Saturday 26 June 2010

नारी की दुर्दशा

बदलते समय के साथ-साथ नारी की और दुर्दशा हो रही है...सबकी उम्मीदों का वजन ढोते-ढोते वह गल रही है.

शहर और गाँव में रहने वाले, कम या अधिक शिक्षित लोग और आर्थिक परिस्थितिओं की विवशता ने भी कई जगह एक बहू...यानी एक शादी शुदा लड़की के जीवन में भी बदलाव लाना शुरू कर दिया है. एक वह समय था जब गाँव व शहर की बहू बस घर का काम देखती थी और लोगों का सत्कार करना और सिलाई, बुनाई, कढ़ाई आदि ही कर पाती थी फिर भी दिन में गप-शप भी करने को समय मिल जाता था. फिर एक ऐसा दौर आया जब केवल उस पर डिग्री का लेबल भी लगा होना चाहिये था (जो अब भी है ) ताकि ससुराल में सब कह सकें की उनकी बहू खूब पढ़ी-लिखी है...लेकिन अब के दौर में अपने देश में ( विदेशों की तो बात ही छोड़ें, वहां भी कुछ काम करती हैं और कुछ नहीं करती हैं ) कितनी ही बहुएँ आर्थिक तंगी से सर्विस करती हैं और साथ-साथ घर व बच्चों को संभालती हैं और सास ससुर की सेवा का दायित्व भी उठाती हैं...

जैसे-जैसे जमाना बदलता गया वैसे ही हर वस्तु में भी बदलाव आता गया. बदलाव से मेरा मतलब है की...हर पिछली पीढ़ी के बाद नई पीढ़ी आती है...तो हमारे चारों तरफ की चीजें तो बदलती ही हैं साथ में पहनावा-उढावा, खान-पान, बोलचाल और लोगों के बिचार भी बदलते हैं. उसी तरह शादी के बारे में भी बिचार लगातार बदलते रहे हैं.

भारत में भी आजकल शादी की बात करते हैं लड़के और लड़की की तो compatibility की बातें पहले होती हैं...लेकिन फिर शादी के बाद compatability (बराबरी) गई भाड़ में...उन्हें तो सब कुछ चाहिये लड़की से. सास को बहू से चाहिये घर का पूरा काम...चाहें बहू सर्विस से आने के बाद कितनी ही थकी हो. और उनके अपने ' प्यारे से लाल ' आराम से बैठे टीवी पर क्रिकेट या फुटबॉल के गेम को देखते हुये रह-रह कर किलकारी मारते रहते हैं और बीबी को हुकुम देते रहते हैं...(जो पहले से ही अपने पैरों पर चरखी की तरह घूम-घूम तमाम काम किये जा रही है)...अपने व दोस्तों को कुछ न कुछ टूंगने के लिये....लेकिन बख्त आने पर...क्या वह भी उसकी सहेलिओं के लिये इतनी ही तवज्जो देते होंगें ?...हाँ, चिपक कर चटर-पटर बातें करके अपना चार्म दिखाकर, अच्छे बनने की कोशिश जरूर करते हैं. दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप लोग कहेंगे की लट्ठ मार बात कह दी फिर भी कह लेने दीजिये मन में रखने से क्या फायदा तो...वह दूसरा कहने का तरीका है की...flirting करके...लेकिन खातिरदारी करना...ओह, नो ! यह शब्द क्यों कह दिया मैंने ? कैसा गुनाह हो गया मुझसे ? PARDON ME!

NO WAY...पुरुष अपनी जगह से हिलेंगे नहीं..हाँ, यह सही है. या फिर हेल्प करने के नाम पर गायब हो जायेंगे जैसे...गधे के सर से सींग. यह ट्रेंड नया नहीं है...actually 1970 के आस-पास चालू हुआ था. विदेशों से चलकर अब यह यूनीवर्सल ट्रेंड हो गया है और हर माडर्न पति घर की जिम्मेदारिओं से ऊबकर इसका शिकार हो गया है. पहले भी यह male species हमेशा से आलसी ही रही है. लेकिन अब घर के अन्दर और बाहर मनोरंजन के साधन बढ़ने के साथ औरत की दशा कई जगह बद से बदतर हो रही है. हर समय entertainment की बातें होती हैं, पर घर की जिम्मेदारियों की नहीं, वर्ना पति महाशय के मुँह का स्वाद खराब हो जाता है. हर समय मनोरंजन की बातें करने की औरत कहाँ से compatibility लाये जब सर पर घर से सम्बंधित तमाम काम लदे हों. इस सब के लिये चाहिये तमाम फुर्सत. तो अब बताइये की औरत तिलमिला के, बिलबिला के, असहाय और असमर्थ समझ कर बुदबुदायेगी नहीं कुछ न कुछ, तो और क्या होगा. और फिर उसे खिताब दे दिया जाता है nagger का....यह शब्द अंग्रेजों की औरतों को खूब सुनना पड़ता है...आदमी तो हर जगह हैं ना ? उनकी जबान को कौन रोक सकता है. जहाँ जिम्मेदारिओं का अहसास नहीं वहीँ दरारें पड़ने लगती हैं. जो औरतें या बहुएँ इस तरह की परिस्थिति में होंगीं उनकी ही सहानुभूति दूसरी औरत के लिये होती है चाहें वह कोई देश हो...एक औरत दूसरी औरत के अहसास को समझती है...वह चाहें किसी भाषा को बोलती हो या किसी भी धर्म या सभ्यता की हो.
एक कहावत है ''जाके पैर ना गई बिंवाई, वह क्या जाने पीर पराई.'' एक सी समस्या या दुख से ही तो संगठन की भावना को जन्म मिलता है. ठीक कहा ना मैंने ?

OOPS!! किसने कहा है की नारी अबला है ? अरे, यह सब तो कहने की बातें हैं. असल में नारी का जीवन और कठिन होता जा रहा है क्यों की उससे सबकी उम्म्मीदें इतनी बढ़ गयी हैं की वह एक पारिवारिक जीवन को ढंग से निभा नहीं पा रही है, क्योंकि सबको खुश रखना बहुत मुश्किल हो जाता है.

शादी के पहले देखते हैं की लड़की अच्छी तरह शिक्षित हो...कभी-कभी तो उसकी योग्यता लड़के के बराबर हो क्योंकि उसे (लड़के को) केवल खाना और सफाई करने वाली ही नहीं चाहिये (अपने आप तो शायद खाना बनाना और सफाई-सुथराई की परिभाषा भी न जानते हों ). अगर जरूरत पड़ी तो पति लोग बेमन से कुछ कर देते हैं और सोचते हैं की इस तरह उलटी-सीधी तरह से काम करने से वह दोबारा काम करवाने की उम्मीद ही नहीं रखेगी उनसे और वह अगली बार काम करने से बच जायेंगे. या फिर कुछ हाथ बंटाने की वजाय बहाना करके टाल-मटोल कर जाते हैं यह कहकर.. ' अरे तुम इतनी neurotic क्यों हो '...या फिर ' क्या जरूरी है की रोज़ सफाई हो, अभी इतनी जल्दी भी क्या है ? ' और भी सुना है की न जाने क्या-क्या बुदबुदाते रहते हैं. लेकिन हाँ, उनके अपने entertainment में कोई कमी नहीं रहनी चाहिये. घर में तो हाथ बंटाने के नाम पर जैसे पहाड़ टूट पड़ता है और अगर दोस्त के संग मटरगश्ती करनी हो तो पता नहीं कहाँ से अचानक शरीर में फुर्ती आ जाती है...चाहें कुछ देर पहले जबरदस्ती नाक पूँछते हुये जुकाम होने की एक्टिंग कर रहे हों. लेकिन हर वाइफ इतनी भी बेवकूफ या मोटे दिमाग की नहीं होती है की इस नौटंकी का मतलब ना समझ सके.

पति चाहें किसी पीढ़ी के हों लेकिन सब आलसी जीव होते हैं और एक्सपर्ट होते हैं काम से बचने की बहानेबाज़ी में. लेकिन टीवी पर स्पोर्ट हो या दोस्तों का फोन आये तो तैयार होकर बाहर जाने में मिनट भी नहीं लगते. ऐश ही ऐश है भाई ! वाइफ दांत किलस कर सारा काम निपटाएगी ही और साथ में नाक टपकाते हुये पें-पें करते बच्चों को भी संभालेगी...और कुर्सी या चारपाई पर बैठी माँ जी को भी...जो एक ही दिन में बहू के घर में कदम रखते ही बूढ़ी हो जाती हैं, पर जब अपनी अक्सर मिलने जुलने वाली सहेलिओं के यहाँ जाती हैं तो पैर का दर्द ठीक हो जाता है उस दिन अचानक..ईश्वर की महिमा तो देखो ! फिर अपनी सहेलिओं से यह भी कहती हुई सुनीं जाती हैं की..' बहू का तो काम प्यारा होता है चाम नहीं '..जैसे की बिचारी बहू हाड़-मांस की नहीं बल्कि पत्थर की बन कर आई है की उसे कभी कोई हारी-बीमारी होनी ही नहीं चाहिये ..अब आप ही बताइये की क्या वह इंसान नहीं है? और क्या हर सास को बहू के आते ही अपने को बूढा कह कर सारा दिन बस आराम फरमाना चाहिये बिना बीमारी के ? बहू भी तो आखिर एक इंसान है. उसे भी तो आराम की जरूरत होती है.

और यदि कभी वाइफ को जुकाम हो गया तो पतिदेव को लगता है की वह क्यों पीछे रहें तो वह भी जबरदस्ती खों-खों करने लगते हैं और लगने लगता है की उन्हें जुकाम हो गया है, ताकि काम से बच जायें वाइफ के बीमार होने पर. और फिर एक औरत होने के नाते वाइफ अपने को घसीट कर घर के काम करने लगती है...और पति जी बिस्तर में रजाई ओढ़ कर अपनी बिना टपकती नाक वाइफ को देखते ही पोंछने लगते हैं जैसे की उस बिचारी को असलियत का पता ही नहीं. लेकिन क्या करे फिर वो भी इस परिस्थिति में...उसने तो अपना, बच्चों का और घर का काम करना ही है..किसके सहारे छोड़े और किससे बहाना करे और नखरे दिखाये...बस कहानी चलती रहती है वैवाहिक जीवन की लंगड़ाते हुये...

इसका क्या इलाज़ होना चाहिये...?

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