Wednesday 13 October 2010

बेबो जी, हैप्पी बर्थडे

( अभिनेत्री करीना का जन्म दिन 21. 09. 2010 )
'' बेबो जी, हैप्पी बर्थडे ! भगवान आपको और भी फ्लोप्स दे...''
'' तू सैफ के ही साथ रहे तो ज्यादा अच्छा है..अपनी फिल्मो से आम जनता को पागल ना बनाये..आम आदमी का पैसा ना खाये फ्लोप्स देकर..वैसे ही एक तो आम आदमी मँहगाई की मार से अधमरा हो चुका है.''
पढ़कर बड़ा विचित्र लगा मुझे..गलतफहमी ना होने पाये आप सबको मेरी तरफ से इसलिये जल्दी से बता दूँ कि ...
अभी-अभी जो कुछ आपने ऊपर पढ़ा बेबो के बारे में वो मेरा अपना कहा या लिखा नहीं है...मेरी तोबा मैं कैसे जुर्रत कर सकती हूँ..ये तो फेसबुक की मेहरबानी है कि वहाँ पर मुझे करीना के जन्म दिन पर एक मित्र के लिखे आलेख में किसी के कमेन्ट में ये पढ़ने को मिला..और मैं चकरा गयी...लेकिन करीना पर आलेख होने से मैं भी अपनी ड्यूटी यानी कमेन्ट करके खिसक आयी चुपके से. मैंने लिखा था:
'' करीना को जन्म दिन की मुबारकबाद..आलेख पढ़ा बहुत अच्छा है..और उनके बारे में तमाम जानकारी मिली. आपकी समयानुसार लेख प्रकाशन और विविध जानकारी की क्षमता बहुत आश्चर्यजनक है.''
अब मेरा कमेन्ट पढ़कर बेबो को बद्दुआ देने वाले को चैन नहीं पड़ा तो अगले कमेन्ट में मुझसे बातचीत जारी कर दी..शायद अपने मन की भड़ास निकालने के लिये अपनी बातों के चक्कर में फँसा लिया. ये आलेख लिखने वाले मित्र के मित्र हैं जिनका चित्र देखकर उनके बारे में पता लगाया कि वह काफी यंग हैं और फिल्मो पर आम आदमी को पैसा झोंकते हुये देखना इनसे गवारा नहीं होता..यानी इन्हें बौखलाहट होती है..यानी ठीक नहीं समझते.
तो हमारी बातचीत चालू हो गयी...
मित्र के मित्र : '' बेशक लेख बहुत अच्छा लगा मुझे भी लेकिन क्या फायदा इस सबका..लोग और पागल हो जायेंगे..और अधिक जायेंगे सिनेमा हाल..इतनी मँहगाई में और पैसा फूँकेंगे इनकी पिटी हुई फिल्मो पर..यानी पैसों की बर्बादी.''
मैं : '' मेरे लिये तो लेख से ही जानकारी मिल जाना काफी है फेसबुक पर..बाकी बात रही फिल्मे देखने की तो उसके लिये अधिक समय नहीं मिलता और ना ही इतनी तमन्ना रही अब..और अगर देखना भी चाहे कोई तो घर बैठे ही डी वी डी देख सकते हैं किसी फिल्म की..यही लोग अधिकतर करते हैं.''
मित्र के मित्र : '' लेकिन वो डी वी डी देखने के लिये भी तो उसे पैसे देकर खरीदना पड़ता है.''
मैं : '' तो क्या आप फिल्मों पर अपना पैसा बिलकुल नहीं खर्च करते क्या..तब तो आपकी किफायतमंदी की तारीफ़ करनी पड़ेगी..चलो ठीक भी है और भी तो फ्री मनोरंजन के साधन हैं..फेसबुक पर म्यूजिक सुनो फिर..और वीडियो देखो फेसबुक पर.''
मित्र के मित्र : '' शन्नो जी, यहाँ पर मैं बात अपने मनोरंजन की नहीं कर रहा हूँ. यहाँ मैं आम आदमी की बात कर रहा हूँ. इस मँहगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है..तो लोग क्यों अपना पैसा बर्बाद करते हैं करीना की फ़िल्में देखकर. लेकिन अगर देखनी हैं तो आमीर खान की देखें..कम से कम पैसा सही जगह तो लगे ना.''
मैं : '' आमीर की फिल्मे हों या करीना की..पैसा तो व्यर्थ दोनों पर ही होगा..क्या मिलेगा आमीर की फिल्मों से..सिर्फ इसके कि वो और अमीर हो जायेंगे और हम और गरीब...अपने लिये तो करीब-करीब सब एक से ही हैं कोई पक्षपात नहीं करने का..और फिर इतनी दूर रहते हुये इन लोगों का ध्यान ही नहीं रहता मुझे और ना ही इनकी फिल्मों का..भारत में तो लोग फिल्मो को ही अधिकतर मनोरंजन का साधन समझते हैं..कोई नयी फिल्म का नाम सुना तो क्रेजी हो जाते हैं..दुनिया में रियल लाइफ भी कोई चीज है..है ना ?''
मित्र के मित्र : '' बिलकुल, बिलकुल..मैं आपकी बात से सहमत हूँ. ये फिल्म, ये नाटक, ये सब एक हद तक ठीक है..आम आदमी की क्या हालत है पता है आपको ? रात को इनके घर पर चूल्हा जलाने को पैसा नहीं होता...लेकिन फिल्म देखने के लिये होता है..अब आप ही तय करिये कि क्या होगा हमारे देश का.''
मैं : हाँ, आपकी इस बात से मैं भी बिलकुल सहमत हूँ, एकमत हूँ..आपने सही कहा इस मुद्दे पर. लोग भ्रष्टाचार के बारे में कहते हैं कि सरकार गरीबों का खून चूसती है और पब्लिक का जीना मुश्किल हो रहा है मँहगाई और रिश्बतखोरी से लेकिन ये जो फ़िल्में आग लगाती हैं घरों में तो इनके बारे में क्या हो ? इनके लिये तो फिल्म इंडस्ट्रीज वाले ही दोषी हैं और खुद पर काबू न रख पाने वाली जनता भी..कितने ही गरीब हों लोग अपनी पाकेट में खुद छेद करते हैं फिल्मों पर पैसा बहा कर..जरूरत की चीजों पर हाय पड़ी रहती है लेकिन फिल्मों का चस्का है..यहाँ तक कि भिखारी भी..ये सब कल्पना नहीं..बल्कि हकीकत है..लेकिन आप या हम जैसे कुछ लोगों के गला फाड़कर चिल्लाने या समझाने से कोई फायदा नहीं होने वाला..लोगों को खुद खोलना होगा अपनी अकल का ताला. हमारे समझाने से दुनिया कहेगी कि..अजी आपको क्या तकलीफ..क्या मतलब हमसे..माइंड योर ओन बिजिनेस..अपना रास्ता नापिये..और हम अपना सा मुँह लेकर रह जायेंगे..किस-किस को समझायेंगे..बोलो ?''

बात कहाँ से कहाँ पहुँच सकती है..अब तो आपको अंदाजा हो गया होगा..है ना ? हमारी पर्सनल ओपिनियन ना पूछें बल्कि आप सब बतायें कि क्या उपाय है गरीबों को फिल्म देखने से रोकने के लिये ताकि उनका पैसा उनकी खास जरूरतों पर लगे, या फ्लॉप फिल्मो पर बंदिश का या फिल्मों को बनाने के धंधे को कम करने पर ताकि आम जनता को अधिक प्रलोभन ना हो इसके चक्कर में पड़ने का ? क्या कोई सुझाव है जो मुझे अब तक ना सूझा कोई...

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