Thursday 22 July 2010

फेसबुक पर अपनों का पागलखाना

फिलासफाना नजरिये से देखिये तो यह दुनिया एक पागलखान ही तो है..जहाँ हर तरह के पागल भटकते हुये नजर आयेंगे...ऐसा ही कुछ यहाँ फेसबुक पर भी देखने में आया...और तब मन में बिचार आया कि यदि कोई ऐसी जगह बनाई जाये जहाँ सभी तरह के पागल एक छत के नीचे एकत्र होकर अपने पागलपन की बातें शेयर कर सकें तो कितना अच्छा हो...

तो फेस बुक के प्यारे साथियों, आप सबके लिए एक विशेष हर्ष की सूचना है कि यहाँ फेसबुक पर समय की नजाकत और जरूरत को देखते हुये प्रति जी उर्फ़ प्रतिबिम्ब जी की अनुकम्पा से एक पागलखाने का निर्माण हुआ है...सीधे शब्दों में कहने का मतलब है कि उन्होंने एक पागल खाना फेसबुक पर खोला है...' अपनों का पागलखाना.कॉम '. और उनके ही कर कमलों से इसका उदघाटन समारोह भी संपन्न हुआ...इससे सम्बंधित सभी सेवायें फ्री हैं...तात्पर्य यह है कि आपको बिना एक फूटी कौड़ी खर्च किये बिना ही भरती कर लिया जायेगा...वह हर इन्सान, जिसे इस पागलखाना की खबर मिली, पागल हुआ जा रहा है या यूँ कहिये कि पागल होने के लिए पागल हुआ जा रहा है.. ताकि उसका एडमिशन हो सके...पागलखाने की पापुलैरिटी की खबर आग की तरह फ़ैल चुकी है..इसमें भरती होने के लिये लोगों में होड़ लगी है...लोग कतार में खड़े हैं...यहाँ हर तरह के पागलों की जरूरत है...जितने ज्यादा लोग इसमें भरती होंगे उतना ही इसके और विख्यात होने के चांसेज हैं...तो मित्रों आप सब लोग इसे ज्वाइन करने के लिए आमंत्रित हैं...जो भी इसमें भरती होना चाहे बिना किसी फीस के आसानी से बुकिंग हो जायेगी...सब पागलों के बिना पागलखाना बनाने का कोई मतलब ही नहीं था...जब पागल देखे तो पागलखाना बना...पागलों के लिये एक ठिकाना मिला...इस बहाने कम से कम हम सब पागल मिल तो सकते हैं...हा हा हा हहहह्ह्ह्ह

अब आप शायद जानना चाहेंगे कि इसके निर्माण के पीछे क्या वजह/राज़ है..और किसके भेजे में इसका बीजारोपण हुआ..तो आपकी शंका-समाधान करना मेरा परम कर्त्तव्य बनता है..हुआ यूँ कि इन दिनों फेसबुक पर कई सारी शादियों व लोगों के जन्म दिनों की पार्टियों में जाना-आना हुआ..वहाँ तरह-तरह के लोगों से मिलना-जुलना भी हुआ..जैसा कि सबको पता है कि इंसान एक सामाजिक प्राणी है...और इन पार्टियों की जरूरत भी एक सामाजिक आवश्यकता होती है..और इसकी वजह से तमाम लोग एक दूसरे के बारे में कितना जान जाते हैं व आपस में मिल जुल कर प्रेम-भाव को डेवलप करते हैं..और दिमागी टेंशन दूर होती है..तो वहाँ आये हुये कई मित्रों से इन्फार्मल तरीके से पेश आना हुआ..उस समय के दौरान ऐसा महसूस हुआ कि कुछ लोग शायद पागल लोगों की श्रेणी में आते हैं...इस बात को सोचकर मन में कसक सी रही...कुछ घंटों के उपरांत मेरे दिमाग में ख्याल आया कि इन बेचारों को फेसबुक पर होते हुये इन पार्टियों को अटेंड करना भी जरूरी है..वर्ना तो ये सब और पागल हो जायेंगे...लेकिन जितना भी इनका पागलपन है क्या इसके बारे में कुछ किया जा सकता है...फिर सवाल उठा कि क्या होना चाहिये..तो बिजली के झटके की तरह मेरे दिमाग में ख्याल आया कि क्यों ना यहाँ एक पागलखाना खोला जाये..लेकिन कैसे..? सोचा किसी एक्सपर्ट से पूछा जाये इस आइडिया को बता कर..तो वहीं पर हम सबके एक परम मित्र प्रतिबिम्ब जी पधारे हुये थे..जिनसे मैंने अपने आइडिया के बारे में जिक्र किया..बस कहने की देर थी कि उन्हें यह आइडिया पसंद आ गया..फिर आगे की स्टोरी ये है कि आनन-फानन में कुछ घंटों में ही उन्होंने फटाफट एक पागलखाना भी खोल दिया...सारे मित्रों के बीच ये खबर जैसे ही पहुँची उन्होंने आव देखा न ताव..बस दौड़ लगा दी पागलखाने की तरफ..और बिना किसी प्रयास के पागलों की भीड़ लग गयी वहाँ...अब हाल ये है कि हर कोई अपने को पागल घोषित करने में लगा हुआ है..अब आप खुद ही इसकी पापुलैरिटी का अंदाज़ा लगा सकते हैं..हर कोई पागलपन का प्रमाणपत्र हासिल करने में लगा हुआ है...इन पागलों के बीच में पागलखाने के बॉस पागल हुये जा रहे हैं या कहिये कि हो चुके हैं..इस पागल खाने के कुछ नियम भी हैं..और इसकी लिंक भी दे रही हूँ यहाँ..ताकि बिना समय व्यर्थ किये हुये आप लोग भी इसका लाभ उठाइये...और एक खास बात ये है कि प्रतिबिम्ब जी को हम सब प्यार से प्रति जी कहते हैं..वैसे वो ' प्रवचन बाबा ' ' पागल बाबा ' या पी. बी. नाम से भी अब जाने जाते हैं..और जब से ये पागलखाना खुला है वही इसके बॉस हैं और इस पागल खाने में उन्हें सब ' पागल बॉस ' के नाम से जानते हैं..वह बहुत ही खुशमिजाज पागल हैं..ख़ुशी या दुख की बात तो ये है इस पागलखाना के बारे में कि जो आता है इसकी बातों से अभिभूत हो जाता है...हम सबके शुभचिंतक प्रति जी उर्फ़ हमारे ' पागल बास ' पागलों में इतने सेवारत हुये कि खुद भी एक ग्रेट पागल हो गये और आज उन्हें बॉस की पोजीशन ही सूट करती है...उनके अलावा जो और पागल हैं वो अपनी पोजीशन खुद सेलेक्ट करते हैं लड़-झगड़ कर..या एक दूसरे को मारकूट कर...जो अधिक होशियार हैं उनका अपना गैंग भी बनने लगा है...कोई पागलों का लीडर है कोई उसका असिस्टेंट, या सेक्रेटरी इत्यादि...अक्सर संकट का समय आने पर जब प्रति जी पर प्रतिक्रिया होती है तो प्रवचन बाबा का रूप धारण कर के इधर-उधर अचानक प्रकट होते रहते हैं...( जुओं की समस्या से त्रस्त होकर उन्होंने इन दिनों अपनी दाढ़ी-मूँछ न रखने का फैसला किया है..तो इन दिनों ' पागल बाबा' या ' प्रवचन बाबा ' की इमेज बदली नजर आयेगी ).

इस पागलखाना के बारे में जानने लायक कुछ बातें:

१. निशुल्क दाखिला यानी एडमिशन...यहाँ हर तरह के नमूने के पागलों को बिना किसी समस्या के भरती कर लिया जाता है..बस पागलखाने का दरवाज़ा खटखटाने भर की देर है...

२. फ्री हास्य-मनोरंजन: यहाँ आया हर पागल दूसरे पागल से अपने पागलपन के अनुभव बाँटता है और पागलपने की बातें करके हल्का महसूस करता है...चूँकि हर इन्सान या पागल में अपनी एक विशेषता होती है..तो इसी बात को नजर में रखते हुये पागलखाने वालों ने सभी पागलों की पागलपन की प्रतिभा को और भी निखारने का या प्रोत्साहन देने का निश्चय करके एक प्रोग्राम आयोजित करने का निश्चय किया/लिया है..उसके लिये हर पागल को किसी भी पागलपन की रचना लिखकर लाने की छूट है..मतलब ये कि पागल तो पागल साथ में उसकी पागलपने की रचनाओं का भी दिल खोल कर स्वागत होगा...

३. आप मित्रों के साथ मजाक या मस्ती यहाँ कर सकते हैं..लेकिन इस बात का ख्याल रखते हुये कि किसी को ठेस न पहुँचे..या वे ही मित्र शामिल हों जो मजाक-मस्ती पसंद करते हैं और बुरा नहीं मानते हैं..अगर आप इस टाइप के हैं तो आप खुशी-खुशी इसका फायदा उठायेंगे.. अन्य शब्दों में कहूँ तो लाभान्वित होंगे...गुड लक !

४. अपना पागलखाने का पता है: http://www.facebook.com/pagalkhaana" आप इस लिंक पर क्लिक करिये तो आप अपने को सीधे पागलखाना के अन्दर पायेंगे...

** पागलपन के लक्षण : वैसे तो पागलों की पहचान कई रूपों में होती है..किन्तु यहाँ पर कुछ नमूने ही पेश कर रही हूँ जैसे कि: यदि आपको प्रतीत होता है कि आपको चुरा कर मिठाई खाने की गंभीर लत पड़ गयी है ( जैसे कि जोगी उर्फ़ जोगेन्द्र ), या आपकी आदत दूसरों की बुराई या चुगली करने वाली बहुत है ( आपका सीक्रेट यानी राज, हम लोग यानी पागलखाने के कर्मचारी, किसी को नहीं बतायेंगे बस चुपचाप पागलखाने में जाकर दाखिल हो जाइये ), या हद से अधिक हँसते हैं हँसने वाली बातों पर ( जैसे कि मैं ), या पैसा बनाने के चक्कर में अपने '' नीम हकीम खतरेजान '' वाले चिकित्सालय को खोलने वाले पागल ( जैसे कि सरोज जी ), या किसी दूसरे पागल को सबसे बड़ा पागल क्यों कह दिया उस पर जेलस होने वाला पागल ( जैसे कि जोगी उर्फ़ जोगेन्द्र ) या पागल खाना खोलने वाला जो पागलों को प्यार करते हुये गाता है ' दिल है कि मानता ही नहीं ' या ' दिल तो पागल है ' टाइप वाले गाने ( जैसे कि प्रति जी ). हा हा हा हा...

आशा करती हूँ कि आप लोगों को मेरी कही हुई हर बात समझ में आ गई होगी..लेकिन यदि कन्फ्यूज़ हैं तो हमारे ' पागल बॉस ' से कान्टेक्ट कीजिये और अपने पागलपने के सवालों के जबाब बास के पागलपने के उत्तरों से पाइये...यदि उनकी बात भी समझ में ना आये तो आप अब और देर किये बिना पागलखाने पहुँच कर अन्य तमाम पागलों से मिलिये..शायद यही एक उपाय हो आपकी समझ में आने का.. .

आप सब फेसबुक के साथियों की शुभचिन्तक
- शन्नो

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