Sunday 27 June 2010

लालू के कारनामे : भाग 3

गर्मी का मौसम, मच्छरों की भुनभुनाहट और उमस के मारे बेचैनी...लालू को बड़ी मुश्किल से नींद आई थी...जब तक जागते थे तब तक उनका दिमाग खाली नहीं रहता था..बस खेल-कूद व किसी न किसी को तंग करने के प्लान बनाया करते थे..घर में कुछ लोग कमरों में व कुछ लोग बरामदे में सोये हुये थे...और लालू उस दिन बरामदे में लगे एक बिस्तर पर सोये थे...बिजली चले जाने से सबका गर्मी और उमस के मारे बहुत बुरा हाल था...और मच्छरों के उत्पात से लालू की नींद टूट गयी..आधी रात का समय था...लालू ने टटोल कर पास की टेबल से टार्च उठाई और उसकी रोशनी में उठे...जाकर पानी पिया फिर बाथरूम गये और धीरे से वापस आकर फिर सोने के लिये बिस्तर पर लेट गये.

लेकिन आँखों में नींद कहाँ...तो दिमाग कुछ खुराफाती बातें सोचने लगा...और अचानक बिजली की तरह दिमाग में एक आइडिया कौंध गया की चलो रिया को कुछ सबक सिखाया जाये..तो जल्दी से बिना कुछ आहट किये हुये उठ गये और इधर-उधर टार्च की रोशनी में देखा तो एक कोने में एक बड़ी मकड़ी चिपकी हुई दिख गयी...लालू ने उसे अपनी चप्पल से पटक कर मारा फिर उठाकर उसे रिया की तकिया के नीचे जाकर रख दिया..और चैन से जाकर चुपचाप सो गये...उनके मन में कुछ ठंडक सी पड़ गयी थी.

भोर हुयी...घर में सब लोग उठने लगे..लेकिन रिया और लालू जरा अधिक आलसी थे..दोनों को देर तक सोने की आदत थी..जब तक उनकी मम्मी उन पर बुरी तरह झींकती नहीं थीं जोर से तब तक वह दोनों जल्दी उठने का नाम नहीं लेते थे.. उनकी मम्मी यही मनाया करतीं थीं की स्कूल की छुट्टियाँ कब जल्दी से ख़तम हों तो कम से कम सारा दिन तो लालू की खुराफातें ना झेलनी पड़ें...लालू ने सोते हुये अंगडाई ली....उनकी मम्मी सबको उठाने लगी तो लालू ने आँखें खोलीं लेकिन फिर कुनमुना कर चादर तान कर दोबारा सो गये...मम्मी वहाँ से चली गयी...फिर रिया कुछ भुनभुना कर उठी और बिस्तर को तह करके रखने लगी तो तकिया उठाते ही उसके नीचे उसे एक बड़ी सी काली मकड़ी दिखी तो उसके मुँह से जोर की चीख निकल गयी..लालू ने एक आँख खोल कर रिया को देखा..खिलखिलाये धीरे से..और फिर सोने का बहाना करके चेहरा ढँक लिया...रिया तुरंत ताड़ गयी और जाकर उसने लालू के कान उमेठे.

रिया: लालू तू कब अपनी करतूतों से बाज आयेगा...क्यों सताता रहता है सबको. अभी जाकर मैं मम्मी को बुला कर लाती हूँ और दिखाती हूँ की आज तूने क्या किया...अगर मकड़ी मुझे काट लेती और मैं मर जाती तो तुझे पाप लगता.

लालू: हे हे हे हे...पाप मुझे क्यों लगता..मकड़ी काटती तो उसे पाप लगता..और फिर वो मकड़ी तो तुम्हें तुम्हारी तकिया के नीचे मरी दिखी तो फिर पाप तो असल में तुम्हें लगना चाहिये...मुझे नहीं.

रिया: लेकिन रखी तो तूने ही थी ना ? मर गयी तो अच्छा हुआ तकिये के नीचे..वर्ना मुझे काट लेती तो जहर चढ़ जाता और मैं मर भी सकती थी.

लालू: अरे, तुम भी ना दीदी विला वजह के डर जाती हो...वो तो मैंने तकिये के नीचे रखने के पहले ही मार दी थी..तो काटने का सवाल ही पैदा नहीं होता...हे हे हे हे.

रिया: फिर भी मैं अभी मम्मी से जाकर कहती हूँ की तुमने ये कितनी घिनौनी हरकत की है...आज तुम नहीं बचोगे...पिछली बार की तेरी हरकत का मैंने कोई बदला नहीं लिया लेकिन तू नहीं सुधरने वाला.

और रिया गुस्से में बड़बडाती अपनी मम्मी को बुलाने चली गयी इतनी देर में लालू ने वह मकड़ी उठा कर खिड़की के बाहर फेंक दी...और बिचार करने लगे की अपने को आज कैसे बचाया जाये...फिर जैसा की अक्सर या हमेशा ही होता रहता है...लालू के दिमाग ने पलटा खाया और एक आइडिया आया..चुपचाप अपना चेहरा ढककर काँखने लगे.

इतनी देर में उनकी मम्मी आ गयी...और साथ में रिया भी अपने चेहरे पर एक विजयी मुस्कान लिये हुये.

मम्मी: क्यों रे ललुआ...ये क्या करता रहता है..क्यों नहीं रिया को चैन से जीने देता...कुछ तो सोच वो तेरे से बड़ी है...कब अकल आयेगी तुझे...और ऊपर से अब तक सो रहा है...कभी समय से नहीं उठता..चल अब उठ...देख कितना दिन चढ़ आया है और तेरी नींद अब तक नहीं पूरी हुई.

लालू ने और जोर से काँखना शुरू कर दिया..मम्मी ने सुना तो कुछ चिंता हुई.

मम्मी: क्यों..ये काँख क्यों रहा है..क्या हुआ..तबियत तो ठीक है ना..देखूँ कहीं बुखार तो नहीं है.
और लालू के माथे पर हाथ रखकर देखा तो उनका टेम्परेचर सही महसूस हुआ उनकी मम्मी को.

मम्मी: बुखार तो नहीं है तो काँख क्यों रहा है रे ?

रिया: मम्मी तुम इससे पूछो ना की इसने वो मकड़ी क्यों मेरी तकिया के नीचे रखी..देखो मैं दिखाती हूँ.

लेकिन वो मकड़ी वहाँ नहीं थी तो मिलने का सवाल ही नहीं था.

रिया: लेकिन मम्मी वो तो यहीं इसी तकिये के नीचे थी..फिर कहाँ चली गयी ?

मम्मी: ललुआ क्या तूने कोई मकड़ी रखी थी तकिया के नीचे..बोलता क्यों नहीं.

लालू: नहीं मम्मी मैंने कुछ भी नहीं रखा था वहाँ..मैं तो उठा था अपने बिस्तर से तो दीदी की चारपाई से टकरा गया था...इसके सर पर मेरा हाथ लग गया....तो इसने मेरे पेट में खींच कर जोर से मुक्का मारा..मैंने तुमसे जाकर शिकायत नहीं की.. केवल इसलिए की कहीं इसकी डांट न पड़े...मम्मी मेरा पेट अब और भी दुख रहा है.

रिया तो जैसे भौंचक्की रह गयी लालू के तेज दिमाग के बारे में सोचकर..उसे बिश्वास ही नहीं हुआ अपने कानों पर...और अचानक उसकी समझ में नहीं आया की अब वोह उसके आगे क्या कहे...ऊपर से मम्मी ने एक डांट की घुट्टी पिलाई वो अलग.

मम्मी: रिया तुझे बड़ी होकर भी अकल नहीं है की ये तेरा छोटा भाई है..अरे सर पे हाथ ही तो लग गया था..कोई पहाड़ तो नहीं टकराया था की उसके पेट में घूँसा मार दिया..वो भी इतने जोर से की वह अब तक बिलबिला रहा है...चल जा तू किचन में जाकर कुछ काम संभाल और मैं ललुआ को देखती हूँ.

और मम्मी लालू के पास बैठकर उनका सर सहलाने लगी और चुम्मियां लीं..जिसे देख कर वहाँ खड़ी हुई रिया का खून खौल गया. और लाचार सी हो गयी की क्या सफाई दे झूठे लालू की दलीलों पर.

लालू: मम्मी..मम्मी..रिया दीदी पर चिल्लाओ ना अब.

लेकिन फिर मम्मी की निगाह बचाकर रिया को जीभ निकाल कर दिखाई..और रिया किलस कर रह गयी और अपनी मम्मी के कहने पर किचन में काम करने चली गयी...और लालू मुस्कुराके फिर काँखने में लग गये...

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