Wednesday 25 August 2010

फेसबुक पर रक्षाबंधन का डिनर और अतीत की एक घटना ( या दुर्घटना )...

दो अजीब बातों का ताल-मेल ???? हाँ, कुछ ऐसी ही बात है..एक फेसबुक पर मुलाकात है..दूसरी अतीत की वारदात है.

तो सुनिये सब लोग कि बहन का दिल तो टूक-टूक हो जाता है जब भाई लोग फेसबुक पर एक बहन के परोसे खाने की तस्वीर देख के लार टपकाते हैं और सचमुच में खा नहीं पाते हैं..खाना देखते हुये भी खाने से दूरी..कितनी लाचारी..कितनी मजबूरी..और शायद मुझे मन में कोसते भी होंगे सोचकर कि '' देखो कैसे खाने की चीज़ों को दिखा-दिखा कर मन जला रही है '' लेकिन अपने भाइयों के लिये रक्षाबंधन पर कुछ तो करना ही होता है बहन को सो मैंने सोचा कि सबकी तबियत हरी हो जायेगी..इसलिये डिनर देते समय मन खुशी से बड़ा फूला-फूला था..फिर जब महसूस किया कि ये बेचारे तो असली खाना चाहते हैं तो अफ़सोस हुआ और मन मुरझा सा गया. मन जलाने के उद्देश्य से पार्टी नहीं दी थी, प्यारे भाइयों..मैंने तो सच्ची श्रद्धा से आप सबको निमंत्रित किया था..किन्तु यहाँ फेसबुक पर पार्टी की कहानी अलग टाइप की होती है..इसे आप लोग अपनी किस्मत कह सकते हैं..और मन जलाने वाली बात से अपने बचपन से जुड़ी वो अतीतकाल की सच्ची स्टोरी भी याद आ गयी जब भगवान के यहाँ से मेरी काल आते-आते रह गयी..ये स्टोरी कोई मजाक की बात नहीं है..हाँ... तो जब मैं करीब ११ साल की थी तो मेरी माँ अपने मायके मेरे बीमार मामा को देखने गयी मुझे व मेरे छोटे भाइयों को भाभी के हवाले छोड़कर.

और एक दिन मुझसे तीन साल छोटे भाई ने स्कूल से आकर मुझसे खाना माँगा..मैं मूड में नहीं थी..मैंने कहा कि अपने आप खाना ले लो तो उसने रसोई में जाकर फौरन चूल्हे की जलती लकड़ी उठाई और मेरी तरफ लपका..भाभी मुँह बाये ये सब देख रही थी..तो मुझे कुछ खतरे का आभास हुआ..सोचा कि इसके इरादे कुछ ठीक नहीं हैं..शायद ये मुझे दहकाना चाहता है..और वाकई में सीरिअस है ..ऐसा आभास होते ही मैं सर पर पैर रख कर भागी अपनी जान बचाने को..मैं चिल्लाई कि भाभी बचाओ मुझे...भाभी ने बहुत रोकना चाहा उसे पर उनकी नहीं चली..उसने नहीं सुनी उनकी..वो दुष्ट अपनी जिद पर अडिग रहा और मुझे ललकारता रहा कि आ आज तुझे मार डालूँगा..मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे..बिल्ली भाग चूहा आया वाला खेल जैसे वहाँ चालू हो गया..उस पर जुनून चढ़ा था कि आज जीजी को खतम करके रहूँगा..अपने को बचाने के चक्कर में मेरे दिमाग में तरकीबें बहुत फास्ट आने लगीं...मैं ऊपर छत पर भागी अपनी जान लेकर..तो वह भी ऊपर आ गया फुर्ती से..और एक दीवार के चारों तरफ हम दोनों भाई-बहन परिक्रमा करने लगे भागते हुये एक दूसरे के पीछे..अब हँसी आती है..लेकिन उस दिन की सोचती हूँ तो लगता है कि जैसे वो घटना कुछ दिन पहले ही घटी हो..मन में उन पलों को याद करती हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं..मैंने राम-राम जपना शुरू कर दिया कि लगता है कि अब नहीं बचने वाली मैं आज ये मुझे भस्म कर देगा..उस भाई की गुस्सा बहुत तेज थी..मुझसे ३ साल छोटा था तो क्या हुआ..भाई जब सताते हैं तो दुष्टता पे उतर आते हैं..ये जाना-माना सत्य है..हर बहन का निजी अनुभव होता है इन शैतानो का..हा हा...

खैर, किसी तरह मैं भाग कर घर के सामने वाले पंडित जी के यहाँ छुप गयी जाकर...कहा, '' चाचा-चाची मुझे अपनी कोठरी में बंद कर दो..आज मुझे अशोक मार डालेगा अगर तुमने मुझे नहीं छुपाया यहाँ कहीं..बात बाद में पूछना..मैं उसे चकमा देकर आई हूँ..और शायद वो सूंघता हुआ आता ही होगा यहाँ, और बाहर से साँकल डाल कर ताला भी डाल लेना..वरना तुम्हारे यहाँ से आज एक लाश निकलेगी. '' चाचा-चाची ने कहा कि, '' हाय-हाय लल्ली ऐसी बुरी बातें न कहो अपने लिये, बुरा हो तुम्हारे दुश्मनों का ''..लेकिन मुझे अपनी जान की पड़ी हुई थी और उनकी बेफजूल की बातों का जबाब देने की फुर्सत नहीं थी. उनसे मैंने प्रार्थना की कि वो मुझे जल्दी से अपनी कोठरी में बंद कर दें. उन्होंने मुझे कमरे में बंद करके बाहर से साँकल मारी और ताला डाल दिया और मैं डर के मारे एक कोने में दम साध के बैठ गयी..तभी भाई भी आ गया उनके यहाँ और पूछ-ताछ करने लगा कि मैं उधर तो नहीं आई वो लोग सकपका के बोले, '' नहीं लल्ला, हमने तो उसको नहीं देखा आज लेकिन लल्ला बात क्या है. '' तो भाई की आवाज़ आई, '' जरा ये कोठरी तो खोलो वो इसमें शायद छुपी होगी. '' उन लोगों ने कहा कि कोठरी में कोई नहीं है उसमे ताला पड़ा है..फिर भी उसने खुलवा ली और मैंने जल्दी से वहाँ तह किये बिस्तरों के पीछे अपने को छुपा लिया और मन में सोच लिया कि बस अब आखिरी घड़ी आ ही गयी अब ये मेरा इंतकाल करके ही दम लेगा...सोचने लगी कि ये एक राक्षस है जो भाई के रूप में पैदा होकर मेरी जान लेना चाहता है..और मुझे खुद अपनी रक्षा के लिये जान बचाने भागना पड़ रहा है इधर से उधर..अब तो राम नाम सत्य ही समझो मेरा...उसने वहाँ ताका-झाँका और तसल्ली करके चला गया...उन लोगों ने बाहर के दरवाजे को बंद करके कोठरी खोली और मुझसे सब कहानी पूछी कि क्या हुआ..मैंने रोते-रोते सब बताया कि मेरी अम्मा तो मामा के यहाँ गयी हैं और इसने मुझे दुखी करना शुरू कर दिया है..तो वो मेरी कहानी सुनकर सुन्न से हो गये..मुझे शाम तक छुपना पड़ा उनके यहाँ अपनी जान बचाने के लिये..फिर रात में जब पिता व बड़े भाई आये तो मैं घर लौटी..और अगले दिन बड़े भाई ने उसको मुर्गा बनाया..हा हा..हाँ, ये बात भी बिलकुल सच है..वो केवल बड़े भाई से ही डरता था..तब उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हुई और गुस्सा शांत हुआ.

तो सारांश ये है कि भाई उम्र में छोटा हो या बड़ा कुछ कहा नहीं जा सकता सब ही समय-समय पर अत्याचारी होते हैं, रुआब झाड़ते हैं, आलसी होते हैं..बहनें घर का काम करती हैं...माँ की डांट खाती हैं इन भाइयों के लिये...उनकी फटकार और दुत्कार सुनकर दांत किलस कर रह जाती हैं...लेकिन...लेकिन हम बहनें फिर भी अपनी आदत से मजबूर हैं..अपने भाइयों का भला मनाती हैं..उनकी धौंस में रहती हैं..कभी-कभी इतना रुआब रखते हैं कि अकल काम करना बंद कर देती है..थर-थर भी कांपना पड़ता है जब आर्डर देते हैं...वरना धमकी मिलती है..हर समय अपनी अकलमंदी झाड़ते रहते हैं और हुकुम चलाते हैं..कभी चोटी खींचना और कभी चिढ़ाना आदि तो मामूली बाते हैं. भाइयों से किसी मुसीबत के समय अपनी रक्षा करवानी हो तो उस समय के इंतज़ार में हम बहनें ये सब सहती रहती हैं..सहना पड़ता है..लेकिन इस कलियुग में तो अधिकतर बहनें ही उनकी रक्षा करती नजर आ रही हैं..समय आने पर उन लोगों का कहीं पता नहीं लगता या बहाने कर देते हैं. खैर, अब लाओ ये भी बता दूँ कि आज को वो छोटा भाई जब भी उस दिन की घटना को याद करता है तो बड़ा शर्मिंदा महसूस करता है..अक्सर कहता रहता है, '' हाय, अगर उस दिन जीजी तुम्हें मेरे हाथों से कुछ हो गया होता तो मैं कभी भी उस पाप से मुक्त ना होता और अपने को माफ नहीं कर पाता. ''

तो मेरा कहना है कि बिधि के बिधान को इस संसार में कोई भी नहीं टाल पाया है..मेरा राम-नाम सत्य होते-होते बचा...मेरी किस्मत में और जीना लिखा था तो मैं जिन्दा हूँ और आज को आप सभी के साथ फेसबुक पर अपने हाथों से डिनर बनाकर खिलाने का लुत्फ़ उठा रही हूँ..अब ये ना कहियेगा कि डिनर दिखा के दिल जला रही हूँ..हा हा हा हाफेसबुक की पार्टी होगी तो खाना देखने ही के लिये तो होगा..तो फीस्ट योर आइज़ ( आँखें ) वाली बात होगी ही..जैसा कि फेसबुक के मेरे एक बुद्धिमान भाई का भी कहना है कि '' न इस खाने को सूंघ पाओ, न चाट पाओ और न ही खा पाओ ''..अब इतने बुद्धिमान इंसान ने ये कहा है तो सही ही है..( ना भी कहते तब भी यही सही होता..हा हा ) लेकिन इसमें अपना भी तो कोई कसूर नहीं. फेसबुक की पार्टियों में यही तो फेस करने की समस्या है..हम जो अपने गरीबखाने में जुटा सके वो सब आप भाइयों के सामने हाज़िर कर दिया..अब दिक्कत है तो बस मुँह में ले जाने की..हा हा हा हा..आप सभी को ढेरों शुभकामनायें.

2 comments:

  1. जान बची और लाखों पाए...
    भाग के शन्नो लन्दन जाए..

    एकदम सच्ची तस्वीर खिंची है कुछ नटखट भाइयों की...

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  2. मनु जी, आपका आशीर्वाद मिला..जिसका बहुत धन्यबाद.

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