Friday 25 June 2010

'' हमारे सवाल आपके जबाब '' निरानंद जी का इंटरव्यू

'' हमारे सवाल आपके जबाब ''..शीर्षक से..आज मैं फेसबुक के जाने-माने अदभुत लेखक और महान रचनाकार '' निरानंद '' जी का साक्षात्कार उनकी कुछ नयी झलकियों के साथ..आप सभी से करवाने जा रही हूँ...

मैं: निरानंद जी प्रणाम...आज आपके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ...आपके नाम का इतना प्रचार है और सारे फेसबुक पर ही इसकी बहार है...लेकिन आज यह वन टू वन बातचीत सभी फेसबुक के साथिओं के लिये पहली बार आपसे कर रही हूँ...आपकी इज़ाज़त के ( या बिना इज़ाज़त ) आशा है की आप अपने बहुमूल्य समय में से कुछ समय निकाल कर ( बर्बाद करके ) हमें देने का कष्ट करेंगे और हमें कृतज्ञ करेंगे..कुछ संक्षिप्त में सवाल हैं.

निरानंद जी: हूँ, प्रणाम..बोलिये आपने जो बोलना हो...पूछिये जो आपने पूछना हो...सोचिये अगर आपने कुछ सोचना हो...हूँ...

मैं: आपको लेखन का चस्का....क्यों..कब और कैसे लगा ?

निरानंद जी: हूँ, सोचता हूँ..सोचता हूँ...कुछ बातों का जबाब होते हुये भी नहीं होता..कुछ ऐसा ही हमारे साथ है...कुछ बातों का हिसाब पल, दिन और सालों में नहीं रखा जाता...क्या आपको कोई परेशानी होगी अगर हम कहें की हमारा शायद जनम ही हुआ था लिखने को और लोगों को हँसाने के लिये...हा हा हा...इसमें किनारे पे नहीं छलाँग मार के कूद पड़ने में ही मजा आता है...तैरने में नहीं डूबने में आनन्द आवे है...इक ज्ञान का दरिया है और डूब के जाना है...हा हा..

मैं: आप अक्सर ज्ञान-चर्चा छेड़ते हैं और फिर लोगों को उस ज्ञान-जाल में फंसा कर आनंद महसूस करते हैं...ये किस हद तक सही है ?

निरानंद जी: हूँ,..ये उसी हद तक सही है जिस हद तक ऊपर वाला हमें इस दुनिया की मुश्किलों को भुगतने के लिये छोड़कर बैठा हुआ तमाशा देखता है..तो हम भी अपने भक्तों को मेरा मतलब है ज्ञानियों व अज्ञानियों से ज्ञान की चर्चा की शुरुआत करते हैं फिर उनकी आपस की बहस का आनंद लेते हैं..तब भी तमाशा वो ऊपर वाला देखता है..और साथ में हम भी सबको खेल खिला कर चुपके से अलग बैठ कर...हा हा हा हा..

भक्त के वश में है भगवान बस जान इतना लीजिये
सब बिसरा याद आये जरा याद तो दिल से कीजिये.

मैं: सुना है की आप लेखन की कला में माहिर होते हुये तमाम विषयों पर डिसकस करने में पटु हैं ऐसा कम ही देखने में मिलता है...और राजनीति की गंगा में भी डुबकी लगा रहे हैं...लोगों को डराते-धमकाते भी हैं...जेल पहुँचाने की भी हस्ती रखते हैं...यह सही है ना ?

निरानंद जी: हूँ, आपका सोचना सही है...

मैं: इसके वावजूद भी आपको घमंड रत्ती भर नहीं छू गया है...आप बड़ी-बड़ी हस्तियों के अलावा हमारे जैसे साधारण लोगों से भी बोलने में नहीं झिझकते या दूसरे शब्दों में कहूँ की शर्म नहीं महसूस करते..ऐसा क्यों ?

निरानंद जी: क्यों का क्या मतलब ? मैडम..जो करे शरम उसके फूटें करम..हा हा..यह मौसम तो पहले से ही चल रहा था..जिन्दगी के पल दो पल हैं..कुछ हँस लो मुस्कुरा लो..महफिलें सजा लो...जीवन की डोर...बड़ी कमजोर...क्या जाने कब टूट जाये. अपने दिमाग से सोचो की असली लाइफ का मजा तो पब्लिक में घुल-मिल कर ही मिलता है...तो हमारी ख़ुशी है की हम अपनी चौपाल या कहो बैठक लगाकर जब तक लोगों से बातचीत नहीं करते..हँसते-बोलते नहीं हमको मजा नहीं आता...अरे भाई..ये दुनिया चार दिन की है...

जिन्दगी की रेलगाड़ी छकपक करती जाय, इक स्टेशन सीटी देती दूजे पर कुकियाय
बड़ा विचित्र गाड़ी का मेला कोई समझ ना पाये, ठंडी हवा के इन झोंको में मस्त सफर कट जाये.

मैं: हमने सुना है की आपको राजनीती में तो चस्का है ही..पर आपको फिल्मों और फ़िल्मी गाने सुनने का भी अत्यधिक चस्का पड़ा हुआ है..और बात-बात में आपको फ़िल्मी डायलाग बोलने का दौरा पड़ता है..और फिर गाने की लाइनों की टांगे तोड़ देते हैं आप..इसमें कितनी सचाई है ?

निरानंद जी: हाँ, हम इतनी बड़ी हस्ती हैं...फेसबुक पर भी मस्ती है...दुनिया हमारे साथ हँसती है...क्या आप भी बताने की तकलीफ करेंगी की दुनिया आपके साथ क्यों हँसती है..क्या आप बता सकती हैं की आपको राजनीति में इंटेरेस्ट क्यों नहीं है ?

मैं: जी..वो...मैं...मैं....मैं तो यहाँ आपका इंटरव्यू फेसबुक की तरफ से लेने आई थी...बस इसलिये..लेकिन आप तो नाराज़ होने लगे...क्षमा कीजिये सर जी, अगर कोई बात आपके हृदय को चुभ गयी हो तो...

निरानंद जी: ठीक है..आगे का सवाल शूट करिये...

मैं: हम्म्म्म.. इतने महान होकर भी हमने सुना है की आपकी कुछ लोगों से दुश्मनी हो गयी है...और आप उनकी तरफ देखना भी नहीं चाहते...क्या यह सत्य है ?

निरानंद जी: नज़र-नज़र में हाल दिल का पता चलता है..उनकी नज़र किधर है साफ़ पता चलता है..अरे छोड़ बातें दुश्मन होने की जरा पास आ, थाम के तेरा हाथ जो गले से न लगा लूं तो दुश्मन नहीं...हम दुश्मन हैं कुछ अलग अंदाज के जो दुश्मन को गले लगा कर उसे प्यार देते हैं...दुश्मन का दिल लूट कर अपने प्रेम में जकड़ अपनी हुकूमत का सरताज बनाते हैं. हा हा हा ..ये भी फ़िल्मी डायलाग है..कैसा लगा ?

मैं: सुना गया है..मेरा कहने का मतलब है..उड़ती-उड़ती ख़बरें मिलती हैं आपके बारे में की..आपके संग कुछ हगिंग-किसिंग का लफड़ा भी होता रहता है..लड़के आपको ईमेल और मोबाइल पर बेधड़क मेसेजेज़ भेजने की जुर्रत करते हैं..और लड़कियों के संग सैंडल बाजी के लफड़े भी हो जाते हैं अक्सर..इंटरव्यू ले रही हूँ इसलिए पूछना आवश्यक है ( ही ही ) तो क्या ये भी सत्य है ?

निरानंद जी: नज़र-नज़र में हाल दिल का पता चलता है...किसकी नज़र किधर है साफ़ पता चलता है..हा हा हा हा हा..पट्ठे मेरे मोबाइल पर हग के मेसेज भेजते हैं और ईमेल बॉक्स भरा रहता है...हगिंग और किसिंग के मेसेजेज़ से...अब तक तो सुंदरियों के हग, किस और सैंडल की चिंता करते थे..और अब ये कमबख्त लड़के भी मेसेज भेजने लगे हैं...ससुरों ने नाक में दम कर रखा है...क्या जमाना आ गया है..हा हा हा...

मैं: निरानंद जी..आपका भ्रष्टाचारी के बारे में क्या कहना है ? और साथ में देश में बढ़ती हुई मंहगाई, भुखमरी, गरीबी, गर्मी, मच्छर, पानी और गंदगी के बारे में कुछ बिचार प्रकट कीजिये..इन बातों से आप बहुत प्रताड़ित होकर अपनी महफ़िल..मेरा मतलब अपनी रोज़मर्रा वाली बैठक में बहुत गरमजोशी से बातें करते हैं..यहाँ इन मुद्दों पर कुछ रोशनी डालिये.

निरानंद जी: खून पसीने की जो मिलेगी तो खायेंगे...नहीं तो यारो हम भूखे ही सो जायेंगें...

पैसे की पहचान नहीं, इंसान की कीमत कोई नहीं, बच के निकल जा इस बस्ती से यहाँ करता कोई मुहब्बत नहीं
मच्छर बन सब खून चूसते हैं, भुखमरी से कोई डरता नहीं, साबुन की क्या जरूरत है जहाँ हाथ धोने को पानी मिलता नहीं
बिजली धोखा देती है हर दिन, ये मुयें मच्छर रात में मरते नहीं, मंहगाई की क्या बात करें कभी हम इससे उबरते नहीं.

मैं: सुना गया था की आपने कोई वंदना लिखी थी भ्रष्टाचार महाराज को खुश करके हमेशा-हमेशा के लिये भगाने के लिये..मुझे लगता है की ये वंदना भी एक रिश्बत की ही तरह है..भ्रष्टाचार महाराज को भेंट की गयी..आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे..क्या भ्रष्टाचार महाराज खुश नहीं हुये अभी तक..क्या शर्म नहीं आई उन्हें..अब तो इतनी निंदा सुनने के बाद भागते नजर आने चाहिये..या लोग पगले हैं जो इसकी वंदना में राग अलाप रहे हैं..इतनी वंदना गाने के बाद भी किसी पर असर नहीं होता...

निरानंद जी: ओ, सोनिये..देख तूने मेरे डायलाग मुझसे पहले ही बोल दिये हा हा हा..भ्रष्ट गंगा तो भ्रष्ट गंगोत्री से लेकर भ्रष्टाचार के गंगा सागर तक सब साफ होना चाहिये, क्या आपको इस बात में कोई वजन लगता है..की नहीं ?

मैं: देश के क्राइम मेरा मतलब है की बढ़ते हुये अपराध चोरों आदि को सजा दिलाना..इसके पीछे भी आपका योगदान कुछ बिचित्र प्रकार से होता है..( ही ही ही )..अगर बुरा ना माने तो कुछ बताने का कष्ट करें..ये मैं नहीं कह रही सर जी..कुछ और मीडिया व पब्लिक की तरफ से सुनने में आया है..तो आपके क्या ख्यालात हैं इस बारे में ?

निरानंद जी: अरे ख्यालात क्या होंगें...चोरों के पीछे तो हम जब पड़ते हैं. तो उन्हें लतिया के मुकिया के धकिया के उनके भेजे को ऐसा ठिकाने लगाते हैं..उन्हें ऐसा रपटाते हैं की फिर वो गिरते-पड़ते अपना पिछौड़ा झाड-पोंछ के ऐसे भागते हैं की मुड़ के भी देखने की हिम्मत नहीं पड़ती..जैसे उनके पीछे भूत पड़े हों..वो ऐसी जगह पहुँचते होंगे जहाँ वो हमारी खुसबू दूर-दूर तक न सूंघ पायें..हम उनके भागने के पहले उन्हें दिन में ही तारे दिखा देते हैं...या दिल में तारे हा ह हा..

मैं: हा हा हा..सर जी माफ़ करियेगा हँसने के लिये...मैं रोक नहीं सकी अपनी हँसी..सॉरी..
आपका आजकल के मौसम के बारे में क्या ख्याल है ? मेरा मतलब है की कभी गर्मी..कभी ये ठंडी हवायें ?

निरानंद जी: आसमान पर बादल छाये रहने तथा ठंडी हवायें चलने से मौसम सुहाना हो गया और ये ठंडी हवायें..मन को सतायें..आजा गोरी मोहे काहे को रुलाये..काहे को रुलाये..ये ये ये..मुर्दा और पत्थर भी मोहब्बत के तराने में डूब जायें. एक-एक पंक्ति पर चुलबुली हरकतों पर, उन हसीन वादियों पर..बस वाह, वाह कहने के अलावा और कोई शब्द ही नहीं सूझते.

नजारा देख तारों का, आठ दिन जो दिखते हैं, करोड़ों हैं गोया फिर भी छाये हुये अँधेरे हैं. उजाला चॉंद का दिल में, मोहब्‍बत भी उसी से है, भले ही तारों के मंजर छाये हुये हजारों हैं.
आजा आई बहार... दिल है बेकरार ... ओ मेरे ... राजकुमार

मैं: तो यह वाकई में सच है आपको देखकर की आपको आशिकी के गाने बहुत पसंद हैं..और इस मुद्दे पर बात करना भी आपका शौकिया अंदाज़ है.

निरानंद जी: हा हा हा ये एक अबूझ पहेली है...मोहब्बत तो हमें जिन्दगी से बेइन्तहां है..आशिकों को दिन में तारे नजर आते हैं, कोई जरा उनकी नजरों में झांक कर तो देखे...हिन्दुस्तान तो चांद को धरती पर लाने और कटोरी भर पानी में उतारने का काम सदियों पहले कर चुका...सुना नहीं...मैया मोरी चन्द्र खिलौना लैहों, या फिर इक रात में दो दो चाँद खिले इक घूंघट में इक बदली में..या फिर दिनतारा...दिनतारा..दिनतारा
तेरा नजारा बडा प्यारा..ताक धिना धिन..ताक धिना धिन...या फिर किसी ने गंगाघाट का पानी पिया है...फ़ोकट में दिन में तारे दिखा दूंगा...हा हा हा...

किस्‍सा ए लैला का सुना, मुफत मजनू मारा गया खाये पत्थर पागल पुकारा गया
क्‍या वो देवदास था क्‍या चन्‍द्रमुखी की कहें कि बदनसीब पारो की सुनें उन्‍हें भी गरियाया गया
जो भी इस डगर पे चला दोस्‍तो या तो बेवफाई की भेंट चढ़ा दोस्‍तो या जमाने से ठुकराया गया
बहुत बेहतर है जरा सध के चलो, किसी रूप के भंवर जाल में न फंसो इतर न होगा अंजाम ये बताया गया
रूप राह पर चल-चल कर पॉंव फफोले उठते हैं, फिर भी यारो कब कहॉं किसके सपने सजते हैं
बड़ी दुश्‍कर है राह कठिन, पर कभी-कभी कोई चाहने वाले बड़ी मुश्किल से मिलते हैं
हमने बिगड़ी मुहब्‍बत के अंजाम कई नाकाम सुने, पर सच्‍चे चाहने वाले हमें चन्‍द मगर, पर खूब मिले
नसीबा अच्‍छा था, पार हुये, हमराह हुये, बेवफाई-तिजारत की इस मण्‍डी में हमें सच्‍चे दिल के यार मिले.

हाँ, तो आप फिर क्या कह रहीं थीं ?

मैं: आपके इस इंटरव्यू से मैं व समस्त पाठक और श्रोता भी प्यार की बारिश में नहा गये...आपकी सब पर हमेशा ऐसी ही इनायत रहे.

निरानंद जी: हाँ..हाँ क्यों नहीं, क्यों नहीं..इनायत रहेगी बिलकुल रहेगी..इसमें कोई शक नहीं...हा हा हा...
पर लडकियाँ दिमाग घुमा-घुमा कर चकरघिन्‍नी कर देती है..अर्थ का अनर्थ कर देती हैं...भगवान ने लडकियों का दिमाग छोटा और कभी-कभी दिल भी छोटा बनाया है, जब सोचेंगी, अपने दायरे में ही सोचेंगीं, सबको अपने जैसा ही सोचतीं हैं...पता नहीं क्या अपने को समझ रखा है...की..

मैं: सॉरी ! लगता है की आपकी किसी दुखती रग पर मैंने उंगली रख दी है..आपको हमारे सवाल से तकलीफ पहुँची हो तो हम क्षमा माँगते हैं.

निरानंद जी: नहीं, नहीं..ऐसी कोई बात नहीं मैडम जी..आप अपने सवाल जारी रखिये यही जीवन का क्रम है..मन पे आघात लगता है की लड़कियां आती हैं झलक दिखा कर छूमंतर हो जाती हैं...
बंसी बजाओ बंसी बजैया...चारों तरफ गोपियॉं बीच में कन्‍हैया..सोचिये अपने ही दिमाग से सोचिये की कन्‍हैया बनने का शौक किसे नहीं होता...बस गोपियां नहीं मिलतीं..हा हा हा हा मतलब समझीं न आप..जब गोपियाँ मिलेंगी तभी तो कोई बंशी बजायेगा..बोलिये..

मैं: जी..जी...अच्छा जी...हाँ, तो अब आप बताइये की आप अपने...मेरा मतलब है..सॉरी.. ( हा हा हा )..

निरानंद जी : कभी खुदा की रहमत से आये चॉंद जमीं पर जो, आगे बढ़ कर थाम लो. चूम कर हिफाजत से रखना, सीने में रख कैद करना, क्‍या पता कब भोर हो. पर चॉंद का दस्‍तूर अलग, वह न मिले रोज रात को. जो सात दिन का चॉंद है, फिर आठ दिन बस याद है. याद में गुजरें आठ दिन, उससे पहले संभल, रख चॉंद को महफूज कर आपको कुछ समझ में आया या नहीं...

मैं: हाँ, आया...लगता है की आपको खुद भी गाने का बहुत शौक है ?

निरानंद जी: सही फ़रमाया, मन को भरमाया..हमने खूब गाया..जम कर गाया..कईयों के संग गाया है, अब छोड दिया..मोबाइल, इण्टरनेट, फेसबुक है न...अब तो सुबह यहीं होती है शाम यहीं होती है, बस यूँ ही जिन्दगी तमाम होती है.
हा हा..जब फिल्म में बारिश होती है तो हम भी प्यार की बारिश में नहा जाते हैं..और फिर कभी-कभी गुनगुनाते जरूर हैं...वो क्या कहा आपने..शौकिया..हा हा हा..

मैं: सर जी..एक बार आपका इंटरव्यू एक लेडी ने लिया था..और सुनने में आया था की उनके लिखे इंटरव्यू को आपने ख़ारिज कर दिया था...और उनका डब्बा भी गोल कर दिया था..मतलब की उन्हें उनके जॉब से निकलवा दिया था...और वह इंटरव्यू छपते-छपते रह गया..अखबार में..इस पर भी क्या आपकी कुछ प्रतिक्रिया मिल सकती है ?

निरानंद जी: ये इंटरव्यू आनंद देने वाला है..कोई सीरियस मैटर नहीं...हम उस सीरियसनेस और उस महानुभाविका को सदा सर्वदा के लिये तिलांजलि दे चुके हैं...हमें टेंशन के तोते पालने की आदत नहीं है, मूरख की दोस्ती जी का जंजाल...अब हम राहत और आनंद महसूस कर रहे हैं...वो हमसे ऊट-पटांग सवालों की बौछार कर रही थीं..हा हा हा..चलिये छोड़िये उस बात को...बीती ताहि बिसारि के, आगे की सुधि ले..हे हे हे हे..कुछ समझीं आप ?

मैं: जी..जी हाँ, बिलकुल समझी..आपने अपना ये बेशकीमती समय हमारे इंटरव्यू के लिये दिया है उसके लिये आपको बहुत धन्यबाद.

( हे भगवान ! मैं कहाँ फंसी आकर...ये निरानंद जी तो निरे सनकी लगते हैं की जरा सी भी हंसी यहाँ तो फंसी...और अगर कुछ देर और रुकी तो ये निरानंद जी कहीं हमारा भी डब्बा न गोल करा दें.. इसलिए जल्दी सरकूं यहाँ से अब )

निरानंद जी: कहॉं तेरी ये नजर है...मेरी जान मुझे खबर है...चल चलें ऐ दिल कहीं पर...कर किसी का इंतजार...
आखिरी गीत मोहब्बत का सुना लूं तो चलूं ..मैं चला जाऊंगा दो अश्क बहा लूं तो चलूं...
ओ दुखी मन मेरे अभी मत जाना..किसी की जिन्दगी का नहीं है ठिकाना..ओ दुखी मन मेरे...

मैं: निरानंद जी बहुत ख़ुशी हुई आपका साक्षात्कार करके और आपसे बात करके...लेकिन अब हमारा यहाँ और ज्यादा रुकना असंभव है..आप भूल रहे हैं की यहाँ से हमें जाना है..आपको नहीं. हमें बहुत ख़ुशी होती आपका गाना सुनकर मगर हमें अब जरा जाने की जल्दी है...किसी और का इंटरव्यू लेने के लिये..और आपके इंटरव्यू का समय समाप्त हो गया है इसलिए आप से मैं क्षमा प्रार्थी हूँ..वैसे आप मेरे जाने के बाद भी गाना गाकर आँसू बहा सकते हैं.

निरानंद जी: ढल गया दिन, हो गयी शाम...जाने दो जाना है..अभी-अभी आये हो...अभी-अभी जाना है...ओ ! जाने वाले जरा रुक जा, मेरी मंजिल का पता क्या...पता क्या...पता...क्या...ठीक है..गुडबाई..हा हा...

मैं: निरानंद जी, आप हमेशा इसी तरह खुश व सानंद रहें ऐसी हमारी शुभ-कामना है और जो आपने अपना बहुमूल्य समय इंटरव्यू के लिये दिया है उसके लिये सभी फेसबुक के साथियों की तरफ से आपको हार्दिक धन्यबाद...आल द बेस्ट फार योर फ्यूचर...बाई...बाई...

* फेसबुक पर जिन मित्रों को अपना इंटरव्यू देना हो वो कृपया अपना फुल परिचय देते हुये हमसे कान्टेक्ट करें...उनकी खिदमत करने के लिये भी हम तैयार हैं...वट दिस लिमिटेड ऑफर डिपेंड्स ओनली आन टाइम अवेविलिटी...

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