Friday 20 August 2010

देश में नयी क्रांति का आभास ?

अगर ईमानदारी से कहूँ तो मुझे कभी भी राजनीति में इतनी दिलचस्पी नहीं रही..लेकिन पता नहीं क्यों जिस देश में मैंने जन्म लिया और दूर बैठ कर उस देश के लोगों की बढ़ती हुई समस्याओं के बारे में जरा भी सुनती हूँ तो मन विन्हल हो जाता है..बहुत दुख होता है सोचकर कि अंग्रेजों के हाथ से देश छुड़ाकर उस देश की सरकार या नेताओं ने अपने ही देश के लोगों को अपनी गंदी करतूतों से गुलाम बना दिया...हर जगह उनकी ही तूती बोलती है.

उनके हाथों में देश का वो हाल हो गया जैसे कि '' आसमान से गिरे तो खजूर में अटके '' कहने का मतलब कि अंग्रेजों से छुट्टी पायी तो देश की अपनी सरकार ने नाक मे दम कर दिया और जनता को गुलाम बना लिया. भारत में सरे आम भ्रष्टाचार की वजह से न जाने कितनी समस्याओं का जन्म हुआ है...देश को तरक्की पर पहुँचाने वालों के हाथ की बागडोर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है. सुनने में आया है कि करीब 90 % अफसर / बाबू और नेता लोग बेईमान हैं..जो अपना पेट भर कर चैन की डकारें लेते हैं..और वो कहते हैं ना कि जब किसी बात की हद हो जाती है तो जुनून अपने आप आ जाता है..और जब बढ़ता है तो कुछ होकर ही रहता है...जब नदी में बाढ़ आती है तो उसे रोकने का इंतजाम करना होता है..जब इंसान खाना जरूरत से अधिक खा ले तो बीमार हो जाता है या बेचैनी बढ़ जाती है तो आगे से उसके बारे में सावधानी बरतनी होती है..उसी प्रकार से ऐसा महसूस हो रहा है कि देश में बढ़ती हुई बुराइयों में उफान आ रहा है और हर उम्र के लोगों के दिल में खलबली मची है कि कब और किस तरह से इनका अंत किया जाये. खाली देश सुधार की बातें करके हाथ पर हाथ रखकर बैठने से तो काम नहीं चलने वाला...जब-जब किसी बुराई का अंत करना होता है तब क्रांति की हवायें चलने लगती हैं. तो अब खासतौर से भारत में युवा पीढ़ी के मन में जो आक्रोश बढ़ रहा है उसकी गर्मजोशी की हवा यहाँ बैठे हुये ही महसूस कर सकती हूँ ..और अब वह आग का रूप धारण करती हुई दिख रही है. लगता है कि अब कुछ होकर ही रहेगा..शायद एक नयी क्रांति का जन्म..जिसका सभी को आभास हो रहा है लेकिन कब, कौन और कैसे इसकी शुरुआत करेगा..कौन इसमें आगे बढ़कर इस पावन यज्ञ में पहली आहुति डालेगा मतलब कि एक संगठन बनाकर किसी सुधार को करने की पहली प्रतिक्रिया देगा..यह देखने का सभी को इंतज़ार है. गंदी राजनीति ने देश में पता नहीं कितने रोगों को जन्म दिया है और अब वह गंभीर बनकर विकृत रूप धारण कर चुके हैं..जो जनता से सहन नहीं हो पा रहा है..देश वासियों में उत्तेजना बढ़ती जा रही है इन बुराइयों के विरुद्ध. जिंदगी के हर क्षेत्र में सुधार के लिये आंदोलन की जरूरत पड़ी है..तभी दशा सुधरी है..वर्ना समझने वालों के कान पर जूँ नहीं रेंगती. हम आजादी के एक साल और आगे निकल आये हैं और इस आजादी का फायदा सबने तरह-तरह से उठाया..किसी ने अपना घर बनाया किसी को बर्बाद करके तो किसी ने नफरत की आग में जलकर अपनों का ही घर तोड़ा. दुश्मन से पिंड छूटा तो खुद अपने ही देश में एक दुसरे के दुश्मन बन बैठे..सब अपने-अपने तरीके से लगे रहे सोचने में..स्वार्थी बनकर नफरत की ज्वाला भी भड़कने लगी..मिलजुलकर देशवासियों ने भी कोई ऐसी भावना नहीं रखी कि देश की परेशानियों का निराकरण हो सके..धीरे-धीरे देश अनैतिकता, आतंकवाद, गरीबी, अत्याचार, भ्रष्टाचार से दूषित होता गया.

यह बात सही है कि हम अपने मुँह से ही कहकर गर्वित होते रहते हैं भारतीय होने पर..लेकिन अपने ही देश में उसके प्रति अनर्थ होने से बचा नहीं पाते..सालों हो गये फिर भी..तो कहाँ से हम आजाद हैं..चेहरा सचाई छुपा नहीं सकता. सी एम, पी एम सब भ्रष्ट उनके चमचे भ्रष्ट और चमचों के चमचे भ्रष्ट..वो जनता को देते कष्ट..कुछ दुष्ट तो कुछ महा दुष्ट..अपनी जनता को करते हैं रुष्ट..जनता अपनी सरकार को इष्टदेव का स्थान देती है लेकिन सरकार अपनी आँखें मूंदकर बिल्ली की तरह दूध पीती रहती है कि उसे कुकर्म करते हुये कोई देख नहीं पायेगा..सरकार की नीति है अपना पेट भरो और सबको आड़ में करो..जो पैसा देते हैं टैक्स का वो टापते रह जाते हैं और किसी का सहारा न पाकर सब कुछ सहते जाते हैं..बिजली के बिना देश अन्धकार में डूब रहा है, पानी की समस्या से अलग त्राहि-त्राहि..और गरीबी, मजबूरी, मँहगाई, बेरोजगारी, लाचारी से चोरी, लूट-खसोट की समस्यायें..अबलाओं तक का अपहरण हो रहा है. ये सब क्या हो रहा है अपने भारत देश में सोचकर दिमाग बौखला उठता है..क्या इसे ही आजादी कहते हैं..ये तो आजादी का नाजायज़ फायदा उठाना हुआ..और अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार कर बिलबिलाना हुआ.

लेकिन कब तक चलेगा यह सब ? कब तक सहेंगे लोग ? क्या यही आजाद देश का सपना था अपने बापू का ? लगता है कि शांति के लिये अब दूसरी क्रान्ति आने वाली है..जिसकी आँधी बबंडर का रूप धारण कर रही है...देश अब अपनों से ही गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है...अपने देश की गरिमा बनाये रखना, उस अधूरी आजादी को पूर्ण रूप देना अब इस देश के नौजवानों का काम है..व साथ में सभी उम्र के लोग अपनी क्षमता अनुसार इस यज्ञ में योगदान दें. स्वतंत्रता दिवस पर केवल तिरंगा लहरा देने भर से काम नहीं चलने का.

No comments:

Post a Comment