Sunday 1 May 2011

तेरी याद अब भी आती है - भाग 1

तेरी याद मुझे अक्सर आती है

खाली लम्हों में मुझे सताती है.

प्रिय भारत,

कैसे हो ? आज अचानक दिमाग में पता नहीं क्यों कुछ उचंग उठी और तुम्हे पत्र लिखने को जी चाहा जो अब लिख रही हूँ. तुम्हें तो शायद मेरी याद तक न होगी..क्योंकि तुम्हारे पास तो पता नहीं कितने लोग हैं उनमें ध्यान बंटा रहता होगा. सुना है कि आजकल तुम बहुत उदास और परेशान रहते हो...और मैं अक्सर यह सोचती हूँ कि तुमसे मिले और तुम्हें देखे हुये बहुत समय हो गया है..कभी-कभी तो तुम्हारी बहुत याद आती है. कई बार ऐसे ही खाली पलों में या कभी कहीं आते-जाते भी तुम्हारी याद आ जाती है. कुछ भी हो मैं तुम्हें वेवफा नहीं कहती..क्यूँ कि...

न हम वेवफा थे न तुम वेवफा थे

यूँ कहो हमारे सितारे कुछ खफा थे.

ये हमारी मजबूरियत थी..किस्मत में हमारा बिछड़ना ही लिखा था. लेकिन जब-जब तुम्हारा अहसास होता है..तो आँखें बंद करके उन मीठी यादों में डूब जाती हूँ. तुम्हारे संग बिताये वो साल और उन सालों के सुखद-दुखद पल याद आते रहते हैं..और इतने साल होने के वावजूद भी तुम अब भी मेरी यादों में रहते हो...तो मैं वेवफा कैसे हो सकती हूँ..तुममें अब भी अपनापन ढूँढती हूँ. हाँ, तुम मुझे मूरख कह सकते हो, नादान कह सकते हो..पर क्या करूँ तुमसे अपनेपन का अहसास कभी गया ही नहीं...अब भी मोह जाल में फँसी हूँ कि अगर तुम्हारे पास होती तो कैसा लगता मुझे...इस तरह की बातें अक्सर चक्कर काटती रहती हैं अपुन के भेजे में. खैर, अभी तो ढेर सारी बातें और करनी हैं तुमसे..लेकिन ये काया आपे में नहीं है..इस समय बहुत जोरों की नींद आ रही है..दिमाग सुन्न होने लगा है..इसलिये बुरा ना मानना. कल तुमसे फिर बातें करूँगी शायद इसी समय. तो अब गुड नाइट..स्वीट ड्रीम्स..लेकिन मीठे सपनों से क्या होगा..वो तो सपने ही रहते हैं.

तुम्हारे अतीत की एक कड़ी

- मैं


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