Sunday 1 May 2011

एक भारतीय महिला को कैसा होना चाहिये ?

कहीं पर मैंने किसी पुरुष का लिखा पढ़ा '' भारतीय महिला को माडर्न बनना चाहिये किन्तु उसे किसी बिदेशी औरत की नकल नहीं करनी चाहिये.''


तो ये भई कौन सी और किस तरह की बात हुयी ? ये तो कोई पुरुष एक आर्डर सा दे रहा है भारतीय औरत को माडर्न बनने का. लेकिन साथ में उसकी लगाम भी खींच रहा है. है ना ? क्या इसी तरह से एक स्त्री भी भारतीय पुरुषों को हुकुम दे सकती है या उनसे अपेक्षा कर सकती है कि उन्हें क्या बनना चाहिये और क्या नहीं..और किस हद तक अपने को बदलना चाहिये..पुरुष तो अपने को बेलगाम ही पसंद करते हैं..सही है ना ? खुद को भारतीय कहने वाले पुरुष ( बिदेशों में रहने वाले भारतीयों को तो छोड़ो ) भारत में ही कौन सा धोती और गमछा में रहते हैं..सभी तो पैंट, शर्ट या टी-शर्ट और शोर्ट में दिखते हैं. खाना पीना, बोलना मनोरंजन और फैशन..क्या छोड़ा है जिसमें बदले नहीं..औरतों से अधिक तो पुरुष प्रदर्शन करते हैं बिदेशीपन की. आहाहा ! दाढ़ी और हेयर स्टाइल का क्या कहना..सर में तेल की जगह कभी GEL लगाकर बाल खड़े हैं, कभी मोहिकन कट, कभी गोटीकट और कभी बस ऊपर ही छत पर बाल और इधर-उधर से सफाचट..आदमियों के लिये मार्केट में तरह-तरह के बिदेशी शैम्पू और परफ्यूम..माडर्नपने की और क्रेजी होने की कोई सीमा भी है. कानों में बाली-बुँदे और नाक तक में कई लोग कील पहनते हैं, मुकाबले में किसी बात से कम नहीं हैं..और औरतों पर बंदिश ! कोई कितना माडर्न बनना चाहता है या नहीं ये उस पर ही छोड़ देना चाहिये.


मन में किरकिराहट सी होती है सोचकर कि सारा प्रेशर एक औरत पर ही क्यों डाला जाता है कि उसे कैसा बनना चाहिये और कैसा नहीं..क्या माडर्न बनने की छूट देने पर उसका कोई मापदंड होता है..फिर तो वो औरत परिस्थितिओं के चंगुल में फँसकर उसके बहाव में बह जायेगी..उसे अपने आप भी तो कुछ सोचने का मौका मिलना चाहिये..कई बार माडर्न सोसाइटी में मिलने-जुलने पर किसी औरत के बाल कटे होते हैं, किसी के लंबे..कोई साड़ी में, कोई शलवार-कमीज में तो कोई स्कर्ट में दिखेगी..कोई कम मेकअप, कोई कुछ अधिक किये हुये और कोई बिना किसी मेकअप के..लेकिन कई बार वो अपनी सहेलियों के साथ जैसा होगा उसका भी अनुसरण अपनी मर्जी से करती है..या उसका साथ देकर उसे खुश करने में भी करती है. इसी तरह सामाजिक अवसरों पर कोई जरूरी नहीं कि किसी शराब पीने वाले आदमी का साथ शराब पीकर ही दूसरे आदमी को देना पड़े. क्या जरूरी है कि नकलची बना जाये ? चाहें उसके बाद सेहत बिगड़ जाये और जाकर उलटी कर दे..और ये भी जरूरी नहीं कि पति शराब पीता हो तो उसकी औरत भी पीने लगे वरना वो माडर्न नहीं रहेगी.


ये माडर्न होना क्या होता है ? खाली खाना-पहनावा ही तो नहीं...क्योंकि होने को तो बहुत कुछ हो रहा है भारतीय समाज में बिदेशियों की नकल करके. तो किस-किस माडर्न चीज पर बंदिश होनी चाहिये ? आखिरकार कोई तो लिस्ट बनाये. पहनावा की बातें अपनी इच्छानुकूल भी अपनी भावनाओं पर निर्भर करती हैं. और कभी-कभी हर किसी की परिस्थितियाँ भी होती हैं. और ये भी कोई जरूरी नहीं कि एक औरत दूसरों को खुश करने के लिये अपनी इच्छा के विपरीत पहनावे में माडर्न बने. लोगों के लिये नुमाइश बनने से तो अच्छा है कि अगर सस्ता कपड़ा भी सलीके से पहना जाये तो इंसान अपनी आंतरिक खुशी में तो जी सकता है..सारी दुनिया को तो खुश करने के लिये ही तो नहीं जिया जाता हमेशा..कुछ अपनी भी चाहत और खुशियाँ होती हैं..चाहें वो पहनावा हो या कुछ और. हम कई बार परिस्थितिओं को भी चुनौती देकर अपने तरीके से और सलीके से जी सकते हैं. समाज में तो जितने मुँह, उतनी बातें होती हैं..एक ही ड्रेस की कोई इंसान तारीफ़ करेगा तो दूसरा मुँह दबा कर हँसेगा..किस-किस की परवाह की जाये...Just be yourself.


4 comments:

  1. सोच आधुनिक होना ज्यादा जरूरी है पहनावा तो व्यक्तिगत सवाल है ।

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  2. आधुनिकता विचारों से झलकनी चाहिए और वह दोनों के लिए है। जिन्हें कपड़ों का खुलापन पसंद है या जो ऐसा करते है, कतई जरूरी नहीं कि उनमें वैचारिक खुलापन भी हो। व्यवहार में इसका उल्टा ही अधिक होता है। आपकी सोच ही अगर मध्यकालीन है तो फिर चाहे आप आधुनिक होने के लाख ढोंग करते रहिए, क्या फर्क पड़ता है? आपने सही कहा है कि "लोगों के लिये नुमाइश बनने से तो अच्छा है कि अगर सस्ता कपड़ा भी सलीके से पहना जाये तो इंसान अपनी आंतरिक खुशी में तो जी सकता है...।"

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  3. पुखराज जी,
    बैचारिक समर्थन के लिये आपका हार्दिक धन्यबाद.

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  4. आशा जी, आपका कहना सही है...धन्यबाद.

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