Wednesday 13 October 2010

जन्माष्टमी

आज जन्माष्टमी है..भगवान् कृष्ण का जन्मदिन. तो आओ, आप सबको मैं उनके जन्म के बारे में कहानी सुनाती हूँ...

करीब 5००० साल पहले मथुरा में उग्रसेन नाम के एक राजा राज्य करते थे. उनकी प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी और सम्मान देती थी. राजा के दो बच्चे थे..कंस और देवकी. उनका लालन-पालन बहुत अच्छी तरह से किया गया..दोनों बच्चे बड़े हुये और समय के साथ उनकी समझ में भी फरक आया. कंस ने अपने पिता को जेल में डाल कर गद्दी हासिल कर ली और राज्य करने लगे. वह अपनी बहिन देवकी को बहुत प्यार करते थे. और कंस ने देवकी का ब्याह अपनी सेना में वासुदेव नाम के व्यक्ति से कर दिया. लेकिन कंस को देवकी की शादी वाले दिन पता चला कि उनकी बहिन की आठवीं संतान से उनकी मौत होगी. तो कंस ने देवकी को मारने की सोची. किन्तु वह अपनी बहिन को बहुत चाहते थे इसलिये मारने की वजाय उन्होंने देवकी और वासुदेव दोनों को जेल में डाल दिया. वहाँ देवकी की कई संतानें हुयीं और सातवीं को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिनी की कोख से जन्म लेना पड़ा...इसीलिए जब कृष्ण जी का जन्म हुआ तो उनको सातवीं संतान करके बताया गया. जिस रात उनका जन्म हुआ था उस रात बहुत जोरों की आँधी चल रही थी और पानी बरस रहा था..भयंकर बिजली कौंध रही थी..जैसे कि कुछ अनर्थ होने वाला हो. जेल के सारे रक्षक सोये हुये थे उस समय और जेल के सब दरवाज़े अपने आप ही खुल गये..आँधी-तूफान के बीच बासुदेव कृष्ण को एक कम्बल में लपेटकर और एक टोकरी में रख कर चुपचाप गोकुल के लिये रवाना हुये जहाँ उनके मित्र नंद और उनकी पत्नी यशोदा रहते थे..उधर यशोदा और नंद के यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ. और जब वह यमुना नदी पार कर रहे थे तो पानी का बेग ऊपर उठा उसी समय वासुदेव की गोद में से कृष्ण का पैर बाहर निकला और पानी में लगा तभी यमुना का पानी दो भागों में बंटकर आगे बढ़ने का रास्ता बन गया.बासुदेव ने उसी समय उस बच्चे की अदभुत शक्ति को पहचान लिया. वह फिर गोकुल पहुँचे और कंस की चाल की सब कहानी नंद और यशोदा को बताई. नन्द और यशोदा ने कृष्ण को गोद लेकर अपनी बेटी को बासुदेव को सौंप दिया जिसे उन्होंने मथुरा वापस आकर जेल में कंस को अपनी आठवीं संतान कहकर सौंप दिया और कंस ने उस कन्या को मारने की कोशिश की पर सुना जाता है कि मरने के समय वह कन्या हवा में एक सन्देश छोड़कर विलीन हो गयी कि '' कंस को मारने के लिये आठवीं संतान गोकुल में पल रही है.'' लेकिन कंस ने सोचा की जिससे उनकी जान को खतरा था वह राह का काँटा हमेशा के लिये दूर हो गया है और अब उन्हें कोई नहीं मार पायेगा. कृष्ण जी नंद और यशोदा के यहाँ पले और बड़े हुये और उन्हें ही हमेशा अपना माता-पिता समझा. और बाद में उन्होंने अपने मामा कंस का बध किया और मथुरा की प्रजा को उनके अत्याचार से बचा लिया.

जन्माष्टमी सावन के आठवें दिन पूर्णिमा वाले दिन मनाई जाती है क्योंकि इसी रात ही कृष्ण जी का जन्म हुआ था. हर जगह मंदिरों में बहुत बड़ा उत्सव होता है..सारा दिन भजन-कीर्तन होता रहता है. कान्हा की छोटी सी मूर्ति बनाकर रंग-बिरंगे कपड़ों में सजाकर एक सोने के पलना में रखकर झुलाई जाती है. घी व दूध से बनी मिठाइयाँ खायी व बाँटी जाती हैं..घरों में लोग व्रत रखते हैं..कुछ लोग तो सारा दिन पानी भी नहीं पीते जिसे '' निर्जला व्रत '' बोलते हैं और रात के 12 बजे के बाद ही कुछ खाकर व्रत को तोड़ते हैं और कुछ लोग दिन में फलाहार खा लेते हैं..लेकिन नमक व अन्न नहीं खाया जाता इस दिन. दही और माखन कन्हैया की पसंद की चीज़ें थीं जिन पर वह कहीं भी मौका पड़ने पर चुरा कर उनपर हाथ साफ़ किया करते थे..और बेशरम बनकर सबकी डांट खाते रहते थे. तो इस दिन कई जगहों में लोग एक मटकी में दही, शहद और फल भर कर ऊँचे पर टाँगते हैं और फिर कोई व्यक्ति कान्हा की नक़ल करते हुये उस मटकी को ऊपर पहुँच कर फोड़ता है. कुछ लोगों का विश्वास है कि उस टूटी हुई मटकी का टुकड़ा अगर घर में रखो तो वह बुरी बातों से रक्षा करता है.

कृष्ण जी के बारे में जगह-जगह रास लीला होती है और झाँकी दिखाई जाती है..जिसमें मुख्यतया पाँच सीन दिखाये जाते हैं : 1. कन्हैया के जन्म का समय 2. वासुदेव का उन्हें लेकर यमुना नदी पार करते हुये 3. वासुदेव का जेल में वापस आना 4. यशोदा की बेटी की हत्या 5. कृष्ण जी का पालने में झूलना.
कुछ घरों में जन्माष्टमी का उत्सव कई दिनों तक चलता रहता है.

सभी मित्रों को जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर बधाई व ढेरों शुभकामनायें !

No comments:

Post a Comment