ओ, दुनिया बनाने वाले ये कैसी दुनिया बनाई
हम सब मिलते हैं मेले में सिर्फ लेने को विदाई.
सच में आप सब भी क्या सोचते होगें कि ये शन्नो कहाँ गायब हो जाती है अचानक कभी-कभी. क्या जरा देर को भी नहीं आ सकती थी फेसबुक पर...तो क्या बताया जाये भाई, कि कभी-कभी हर रोज की जिंदगी का ढर्रा भी एक सा नहीं रह पाता है..जैसे कि कल की ही बात लीजिये..आप सबने शायद सोचा होगा कि मैं फेसबुक पर अपना फेस चिपका कर कहाँ गायब रही सारा दिन..मेरी तरफ से कुछ हलचल नहीं हो रही है. यही सब तो सोचा होगा आप सबने, है ना ? तो मित्रों, जीवन में अक्सर ऐसा भी हो जाता है कि अचानक ही सब छोड़कर कहीं जाना पड़ता है. तो अब सोचती हूँ कि बता ही दूँ कि कल मुझे मरने की भी फुर्सत नहीं मिली..मतलब यह कि सारा दिन अत्यधिक व्यस्त रही..फेसबुक से दूर रहना पड़ा. मुझे बहुत अफ़सोस है बताते हुये कि परिवार के एक मित्र के मित्र का निधन हो जाने पर उनके फ्यूनरल यानि कि आखिरी क्रिया कर्म के अवसर पर जाना पड़ा. तो वहाँ पहुँचने के लिये सुबह-सुबह ही प्रस्थान करना पड़ा घर से और वो जगह काफी दूर होने से वहाँ पहुँचने में ही करीब चार घंटे लग गये.
वहाँ पहुँच कर देखा कि उनका शरीर, जो मृत्यु हो जाने के बाद हफ्ते भर से MORTUARY में रखा गया था, घर पर आ चुका था और घर में उनके परिवार व मित्रों की भीड़ लगी हुई थी. इस देश में शरीर के अंतिम संस्कार यानि कि जलाने या दफनाने के लिये उस जगह की बुकिंग करानी पड़ती है. सबसे पहले तो मृत्यु होने के बाद डॉक्टर से मरने वाले के नाम का लेटर लेकर उसके बाद जन्म, मृत्यु और शादी से सम्बंधित जो रजिस्ट्रार होता है उससे मरने वाले के लिए सर्टिफिकेट लेना पड़ता है. फिर फ्यूनरल डायरेक्टर से बात करके पैसा देकर उनके यहाँ कोल्ड स्टोरेज में शव को रखते हैं..और फिर जहाँ शव को जलाते हैं उस क्रेमेटोरियम वालों से वहाँ शव जलने के दिन को फिक्स किया जाता है. और हिंदू लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार उस दिन कोल्ड स्टोरेज में जाकर शव को कपड़े वगैरा पहनाते हैं और फ्यूनरल डायरेक्टर अपनी हर्स ( बड़ी काली कार ) में उस शव को लकड़ी के कफिन में रखकर उसके परिवार के घर लाते हैं.
तो जब हम लोग उनके घर पहुँचे वहाँ पंडित कफिन के पास बैठा श्लोक उच्चारण कर रहा था और उसके आदेश पर उन दिवंगत मित्र का बेटा फूल-अक्षत आदि से सारी विधि संपन्न कर रहा था. उस विधि के बाद अन्य हम सभी लोगों ने भी फूल-अक्षत व चन्दन चढ़ाकर उनको श्रन्धांजलि अर्पित की..फिर उनके कफिन को उनके बेटे व मित्रों ने अपने कन्धों पर रखकर उसे हर्स में रखा जो तमाम फूल मालाओं से सजी थी. और फ्यूनरल वाले उस गाड़ी को लेकर क्रेमेटोरियम को रवाना हुये...पीछे-पीछे हम सब लोग भी अपनी-अपनी कार में चल पड़े.
वहाँ पहुँचने के बाद बिल्डिंग के अंदर, जहाँ चर्च की तरह वातावरण लग रहा था, सबसे पहले पंडित ने संस्कृत में श्लोक पढ़े फिर उन मित्र के बेटे और नाती पोतों ने स्पीच दी. और उसके बाद हम सब अपना सर झुका कर और हाथ जोड़कर '' जय श्री कृष्ण '' कहकर बाहर आ गये. बाहर तमाम फूल रखे थे जो जान पहचान वालों के यहाँ से भेजे गये थे. कुछ देर वहाँ और रुकना पड़ा. पूछने पर पता लगा कि शव का कफिन एक बड़े चैम्बर में आटोमेटिकली खिसकते हुये पहुँच गया होगा और वहाँ २०० डिग्री सेंटीग्रेड की हीट होती है. बाहर उसके एक बटन लगा होता है जिसे बेटा ने दबाया होगा और चैंबर के अंदर अग्नि प्रज्वलित हो गयी..जैसे भारत में बेटा हाथ में जलती लकड़ी से अग्नि देता है. एक घंटे में शव कफिन के साथ जलकर राख बन गया होगा और वह राख अपने आप एक बड़े डब्बे में गिर गयी होगी जो घरवालों के पास एक निश्चित दिन पहुँचा दी जायेगी.
फिर वहाँ से उनके घर पर वापस आये जहाँ उनके घरवालों की तरफ से कुछ खाने का प्रबंध किया गया था सब आने वालों के लिये...खाकर और कुछ देर रूककर और बातचीत करने के बाद हम लोग वापस चल पड़े और काफी रात में यहाँ घर पहुँचे. मैं थकान से इतनी चूर थी कि फेसबुक केवल दिमाग में ही रहा. और आज सुबह इतने मेसेज थे मेल बाक्स में कि अब तक निपट नहीं पाई हूँ और उँगलियाँ सुन्न हो गयी हैं..अब ये असली स्टोरी पढ़कर आप लोग मेरी मजबूरी को जान गये होंगे. कल भी फिर वहीं सुबह-सुबह उतनी ही यात्रा करके हवन और पूजा में शामिल होने को पहुँचना है...ओम शांति !
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