन जो खुशी की वजाय उसके जीवन और अस्तित्व को झकझोर डाले तो इससे तो अच्छा है कि वह किसी तरह अपनी बसर खुद ही कर ले. इस दिखावे के बंधन का क्या फायदा जहाँ सच्चा प्यार व सहानुभूति मिलने की जगह उसका जीना ही दूभर हो जाये.
एक और खास बात है इस समाज की वो ये कि हर कोई लड़की यानि होने वाली बहू को तो स्वस्थ्य लेना चाहता है किन्तु लड़का अगर किसी बीमारी को भुगत रहा है तो कोई बात नहीं. लेकिन उस लड़की का क्या हो जिसका शादी के तुरंत बाद एक्सीडेंट हो जाये या किसी गंभीर बीमारी का शिकार बन जाये ? शायद उसे वो लोग भुगत लेंगे किसी तरह.
जिस देश में नदियों के नाम गंगा, जमुना, सरस्वती हैं..उसी देश की गंगा, जमुना, और सरस्वती जैसी बेटियाँ किसी की माँ, बहन, और पत्नी भी हैं..और शादी के पहले माता-पिता के यहाँ भार होती हैं फिर पति के यहाँ जाकर अपमान सहती हैं. नारी की स्थिति कितनी दयनीय बना कर रख दी है इस समाज ने..पति को छोड़कर समाज की निगाहों में निरंतर प्रश्न बनी रहेंगी या उनकी भूखी आँखों का शिकार बनती हैं. इसीलिए पति को छोड़कर बदनामी के भय को न सह पाने के डर से वह कोई भी ऐसा-वैसा कदम ना उठाकर सब कुछ चुपचाप सहती रहती है.

जीवन की सचाई: मृत्यु

ओ, दुनिया बनाने वाले ये कैसी दुनिया बनाई
हम सब मिलते हैं मेले में सिर्फ लेने को विदाई.

सच में आप सब भी क्या सोचते होगें कि ये शन्नो कहाँ गायब हो जाती है अचानक कभी-कभी. क्या जरा देर को भी नहीं आ सकती थी फेसबुक पर...तो क्या बताया जाये भाई, कि कभी-कभी हर रोज की जिंदगी का ढर्रा भी एक सा नहीं रह पाता है..जैसे कि कल की ही बात लीजिये..आप सबने शायद सोचा होगा कि मैं फेसबुक पर अपना फेस चिपका कर कहाँ गायब रही सारा दिन..मेरी तरफ से कुछ हलचल नहीं हो रही है. यही सब तो सोचा होगा आप सबने, है ना ? तो मित्रों, जीवन में अक्सर ऐसा भी हो जाता है कि अचानक ही सब छोड़कर कहीं जाना पड़ता है. तो अब सोचती हूँ कि बता ही दूँ कि कल मुझे मरने की भी फुर्सत नहीं मिली..मतलब यह कि सारा दिन अत्यधिक व्यस्त रही..फेसबुक से दूर रहना पड़ा. मुझे बहुत अफ़सोस है बताते हुये कि परिवार के एक मित्र के मित्र का निधन हो जाने पर उनके फ्यूनरल यानि कि आखिरी क्रिया कर्म के अवसर पर जाना पड़ा. तो वहाँ पहुँचने के लिये सुबह-सुबह ही प्रस्थान करना पड़ा घर से और वो जगह काफी दूर होने से वहाँ पहुँचने में ही करीब चार घंटे लग गये.

वहाँ पहुँच कर देखा कि उनका शरीर, जो मृत्यु हो जाने के बाद हफ्ते भर से MORTUARY में रखा गया था, घर पर आ चुका था और घर में उनके परिवार व मित्रों की भीड़ लगी हुई थी. इस देश में शरीर के अंतिम संस्कार यानि कि जलाने या दफनाने के लिये उस जगह की बुकिंग करानी पड़ती है. सबसे पहले तो मृत्यु होने के बाद डॉक्टर से मरने वाले के नाम का लेटर लेकर उसके बाद जन्म, मृत्यु और शादी से सम्बंधित जो रजिस्ट्रार होता है उससे मरने वाले के लिए सर्टिफिकेट लेना पड़ता है. फिर फ्यूनरल डायरेक्टर से बात करके पैसा देकर उनके यहाँ कोल्ड स्टोरेज में शव को रखते हैं..और फिर जहाँ शव को जलाते हैं उस क्रेमेटोरियम वालों से वहाँ शव जलने के दिन को फिक्स किया जाता है. और हिंदू लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार उस दिन कोल्ड स्टोरेज में जाकर शव को कपड़े वगैरा पहनाते हैं और फ्यूनरल डायरेक्टर अपनी हर्स ( बड़ी काली कार ) में उस शव को लकड़ी के कफिन में रखकर उसके परिवार के घर लाते हैं.

तो जब हम लोग उनके घर पहुँचे वहाँ पंडित कफिन के पास बैठा श्लोक उच्चारण कर रहा था और उसके आदेश पर उन दिवंगत मित्र का बेटा फूल-अक्षत आदि से सारी विधि संपन्न कर रहा था. उस विधि के बाद अन्य हम सभी लोगों ने भी फूल-अक्षत व चन्दन चढ़ाकर उनको श्रन्धांजलि अर्पित की..फिर उनके कफिन को उनके बेटे व मित्रों ने अपने कन्धों पर रखकर उसे हर्स में रखा जो तमाम फूल मालाओं से सजी थी. और फ्यूनरल वाले उस गाड़ी को लेकर क्रेमेटोरियम को रवाना हुये...पीछे-पीछे हम सब लोग भी अपनी-अपनी कार में चल पड़े.

वहाँ पहुँचने के बाद बिल्डिंग के अंदर, जहाँ चर्च की तरह वातावरण लग रहा था, सबसे पहले पंडित ने संस्कृत में श्लोक पढ़े फिर उन मित्र के बेटे और नाती पोतों ने स्पीच दी. और उसके बाद हम सब अपना सर झुका कर और हाथ जोड़कर '' जय श्री कृष्ण '' कहकर बाहर आ गये. बाहर तमाम फूल रखे थे जो जान पहचान वालों के यहाँ से भेजे गये थे. कुछ देर वहाँ और रुकना पड़ा. पूछने पर पता लगा कि शव का कफिन एक बड़े चैम्बर में आटोमेटिकली खिसकते हुये पहुँच गया होगा और वहाँ २०० डिग्री सेंटीग्रेड की हीट होती है. बाहर उसके एक बटन लगा होता है जिसे बेटा ने दबाया होगा और चैंबर के अंदर अग्नि प्रज्वलित हो गयी..जैसे भारत में बेटा हाथ में जलती लकड़ी से अग्नि देता है. एक घंटे में शव कफिन के साथ जलकर राख बन गया होगा और वह राख अपने आप एक बड़े डब्बे में गिर गयी होगी जो घरवालों के पास एक निश्चित दिन पहुँचा दी जायेगी.

फिर वहाँ से उनके घर पर वापस आये जहाँ उनके घरवालों की तरफ से कुछ खाने का प्रबंध किया गया था सब आने वालों के लिये...खाकर और कुछ देर रूककर और बातचीत करने के बाद हम लोग वापस चल पड़े और काफी रात में यहाँ घर पहुँचे. मैं थकान से इतनी चूर थी कि फेसबुक केवल दिमाग में ही रहा. और आज सुबह इतने मेसेज थे मेल बाक्स में कि अब तक निपट नहीं पाई हूँ और उँगलियाँ सुन्न हो गयी हैं..अब ये असली स्टोरी पढ़कर आप लोग मेरी मजबूरी को जान गये होंगे. कल भी फिर वहीं सुबह-सुबह उतनी ही यात्रा करके हवन और पूजा में शामिल होने को पहुँचना है...ओम शांति !

बेबो जी, हैप्पी बर्थडे

( अभिनेत्री करीना का जन्म दिन 21. 09. 2010 )
'' बेबो जी, हैप्पी बर्थडे ! भगवान आपको और भी फ्लोप्स दे...''
'' तू सैफ के ही साथ रहे तो ज्यादा अच्छा है..अपनी फिल्मो से आम जनता को पागल ना बनाये..आम आदमी का पैसा ना खाये फ्लोप्स देकर..वैसे ही एक तो आम आदमी मँहगाई की मार से अधमरा हो चुका है.''
पढ़कर बड़ा विचित्र लगा मुझे..गलतफहमी ना होने पाये आप सबको मेरी तरफ से इसलिये जल्दी से बता दूँ कि ...
अभी-अभी जो कुछ आपने ऊपर पढ़ा बेबो के बारे में वो मेरा अपना कहा या लिखा नहीं है...मेरी तोबा मैं कैसे जुर्रत कर सकती हूँ..ये तो फेसबुक की मेहरबानी है कि वहाँ पर मुझे करीना के जन्म दिन पर एक मित्र के लिखे आलेख में किसी के कमेन्ट में ये पढ़ने को मिला..और मैं चकरा गयी...लेकिन करीना पर आलेख होने से मैं भी अपनी ड्यूटी यानी कमेन्ट करके खिसक आयी चुपके से. मैंने लिखा था:
'' करीना को जन्म दिन की मुबारकबाद..आलेख पढ़ा बहुत अच्छा है..और उनके बारे में तमाम जानकारी मिली. आपकी समयानुसार लेख प्रकाशन और विविध जानकारी की क्षमता बहुत आश्चर्यजनक है.''
अब मेरा कमेन्ट पढ़कर बेबो को बद्दुआ देने वाले को चैन नहीं पड़ा तो अगले कमेन्ट में मुझसे बातचीत जारी कर दी..शायद अपने मन की भड़ास निकालने के लिये अपनी बातों के चक्कर में फँसा लिया. ये आलेख लिखने वाले मित्र के मित्र हैं जिनका चित्र देखकर उनके बारे में पता लगाया कि वह काफी यंग हैं और फिल्मो पर आम आदमी को पैसा झोंकते हुये देखना इनसे गवारा नहीं होता..यानी इन्हें बौखलाहट होती है..यानी ठीक नहीं समझते.
तो हमारी बातचीत चालू हो गयी...
मित्र के मित्र : '' बेशक लेख बहुत अच्छा लगा मुझे भी लेकिन क्या फायदा इस सबका..लोग और पागल हो जायेंगे..और अधिक जायेंगे सिनेमा हाल..इतनी मँहगाई में और पैसा फूँकेंगे इनकी पिटी हुई फिल्मो पर..यानी पैसों की बर्बादी.''
मैं : '' मेरे लिये तो लेख से ही जानकारी मिल जाना काफी है फेसबुक पर..बाकी बात रही फिल्मे देखने की तो उसके लिये अधिक समय नहीं मिलता और ना ही इतनी तमन्ना रही अब..और अगर देखना भी चाहे कोई तो घर बैठे ही डी वी डी देख सकते हैं किसी फिल्म की..यही लोग अधिकतर करते हैं.''
मित्र के मित्र : '' लेकिन वो डी वी डी देखने के लिये भी तो उसे पैसे देकर खरीदना पड़ता है.''
मैं : '' तो क्या आप फिल्मों पर अपना पैसा बिलकुल नहीं खर्च करते क्या..तब तो आपकी किफायतमंदी की तारीफ़ करनी पड़ेगी..चलो ठीक भी है और भी तो फ्री मनोरंजन के साधन हैं..फेसबुक पर म्यूजिक सुनो फिर..और वीडियो देखो फेसबुक पर.''
मित्र के मित्र : '' शन्नो जी, यहाँ पर मैं बात अपने मनोरंजन की नहीं कर रहा हूँ. यहाँ मैं आम आदमी की बात कर रहा हूँ. इस मँहगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है..तो लोग क्यों अपना पैसा बर्बाद करते हैं करीना की फ़िल्में देखकर. लेकिन अगर देखनी हैं तो आमीर खान की देखें..कम से कम पैसा सही जगह तो लगे ना.''
मैं : '' आमीर की फिल्मे हों या करीना की..पैसा तो व्यर्थ दोनों पर ही होगा..क्या मिलेगा आमीर की फिल्मों से..सिर्फ इसके कि वो और अमीर हो जायेंगे और हम और गरीब...अपने लिये तो करीब-करीब सब एक से ही हैं कोई पक्षपात नहीं करने का..और फिर इतनी दूर रहते हुये इन लोगों का ध्यान ही नहीं रहता मुझे और ना ही इनकी फिल्मों का..भारत में तो लोग फिल्मो को ही अधिकतर मनोरंजन का साधन समझते हैं..कोई नयी फिल्म का नाम सुना तो क्रेजी हो जाते हैं..दुनिया में रियल लाइफ भी कोई चीज है..है ना ?''
मित्र के मित्र : '' बिलकुल, बिलकुल..मैं आपकी बात से सहमत हूँ. ये फिल्म, ये नाटक, ये सब एक हद तक ठीक है..आम आदमी की क्या हालत है पता है आपको ? रात को इनके घर पर चूल्हा जलाने को पैसा नहीं होता...लेकिन फिल्म देखने के लिये होता है..अब आप ही तय करिये कि क्या होगा हमारे देश का.''
मैं : हाँ, आपकी इस बात से मैं भी बिलकुल सहमत हूँ, एकमत हूँ..आपने सही कहा इस मुद्दे पर. लोग भ्रष्टाचार के बारे में कहते हैं कि सरकार गरीबों का खून चूसती है और पब्लिक का जीना मुश्किल हो रहा है मँहगाई और रिश्बतखोरी से लेकिन ये जो फ़िल्में आग लगाती हैं घरों में तो इनके बारे में क्या हो ? इनके लिये तो फिल्म इंडस्ट्रीज वाले ही दोषी हैं और खुद पर काबू न रख पाने वाली जनता भी..कितने ही गरीब हों लोग अपनी पाकेट में खुद छेद करते हैं फिल्मों पर पैसा बहा कर..जरूरत की चीजों पर हाय पड़ी रहती है लेकिन फिल्मों का चस्का है..यहाँ तक कि भिखारी भी..ये सब कल्पना नहीं..बल्कि हकीकत है..लेकिन आप या हम जैसे कुछ लोगों के गला फाड़कर चिल्लाने या समझाने से कोई फायदा नहीं होने वाला..लोगों को खुद खोलना होगा अपनी अकल का ताला. हमारे समझाने से दुनिया कहेगी कि..अजी आपको क्या तकलीफ..क्या मतलब हमसे..माइंड योर ओन बिजिनेस..अपना रास्ता नापिये..और हम अपना सा मुँह लेकर रह जायेंगे..किस-किस को समझायेंगे..बोलो ?''

बात कहाँ से कहाँ पहुँच सकती है..अब तो आपको अंदाजा हो गया होगा..है ना ? हमारी पर्सनल ओपिनियन ना पूछें बल्कि आप सब बतायें कि क्या उपाय है गरीबों को फिल्म देखने से रोकने के लिये ताकि उनका पैसा उनकी खास जरूरतों पर लगे, या फ्लॉप फिल्मो पर बंदिश का या फिल्मों को बनाने के धंधे को कम करने पर ताकि आम जनता को अधिक प्रलोभन ना हो इसके चक्कर में पड़ने का ? क्या कोई सुझाव है जो मुझे अब तक ना सूझा कोई...

जन्माष्टमी

आज जन्माष्टमी है..भगवान् कृष्ण का जन्मदिन. तो आओ, आप सबको मैं उनके जन्म के बारे में कहानी सुनाती हूँ...

करीब 5००० साल पहले मथुरा में उग्रसेन नाम के एक राजा राज्य करते थे. उनकी प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी और सम्मान देती थी. राजा के दो बच्चे थे..कंस और देवकी. उनका लालन-पालन बहुत अच्छी तरह से किया गया..दोनों बच्चे बड़े हुये और समय के साथ उनकी समझ में भी फरक आया. कंस ने अपने पिता को जेल में डाल कर गद्दी हासिल कर ली और राज्य करने लगे. वह अपनी बहिन देवकी को बहुत प्यार करते थे. और कंस ने देवकी का ब्याह अपनी सेना में वासुदेव नाम के व्यक्ति से कर दिया. लेकिन कंस को देवकी की शादी वाले दिन पता चला कि उनकी बहिन की आठवीं संतान से उनकी मौत होगी. तो कंस ने देवकी को मारने की सोची. किन्तु वह अपनी बहिन को बहुत चाहते थे इसलिये मारने की वजाय उन्होंने देवकी और वासुदेव दोनों को जेल में डाल दिया. वहाँ देवकी की कई संतानें हुयीं और सातवीं को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिनी की कोख से जन्म लेना पड़ा...इसीलिए जब कृष्ण जी का जन्म हुआ तो उनको सातवीं संतान करके बताया गया. जिस रात उनका जन्म हुआ था उस रात बहुत जोरों की आँधी चल रही थी और पानी बरस रहा था..भयंकर बिजली कौंध रही थी..जैसे कि कुछ अनर्थ होने वाला हो. जेल के सारे रक्षक सोये हुये थे उस समय और जेल के सब दरवाज़े अपने आप ही खुल गये..आँधी-तूफान के बीच बासुदेव कृष्ण को एक कम्बल में लपेटकर और एक टोकरी में रख कर चुपचाप गोकुल के लिये रवाना हुये जहाँ उनके मित्र नंद और उनकी पत्नी यशोदा रहते थे..उधर यशोदा और नंद के यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ. और जब वह यमुना नदी पार कर रहे थे तो पानी का बेग ऊपर उठा उसी समय वासुदेव की गोद में से कृष्ण का पैर बाहर निकला और पानी में लगा तभी यमुना का पानी दो भागों में बंटकर आगे बढ़ने का रास्ता बन गया.बासुदेव ने उसी समय उस बच्चे की अदभुत शक्ति को पहचान लिया. वह फिर गोकुल पहुँचे और कंस की चाल की सब कहानी नंद और यशोदा को बताई. नन्द और यशोदा ने कृष्ण को गोद लेकर अपनी बेटी को बासुदेव को सौंप दिया जिसे उन्होंने मथुरा वापस आकर जेल में कंस को अपनी आठवीं संतान कहकर सौंप दिया और कंस ने उस कन्या को मारने की कोशिश की पर सुना जाता है कि मरने के समय वह कन्या हवा में एक सन्देश छोड़कर विलीन हो गयी कि '' कंस को मारने के लिये आठवीं संतान गोकुल में पल रही है.'' लेकिन कंस ने सोचा की जिससे उनकी जान को खतरा था वह राह का काँटा हमेशा के लिये दूर हो गया है और अब उन्हें कोई नहीं मार पायेगा. कृष्ण जी नंद और यशोदा के यहाँ पले और बड़े हुये और उन्हें ही हमेशा अपना माता-पिता समझा. और बाद में उन्होंने अपने मामा कंस का बध किया और मथुरा की प्रजा को उनके अत्याचार से बचा लिया.

जन्माष्टमी सावन के आठवें दिन पूर्णिमा वाले दिन मनाई जाती है क्योंकि इसी रात ही कृष्ण जी का जन्म हुआ था. हर जगह मंदिरों में बहुत बड़ा उत्सव होता है..सारा दिन भजन-कीर्तन होता रहता है. कान्हा की छोटी सी मूर्ति बनाकर रंग-बिरंगे कपड़ों में सजाकर एक सोने के पलना में रखकर झुलाई जाती है. घी व दूध से बनी मिठाइयाँ खायी व बाँटी जाती हैं..घरों में लोग व्रत रखते हैं..कुछ लोग तो सारा दिन पानी भी नहीं पीते जिसे '' निर्जला व्रत '' बोलते हैं और रात के 12 बजे के बाद ही कुछ खाकर व्रत को तोड़ते हैं और कुछ लोग दिन में फलाहार खा लेते हैं..लेकिन नमक व अन्न नहीं खाया जाता इस दिन. दही और माखन कन्हैया की पसंद की चीज़ें थीं जिन पर वह कहीं भी मौका पड़ने पर चुरा कर उनपर हाथ साफ़ किया करते थे..और बेशरम बनकर सबकी डांट खाते रहते थे. तो इस दिन कई जगहों में लोग एक मटकी में दही, शहद और फल भर कर ऊँचे पर टाँगते हैं और फिर कोई व्यक्ति कान्हा की नक़ल करते हुये उस मटकी को ऊपर पहुँच कर फोड़ता है. कुछ लोगों का विश्वास है कि उस टूटी हुई मटकी का टुकड़ा अगर घर में रखो तो वह बुरी बातों से रक्षा करता है.

कृष्ण जी के बारे में जगह-जगह रास लीला होती है और झाँकी दिखाई जाती है..जिसमें मुख्यतया पाँच सीन दिखाये जाते हैं : 1. कन्हैया के जन्म का समय 2. वासुदेव का उन्हें लेकर यमुना नदी पार करते हुये 3. वासुदेव का जेल में वापस आना 4. यशोदा की बेटी की हत्या 5. कृष्ण जी का पालने में झूलना.
कुछ घरों में जन्माष्टमी का उत्सव कई दिनों तक चलता रहता है.

सभी मित्रों को जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर बधाई व ढेरों शुभकामनायें !