Sunday 1 May 2011

तेरी याद अब भी आती है - भाग 2

प्रिय भारत,

लो आज मैं फिर आ गयी तुमसे बात करने को..अब तुम सोच रहे होगे कि मैंने तुमसे परसों बात करते हुये अंत में कल यानि उसके अगले दिन यानि जो कल गुजर गया...फिर बात करने का वादा किया था कि अपनी बातचीत जारी रखूँगी लेकिन वो वादा पूरा न कर सकी और इसका मुझे अहसास है..इसका बुरा ना मानना क्यों कि कुछ कारन हो गया था. शायद तुम्हें मेरी बातें बकबास लग रही हों...क्योंकि हमारी बातचीत इक तरफ़ा रहती है..मैं ही बोल सकती हूँ..तुम तो मौन हो. इसलिये मैं तुमसे खुद ही बातें करती रहती हूँ. तुम्हारी खासियत यही है कि तुम मेरी और सबकी बातें सुनकर हमेशा बस चुप ही रहते हो..इसलिये मुझे यदि दिल की बात कहना है तो कहती ही जाऊँगी. करने को तो वैसे बहुत सारी बाते हैं..लेकिन सब कुछ इकठ्ठा तो नहीं कह सकती ना ?

हाँ, तो मैं कह रही थी कि इंसान के सभी किये हुये वादे झूठे नहीं होते बल्कि किसी बात या मजबूरी से कभी मुस्तकिल नहीं हो पाते हैं. ये सब मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ वर्ना आगे से मैं कोई वादा नहीं करूँगीं..हाँ..क्या समझे ? बात यूँ हुई कि कल कहीं से तुम्हारी ही शरण में रहने वाली गरीब महिलाओं के बारे में बहुत दुखद और दयनीय हाल पढ़ने का मौका लगा..तो उसके बाद दिल बहुत बेचैन हो गया और तुम्हे पत्र लिखने की वजाय उनके बारे में एक रचना लिखने लगी थी..फिर इतना थक गयी कि निद्रा देवी की गोद में सर रख के भयानक सपनों के लोक में पहुँच गयी. जहाँ इतनी भीड़ थी कि पूछो ना..लोग चारों तरफ तुम्हारे गाने गा रहे थे '' मेरा भारत महान..आई लव माई इंडिया..आई एम प्राउड टु बी एन इंडियन ..हमारे वतन जैसा कोई और वतन नहीं..भारत एक ऐसा देश है जहाँ सभी धर्म मिलकर रहते हैं..मेरे देश की धरती सोना है..भारत की जन्म भूमि हमारी जननी है जो स्वर्ग से महान है ''...आदि-आदि. और मेरा दिमाग बौखला रहा था सोचकर कि तमाम लोग तुम्हें महान कहने के वावजूद भी तुम्हारा अपमान करने से नहीं चूकते..जरा तुम ही सोचो कि ये सब कुछ कितना सच है या नहीं. और अगर सच है तो कितना ?

जहाँ मानवता की तारीफ होती है वहाँ पे न जाने कितनी गरीब औरतों व छोटे बच्चों को ऐसे काम करने पड़ते हैं कि दिल दहल जाये. जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों तक से महरूम रहते हैं वो लोग. अपने पेट की ज्वाला बुझाने और तन ढँकने को इस बेरहम दुनिया में हर काम करने को तैयार हो जाते हैं. कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें करते हुये उनके हाथ तक गल जाते हैं...घंटों ही बहुत मुश्किल और खतरे वाले काम करने पर भी जरा से ही पैसे पाते हैं. जो लोग ऊँचे-ऊँचे घरों में रहकर तमाम सुख सुविधा का आनंद लेते हुये इस तरह के तुच्छ काम पैसे के लिये मजबूर लोगों से करवाते हैं और ढंग से पैसे भी नहीं देते बदले में तो क्या उनमें मानवता है ?

पता है तुम्हें कि कितने बहरुपिये तुम्हें धोखा दे रहे हैं ? वो लोग तुम्हारे सीने पर बहने वाली पवित्र गंगा में स्नान करते हैं..तुमको महान कहते हैं...फिर अपने काले कारनामों से तुम्हें बदनाम करते हैं..तुम्हें महान कहकर तुम्हारी चापलूसी करके तुम्हारी दशा बिगाड़ रहे हैं...तुम्हारे अपने बच्चे आपस में फूट डाले हुये हैं..आपस में सहनशक्ति नहीं है फिर भी सबको झूठी दिलासा देते हैं..ये सहकर तुम्हें कैसा लगता होगा. और तुम्हें तो पता है कि जो धरती पे सोना उगाने वाले हैं उनका क्या अंजाम हो रहा है. लेकिन तुम तो चुप हो..मौन हो सब सहते हुये. क्योंकि तुम्हारे रूप को सजाने और सुधारने वाले तुम्हारे बच्चे एक दूसरे का गला काटने को तैयार हैं. तुम्हारी आँखों के तले कितने अन्याय हो रहे हैं, कितना भ्रष्टाचार और कुरीतियाँ पनपे जा रही हैं. एकता की बात करने वाले खुद ही एक दूसरे को सीधी आँख से देख नहीं सकते. जलन, आलोचना करने वाले और दूसरों को सहारा न देकर उसकी मजबूरियों का फायदा उठाने वाले लोग जब इसके नारे लगाते हैं देश पर राज करने के लिये तो मन में बहुत रोष भर जाता है. पता नहीं कितने ताकत वाले कितनों की जान ले रहे हैं और कितने ही गरीब और निसहाय अपनी जान दे रहे हैं. अरे देखो बात करते-करते आज फिर जम्हाइयाँ आनी शुरू हो गयी हैं...लगता है कि अब गुड नाइट कहने का समय आ गया है..आज दिन में मैं बाहर भी गयी थी कुछ घंटों को तो थकान भी बहुत हो रही है...पर फिर भी तुमसे बात किये बिना न रह सकी. अब आज अगली बार का वादा नहीं कर रही हूँ..पर बातें तो अभी भी बहुत करनी हैं...चलो तो फिर तुमको गुड नाइट और स्वीट ड्रीम्स...काश तुम्हारे ड्रीम्स पूरे हो सकें....

तुम्हारे अतीत से बिछुड़ी एक कड़ी

- मैं


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