Wednesday 13 October 2010

नारी जीवन सुलभ नहीं

नारी चाहे कितना पढ़-लिख गयी हो किन्तु अब तक उसकी परिस्थितियाँ भारतीय समाज में अधिक नहीं सुधरीं हैं..उसे नीचा दिखाने में समाज व ससुराल वाले अब भी पीछे नहीं रहते..और फिर कहने वाले लोग दुहाई देते हैं कि आज की नारी बहुत पढ़ी-लिखी है, सशक्त है और अपना भला-बुरा खुद सोच सकती है. किन्तु कहने भर से क्या होता है..कोई उसे सशक्त बनने पर टोकता रहे तो कैसा आत्म विश्वास ? वो तो सब काफूर हो जायेगा. सोचने की शक्ति कोई छीन ले तो अपना भला-बुरा क्या सोच पायेगी.
अधिकतर नारियाँ अपने पारिवारिक कर्तव्यों की तरफ से विमुख नहीं होती हैं..फिर भी न जाने क्यों भारत में उन्हें पराई बेटी कहकर रखा जाता है. और चाहें कोई लड़की विदेश में भी पति के साथ रह रही हो..भारत जाने पर उसे सारे कर्तव्यपालन करने व संस्कारयुक्त होने पर भी न जाने क्यों कुछ ससुराल वाले नीचा दिखाया करते हैं और वह तिलमिलाकर रह जाती है. इसमें अकेली नारी अपने लिये क्या कर सकती है जब तक कि इस समस्या को कुछ जानपहचान वाले न सुलझायें. किन्तु लोग दूर से ही सिर्फ कुछ सहानुभूति दिखाकर अपना कर्तव्य पूरा कर देते हैं. समझाना कोई नहीं चाहता सोचकर कि '' अरे कौन किसी की बुराई-भलाई में पड़े. '' जहाँ समाज की ऐसी मानसिकता है तो नारी की यही स्थिति रहेगी. कुछ लोग बिना दहेज की लड़की ले लेते हैं फिर दहेज ना लेने की बात अक्सर उठाकर उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं..उसे ताने देकर व उसके साथ मनमानी करके..जैसे उसे ब्लैकमेल कर रहे हों. कुछ गरीब, अशिक्षित व मजबूरी की मारी नारियों के जीवन में तो और भी कई भयानक और बदसूरत पहलू होते हैं. जिस तरह के काम करके उन्हें अपना और अपने बच्चों का पेट पालना पड़ता है उन पर भी बिचार करने की जरूरत है.
नारी के जीवन का ये सच बहुत कड़वा और दर्दनाक है..लेकिन वाकई में नारी जीवन सुलभ नहीं. कितनी शर्मनाक बात है कि हम आज औरत के अधिकार की बात करते हैं कि '' औरत के भी अधिकार होते हैं '' कोई बताये कौन से अधिकार ? माता-पिता के घर में पराया धन समझी जाती है. क़ानून बनने के बाद भी वह पैत्रक सम्पति लेने पर जोर नहीं रखती क्योंकि उसे समझाया जाता है कि उसके भाई ही उसके माता-पिता की देखभाल करेंगे और उसे भी उसकी ससुराल से जरूरत आने पर विदा कराके लायेंगे और मायके में उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखेंगे. ये सब ढकोसलेबाजी है. आजकल ना तो भाइयों का उतना लगाव रहा है बहनों से और ना ही भाई लोग पहले के भाइयों की तरह उन्हें विदा कराने जाते हैं..बल्कि कई जगह तो उलटे बहिनें ही अपना पैसा खर्च करती हैं उन पर और माँ-बाप को भी रखती हैं. बेटियों को बचपन से ही समझाया जाता है कि जब भी और जहाँ भी वह शादी के बाद जायेंगी तो वही घर उनका अपना होगा. लेकिन इस समाज में यह एक काले धब्बे की तरह सच है जो छुपाया नहीं जा सकता कि कितनी जगह नारी पर पढ़ी-लिखी होने के वावजूद भी अत्याचार होता है. एक लड़की अपने माता-पिता का घरबार किसी दूसरे परिवार के आश्वासन पर छोड़ कर आती है. एक खूँटे से खोलकर उसे दूसरे खूँटे से इस समाज के बनाये हुये नियमों पर लाकर बाँध दिया जाता है..एक नये संसार में नये लोगों के बीच यह सोचकर और भरोसा करके कि उसका पति उसकी हर बात में रक्षा करेगा. किन्तु यह अधिकतर सच नहीं होता. और अगर पत्नी में सभी गुणों के होने पर भी पति की नीयत बदल जाये तो वह क्या करेगी ? औरत मजबूरी में कितना सहती है ससुराल वालों के लिये..अपने पति के लिये कितना कुछ झूठ बोल जाती है. कुछ पति व दामाद बहुत स्मार्ट होते हैं..औरों के सामने बहुत चतुराई से व्यवहार करके उन लोगों का दिल जीत लेते हैं और सच को झूठ साबित कर देते हैं..फिर भी शादी की गाड़ी खिंचती रहती है.
नारी को एक ऐसा अभिशाप बना रखा है अपने समाज में कि उसे अपनी स्थिति का खुद ही पता नहीं कि उसका वजूद क्या है. शादी के पहले माँ-बाप के घर को वह अपना कहती है तो उसे बराबर अहसास कराया जाता है कि वह पराया धन है..फिर भी उसकी अकल में नहीं आता. घर-भर का ख्याल रखना, पढ़ना-लिखना, घर का काम-काज सीखना व अच्छे संस्कारों को सीखना ताकि उसे अपने जीवन में कोई समस्या ना हो और ससुराल में भी उसे सम्मान मिले. लेकिन फिर पति के यहाँ आने पर अगर सुनना पड़े कि '' मैंने तेरे बाप का कर्जा नहीं खाया..तू क्या अपने बाप के यहाँ से ये घर लाई है या वो लाई है '' आदि कहकर उसे परायेपन का अहसास दिलाया जाता है..तो उसे पति के यहाँ कैसे अपनापन लग सकता है ? कितने समझौते करते हुये भी शादी एक ऐसा कड़वा घूँट है कुछ औरतों के लिये कि वह चाहें कितनी भी कोशिश करे ससुराल में सबको खुश करने को तो भी नहीं कर पाती है..सब सहन करती हुई शादी के बंधन को एक कड़वे घूँट की तरह ना ही उसे घूँट पाती है और ना ही थूक पाती है..और आपसी रिश्तों की कटुता बढ़ती जाती है. लेकिन पति का घर छोड़ कर उन ज्यादतियों से बचकर औरत कहाँ जाये ? ये सब वह जान बूझ कर क्यों सहती है ? एक दिन जिस इंसान का हाथ पकड़ कर वह आती है और जो शादी के समय उसका संरक्षण करने का दावा करता है बाद में उसके ही हाथों से मार खाती है..जिस मुँह से वह वचन लेते हैं अग्नि को साक्षी मानकर साथ निभाने का उसी मुँह से वह बाद में पत्नी को किलस कर गालियाँ देकर उसे कोसते हैं और उसका अपमान करते हैं. कुछ पुरुष उन्हें घर वालों के संग मिलकर भी सताते हैं.
एक समय वह था जब नारी को हर यज्ञ में बराबर का स्थान और घर में गृह-लक्ष्मी का दर्ज़ा दिया जाता था..और उससे हर बात में सलाह मशवरा लेकर काम किया जाता था..और सम्मान दिया जाता था. और अब कई पुरुष अपने उन रटे-रटाये अग्नि के फेरे वाले वचनों को भूल कर पत्नी से चुरा-छिपा कर मनमानी करते हैं. और अगर कोई ताड़ ले उनके अत्याचारों को तो अपनी पत्नी के विरुद्ध कहानी गढ़ कर उस पर झूठे / मनगढंत दोषारोपण करके दूसरों की निगाह में उसे ही कसूरवार ठहरा देते हैं. और पत्नी अवाक सी रह जाती है. पुरुष अगर अकेले कहीं रहकर गुजर करते हैं तो उनपर उँगली नहीं उठाता कोई..लेकिन अगर एक औरत अकेली रहकर कहीं गुजर करना चाहे तो समाज उसका जीना मुश्किल कर देता है. किसी पुरुष से निर्दोषता से बात भी करे तो उसपर बदचलन होने का इलजाम भी लगते देर नहीं लगती. अगर सोचिये तो शायद यही कारण हो सकता है कि इस डर से पढ़ी लिखी औरतें भी अपने पति के संग उनकी ज्यादती सहते हुये एक गुलाम की तरह रहती है. और उनके माँ-बाप सोचते हैं कि उनकी लाडो बेटी ससुराल में रानी बनकर राज कर रही होगी..हाँ कुछ करती हैं जो किस्मत वाली होती हैं. जैसा मैंने कहीं सुना है कि कहीं तो किसान की बेटी भी सबको मुट्ठी में रखती है और कहीं जज की बेटी को भी पति के हाथों मार खानी पड़ती है. लेकिन हर हाल में अधिकाँश की दशा शोचनीय ही है. अगर समाज के तानों को झेलने की जिल्लत ना सहनी पड़े तो पता नहीं कितनी औरतें बिना शादी किये हुये आत्मनिर्भर होकर जीना पसंद करेंगी. शादी का ऐसा बंधन जो खुशी की वजाय उसके जीवन और अस्तित्व को झकझोर डाले तो इससे तो अच्छा है कि वह किसी तरह अपनी बसर खुद ही कर ले. इस दिखावे के बंधन का क्या फायदा जहाँ सच्चा प्यार व सहानुभूति मिलने की जगह उसका जीना ही दूभर हो जाये.
एक और खास बात है इस समाज की वो ये कि हर कोई लड़की यानि होने वाली बहू को तो स्वस्थ्य लेना चाहता है किन्तु लड़का अगर किसी बीमारी को भुगत रहा है तो कोई बात नहीं. लेकिन उस लड़की का क्या हो जिसका शादी के तुरंत बाद एक्सीडेंट हो जाये या किसी गंभीर बीमारी का शिकार बन जाये ? शायद उसे वो लोग भुगत लेंगे किसी तरह.
जिस देश में नदियों के नाम गंगा, जमुना, सरस्वती हैं..उसी देश की गंगा, जमुना, और सरस्वती जैसी बेटियाँ किसी की माँ, बहन, और पत्नी भी हैं..और शादी के पहले माता-पिता के यहाँ भार होती हैं फिर पति के यहाँ जाकर अपमान सहती हैं. नारी की स्थिति कितनी दयनीय बना कर रख दी है इस समाज ने..पति को छोड़कर समाज की निगाहों में निरंतर प्रश्न बनी रहेंगी या उनकी भूखी आँखों का शिकार बनती हैं. इसीलिए पति को छोड़कर बदनामी के भय को न सह पाने के डर से वह कोई भी ऐसा-वैसा कदम ना उठाकर सब कुछ चुपचाप सहती रहती है.

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