Friday 13 January 2012

बचपन एक कहानी

आज अचानक हरिद्वार की बहुत याद आ गयी. तो आइये आज आप सबको कुछ अपने बचपन की तमाम यादों से जरा सा अंश एक कहानी की तरह सुनाती हूँ ...सुनोगे आप सब..? क्या कहा, हाँ...


तो ये बहुत समय पहले की बात है जब मैं छोटी थी व स्कूल में पढ़ती थी. तब मेरे बुआ-फूफा जिन्दा थे. उन लोगों ने सारी जिंदगी वहीं हरिद्वार में ही गुजारी और उनके बच्चे-उच्चे भी वहीं पढ़े-लिखे. फूफा जी वहीं भल्ला कालेज में प्रिंसिपल थे. दादूबाग के पास रहते थे. जब उन लोगों के पास गरमी की छुट्टियों में जाते थे तो हम बच्चों की पूरी टीम हरकीपौड़ी पर शाम को घूमने जाती थी व कुलचे, भटूरे और आलू की टिक्की का भरपूर आनंद लेते थे :) गंगा के पानी में मछलियों को आटे की गोलियाँ भी फेंककर खिलाते थे और कभी-कभी गंगा में डुबकी मार कर सब नहाते भी थे. और जहाँ पर घर था वहाँ पास में छोटी सी एक नहर थी तो हर सुबह तौलिया और कपड़े उठा के हम सभी नहाने के लिये उछलते-कूदते जाते थे और रस्ते में सड़क के किनारे लगे लाल-पीले जंगली फूलों को तोड़ते और सूंघते हुये एक दूसरे पर फेंकते और खिलखिलाते थे. दादूबाग के बागीचे से लीची और लोकाट भी सभी बच्चे चोरी किया करते थे. पकड़े जाने पर कहते थे कि जमीन पर से उठाये हैं. कभी-कभी लक्ष्मण झूला भी सब मिलकर दिन की ट्रिप में जाते थे. वहाँ उस हिलते पुल पर से गुजरना..सोचकर अब भी रोमांच सा होता है. और दूर पहाड़ी पर चंडी माता के मंदिर में सीढ़ियाँ चढ़कर दर्शन करने को भी जाते थे.


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