सावन आया बरसने को आँगन नहीं रहा
घटाओं में बरसने का पागलपन नहीं रहा
आती है बारिश, लोगों के दिल भीगते नहीं
नीम और पीपल के पेड़ों पे झूला नहीं रहा.
यही अब सच है...शायद. किसी ने डूबे-डूबे मन से बताया कि भारत में सावन के समय अब उतना मजा नहीं आता जितना पहले आता था...वो बरसाती मौसम..पानी बरसने के पहले वो मस्त बहकी हवायें..जो बारिश आने के पहले आँधी की तरह आकर हर चीज़ अस्त-व्यस्त कर जाती थीं..कहाँ हैं ? होंगी कहीं...पागल हो जाते थे हम सब उनके लिये...अब भी उनके आने का सब इंतज़ार करते हैं....उनका सब लोग मजा लेना चाहते हैं...और वो बादल कहाँ हैं जो सावन में बरसने के लिये पागल रहते थे...सुना है कि अब उनके बहुत नखरे हो गये हैं..बहुत सोच समझकर आते हैं बरसने के लिये...साथ में बदलते हुये समय के रहन-सहन के साथ सावन मनाने की समस्या भी सोचनीय हो गयी है...उन हवाओं की मस्ती का आनंद लेने को अब हर जगह खुली छतें नहीं...खुले आँगन नहीं..कहीं-कहीं तो बरामदे भी नहीं..घरों के पिछवाड़े नहीं जहाँ कोई नीम या पीपल जैसे पेड़ हों जिनपर झूला डाला जा सके. जहाँ बड़ी-बड़ी इमारतें हैं वहाँ शहरों में बच्चे पार्क में खेलते हैं तो वहाँ खुले में स्टील के फ्रेम पर झूले होते हैं जिन पर प्लास्टिक की सीटें होती हैं...आजकल कई जगह टायर आदि को भी सीट की जगह बाँध देते हैं...सबकी अपनी-अपनी किस्मत...आज के बच्चे पहले मनाये जाने वाले सावन का हाल सुनकर आश्चर्य प्रकट करते हैं...और उन बातों को एक दिलचस्प कहानी की तरह सुनते हैं.
लो अब बचपन की बातें करते हुये अपना बचपन भी सजीव हो गया जिसमें..आँगन, जीना, छत, झूला, आम के बौर, और पेड़ों पर पत्तों के बीच छिपी कुहुकती हुई कोयलिया, नीम और पपीते के पेड़ ..जंगल जलेबियों के सफ़ेद गुलाबी गुच्छे..दीवारों या पेड़ों पर चढ़ती हुई गुलपेंचे की बेल जो अब भी मेरी यादों की दीवार पर लिपटी हुई है...हरसिंगार के पेड़ से झरते हुये उसके नारंगी-सफ़ेद महकते कोमल फूल...सबह-सुबह की मदहोश हवा में उनींदी आँखों को मलते हुये सूरज के निकलने से पहले जम्हाई लेकर उठना और अपने दादा जी के साथ बागों की तरफ घूमने जाना...पड़ोस के कुछ और बच्चों को भी साथ में घूमने जाने के लिये बटोर लेते थे...और उन कच्ची धूल भरी सड़कों पर कभी-कभी चप्पलों को हाथ में पकड़ कर दौड़ते हुये चलना..आहा !! उस मिट्टी की शीतलता को याद करके मन रोमांचित हो उठता है...आँखों को ताज़ा कर देने वाली सुबह के समय की हरियाली व उन दृश्यों की बात ही निराली थी. जगह-जगह आम के पेड़ थे कभी जमीन पर गिरे हुये आम बटोरना और कभी आमों पर ढेला मारकर उन्हें गिराना...उसका आनंद ही अवर्णनीय है. अपने इस बचपन की कहानी में एक खुला आँगन भी था..बड़ी सी छत थी जहाँ बरसाती हवायें चलते ही उनका आनंद लेने को बच्चे एकत्र हो जाते थे. और बारिश होते ही उसमें भीगकर पानी में छपाछप करते हुए हाथों को फैलाकर घूमते हुए नाचते थे...एक दूसरे पर पानी उछालते थे...और उछलते-कूदते गाना गाते थे...बिजली चमकती थी या बादलों की गड़गड़ाहट होती थी तो भयभीत होकर अन्दर भागते थे और फिर कुछ देर में वापस बाहर भाग कर आ जाते थे...फिर भीगते थे कांपते हुये और पूरी तृप्ति होने पर ही या किसी से डांट खाने पर अपने को सुखाकर कपड़े बदलते थे...छाता लगाकर बड़े से आँगन में एक तरफ से दूसरी तरफ जाना...हवा की ठंडक से बदन का सिहर जाना....और मक्खियाँ भी बरसात की वजह से वरामदे व कमरों में ठिकाना ढूँढती फिरती थीं...अरे हाँ, भूल ही गयी बताना कि ऐसे मौसम में फिर गरम-गरम पकौड़ों का बनना जरूरी होता था...ये रिवाज़ भारत में हर जगह क्यों है...हा हा...क्या मजा आता था.
अब बच्चे उतना आनंद नहीं ले पाते..उनके तरीके बदल गये हैं, जगहें बदल गयी हैं ना घरों में वो बात रही और ना ही बच्चों में. ये भी सुना है कि सावन का तीज त्योहार भी उतने उत्साह से नहीं मनाया जाता जितना पहले होता था...लेकिन हम लोगों के पास मन लगाने को यही सिम्पल साधन थे मनोरंजन के..क्या आनंद था ! तीजों पर झूला पड़ता था तो उल्लास का ठिकाना नहीं रहता था...पेड़ की शीतल हवा में जमीन पर पड़ी कुचली निमकौरिओं की उड़ती गंध..वो पेड़ की फुनगी पर बैठ कर काँव-काँव करते कौये...और पास में कुआँ और पपीते का पेड़ जिस पर लगे हुये कच्चे-पक्के पपीते...काश मुझे वो सावन फिर से मिल जाये...नीम के पेड़ पर झूला झूलते हुये..ठंडी सर्र-सर्र चलती हवा में उँची-उँची पैंगे लेना..अपनी बारी का इंतजार करना..दूसरे को धक्का देना...गिर पड़ने पर झाड़-पूँछ कर फिर तैयार हो जाना झूलने को...आज भी सब लोग आनंद लेना चाहते इन सब बातों का पर अब वो बात कहाँ ..लोग बदले बातें बदलीं..रीति-रिवाजें बदलीं..बस बातों में ही सावन रह गया है.
सावन अब किताबों और स्मृतियों में रह गया है।
ReplyDeleteयही अब सच है...शायद.
ReplyDeleteनमस्कार ! आपकी यह पोस्ट जनोक्ति.कॉम के स्तम्भ "ब्लॉग हलचल " में शामिल की गयी है | अपनी पोस्ट इस लिंक पर देखें http://www.janokti.com/category/ब्लॉग-हलचल/
ReplyDeleteयह लेखनी कैसी कि जिसकी बिक गयी है आज स्याही !
यह कलम कैसी कि जो देती दलालों की गवाही !
पद-पैसों का लोभ छोड़ो , कर्तव्यों से गाँठ जोड़ो ,
पत्रकारों, तुम उठो , देश जगाता है तुम्हें !
तूफानों को आज कह दो , खून देकर सत्य लिख दो ,
पत्रकारों , तुम उठो , देश बुलाता है तुम्हें !
" जयराम विप्लव "
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये लिंक पर जाकर रजिस्टर करें . http://www.janokti.com/wp-login.php?action=register,
अत्यंत सहज अभिव्यक्ति !स्पष्टवादिताहै.अच्छा लगा आपका ब्लॉग !
ReplyDeleteसमय हो तो पढ़ें
मीडिया में मुस्लिम औरत http://hamzabaan.blogspot.com/2010/07/blog-post_938.html
nice blog. u have bright future in blogging
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
ReplyDeleteइंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक साथी यहां पधार सकते हैं - http://gharkibaaten.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteब्लागजगत पर आपका स्वागत है ।
किसी भी तरह की तकनीकिक जानकारी के लिये अंतरजाल ब्लाग के स्वामी अंकुर जी, हिन्दी टेक ब्लाग के मालिक नवीन जी और ई गुरू राजीव जी से संपर्क करें ।
ब्लाग जगत पर संस्कृत की कक्ष्या चल रही है ।
आप भी सादर आमंत्रित हैं,
http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/ पर आकर हमारा मार्गदर्शन करें व अपने सुझाव दें, और अगर हमारा प्रयास पशंद आये तो हमारे फालोअर बनकर संस्कृत के प्रसार में अपना योगदान दें ।
धन्यवाद
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
प्रिय मित्रों,
ReplyDeleteआपके स्नेहभाव और शुभकामनाओं से पूर्ण टिप्पणियों को पढ़कर मैं भाव विभोर हो गयी...आप सब को भी मेरी शुभकामनायें और मेरा आभार सहित धन्यबाद.
इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteहरिशझरिया जी, एवं संगीता जी इस आलेख को पसंद करने के लिये आपका हार्दिक धन्यबाद...
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